छठ पूजा हिंदू धर्म का ऐसा पर्व है जिसे आस्था, पवित्रता और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. यह पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जो जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कई हिस्सों में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन, निष्ठा और पवित्रता के साथ छठ व्रत करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है.
छठ पूजा का आस्था से जुड़ा रहस्य
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मन, वचन और कर्म की पवित्रता का पर्व है. व्रती इस दिन आत्मसंयम, तप और भक्ति की भावना से व्रत रखते हैं. पूरे चार दिनों तक बिना किसी दिखावे और लोभ के पूजा की जाती है.
माना जाता है कि जब व्यक्ति पूर्ण समर्पण और सच्चे भाव से सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करता है, तो उसकी ऊर्जा और विचारों की शक्ति ब्रह्मांड की सकारात्मक तरंगों से जुड़ जाती है. यही कारण है कि छठ पूजा में मांगी गई मन्नतें पूरी हो जाती हैं.
छठी मैया का आशीर्वाद
लोक मान्यता है कि छठी मैया बाल गोपाल की रक्षक हैं और वे संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान देती हैं. जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति में बाधा आती है, वे छठ व्रत रखकर सूर्य देव और छठी मैया से प्रार्थना करते हैं. अनेक उदाहरण मिलते हैं कि इस व्रत के बाद लोगों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी हुई है.
इसी तरह, जिनकी आर्थिक या पारिवारिक समस्याएं होती हैं, वे भी इस पर्व के माध्यम से मन की शांति और नई दिशा प्राप्त करते हैं.
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
छठ पूजा के दौरान व्यक्ति प्रकृति के संपर्क में अधिक रहता है — जैसे सूर्य की किरणों से स्नान करना, जल में खड़े रहना और उपवास रखना. इससे शरीर में विटामिन डी का स्तर बढ़ता है, मानसिक संतुलन सुधरता है और आत्मबल बढ़ता है. यही आंतरिक शुद्धता और मानसिक स्थिरता मन्नतों की पूर्ति की भावना को और मजबूत बनाती है.
छठ पूजा में मांगी गई मन्नतें केवल इसलिए पूरी नहीं होतीं कि यह एक धार्मिक पर्व है, बल्कि इसलिए कि इस दिन व्यक्ति अपने भीतर की श्रद्धा, विश्वास और ऊर्जा को जाग्रत करता है. जब मन, शरीर और आत्मा एक साथ जुड़ते हैं, तो प्रकृति और ईश्वर दोनों सहयोग करते हैं.