Arvind Kejriwal: आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने आपराधिक मामलों में गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री को उनके पदों से हटाने संबंधी विधेयक पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि जो व्यक्ति गंभीर अपराधों के आरोपियों को अपनी पार्टी में शामिल करता है, उनके सभी मामले निपटाता है और उन्हें मंत्री, उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनाता है, क्या ऐसे मंत्री/प्रधानमंत्री को भी अपना पद छोड़ देना चाहिए? ऐसे व्यक्ति को कितने वर्षों की जेल होनी चाहिए?
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दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इंस्टाग्राम पर अमित शाह के बयान का हवाला देते हुए लिखा, “अगर किसी पर झूठा मुकदमा दर्ज करके उसे जेल भेज दिया जाता है और बाद में वह बरी हो जाता है, तो उसके खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराने वाले मंत्री को कितने साल की जेल होनी चाहिए?”
अमित शाह ने क्या कहा?
दरअसल, समाचार एजेंसी एएआई को दिए एक इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा है कि “अगर कोई पाँच साल से ज़्यादा की सज़ा वाले मामले में जेल जाता है और उसे 30 दिन में ज़मानत नहीं मिलती, तो उसे पद छोड़ना होगा, किसी छोटे-मोटे आरोप के लिए उसे पद नहीं छोड़ना होगा। लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपी या पाँच साल से ज़्यादा की सज़ा पाए मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों या प्रधानमंत्री का जेल से सरकार चलाना कितना उचित है?”
आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी को लेकर अमित शाह ने कहा कि जब मामला हाईकोर्ट में गया कि केजरीवाल जेल में हैं, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था। तब कोर्ट ने कहा था कि नैतिक आधार पर उन्हें पद छोड़ देना चाहिए, लेकिन मौजूदा क़ानून में उन्हें पद से हटाने का कोई प्रावधान नहीं है।
मैंने 160 दिन जेल से सरकार चलाई- अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल ने शाह के बयान पर पलटवार करते हुए कहा, “जब केंद्र ने मुझे राजनीतिक साज़िश के तहत झूठे मामले में फंसाकर जेल भेजा, तो मैंने जेल से सरकार चलाई।” 160 दिनों तक।”
अरविंद केजरीवाल ने कहा, ”पिछले सात महीनों में दिल्ली की भाजपा सरकार ने दिल्ली की हालत ऐसी कर दी है कि आज दिल्ली के लोग उस जेल सरकार को याद कर रहे हैं। कम से कम जेल सरकार के दौरान बिजली कटौती नहीं होती थी, पानी मिलता था, अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिकों में मुफ़्त दवाइयाँ मिलती थीं, फ्री जाँच होती थीं, एक बारिश में राजधानी दिल्ली का इतना बुरा हाल नहीं होता था, प्राइवेट स्कूलों को मनमानी और गुंडागर्दी करने की परमिशन नहीं थी।”

