अकरम ख़ान की रिपोर्ट, Uttar Pradesh: मंगलवार को गौतम बुद्ध नगर की विशेष पॉक्सो अदालत ने 8 वर्ष पुराने एक केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 3.5 साल की बच्ची के साथ डिजिटल दुष्कर्म के आरोपी पश्चिम बंगाल के चंडीदास को आजीवन कारावास की सुनाई है, साथ ही कोर्ट ने दोषी युवक पर 24 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना नहीं जमा करने पर दोषी को छह माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा, इसके साथ ही अदालत ने स्कूल प्रबंधन डीपीएस सोसाइटी को भी लापरवाही का दोषी मानते हुए 10 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
जाने पूरा मामला?
Gautam Buddha Nagar: वर्ष 2018 में सूरजपुर थाने इलाके के सेक्टर डेल्टा में स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल में स्विमिंग पूल में लाइफ़ गार्ड के पद पर तैनात चंडीदास ने स्विमिंग की क्लास के दौरान मासूम बच्ची से रेप की घटना को अंजाम दिया था, माता पिता की तहरीर पर पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था। वारदात के बाद कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करीब 6 वर्ष चली और कुल 12 लोगों की गवाही हुई। विशेष न्यायाधीश विजय कुमार हिमांशु की अदालत में सुनवाई के दौरान आरोपी चंदीदास को आईपीसी और पॉक्सों की तीन अलग धाराओं के तहत दोषी साबित किया गया। अदालत ने कहा कि स्कूल में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्रबंधन की जिम्मेदारी है। माता-पिता भरोसे के साथ बच्चों को स्कूल भेजते हैं लेकिन यहां घोर लापरवाही बरती गई। आरोपी को आईपीसी की धारा-376 एबी के तहत 12 साल से कम बच्ची से बलात्कार के लिए आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए जुर्माना दिया गया है।
न्यायाधीश ने क्या कहा?
विशेष लोक अभियोजक चवनपाल भाटी ने कहा कि सजा के लिए हुई सुनवाई के दौरान यह मामला स्कूल परिसर में घटा है जहां बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। पीड़िता को जीवनभर इस कलंक का सामना करना पड़ेगा। अगर सख्त सजा नहीं दी गई तो समाज को गलत संदेश जाएगा। वहीं बचाव पक्ष के वकील शिखर ठाकरल ने दया की अपील करते हुए कहा कि आरोपी निम्न आय वर्गीय परिवार का एकमात्र कमाने वाला है और इसमें मानवीय कमजोरी का हाथ है। अदालत ने पॉक्सो एक्ट की धारा 33(8) के तहत डीपीएस सोसाइटी को अप्रत्यक्ष दायित्व का दोषी ठहराया है। स्कूल को एक महीने के भीतर 10 लाख रुपए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने होंगे। यह राशि नालसा की मुआवजा योजना के तहत पीड़िता के परिवार को दी जाएगी। न्यायाधीश ने कहा कि 3.5 साल की बच्ची के साथ यह घटना न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर उसे आजीवन प्रभावित करेगी। ऐसे मामलों में कोई नरमी नहीं बरती जा सकती। अदालत ने यह भी कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को यह समझना होगा कि वे सिर्फ शिक्षा देने के लिए नहीं बल्कि बच्चों की पूर्ण सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदार हैं।