राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने देश की जनसंख्या पर चल रही बहस के बीच एक अहम बयान दिया है, जिसने नए सिरे से चर्चा छेड़ दी है. संघ का कहना है कि भारत को “जनसंख्या नियंत्रण” नहीं बल्कि “जनसंख्या नीति” की ज़रूरत है. ऐसी नीति जो सिर्फ़ आंकड़ों पर नहीं, बल्कि समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के संतुलन पर आधारित हो। इसी के साथ संघ ने पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा पर भी गंभीर टिप्पणी की है, जिसे उसने “राजनीतिक संरक्षण” का परिणाम बताया। अब सवाल यह है कि RSS के इस दोहरे संदेश के पीछे संकेत क्या हैं?
पश्चिम बंगाल पर आरोप
आरएसएस ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा को राजनीतिक संरक्षण का नतीजा बताया. आरएसएस ने कहा कि राज्य में राजधर्म का अभाव है और लोगों को हिंसा पर चिंतन करने की ज़रूरत है. हालाँकि, आरएसएस ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र और राज्य सरकारें दुश्मन नहीं हैं.. आरएसएस ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल सरकार अक्सर उसके कार्यक्रमों की अनुमति देने से इनकार कर देती है. उन्होंने बताया कि मोहन भागवत की बैठक के लिए उन्हें अदालत का भी सहारा लेना पड़ा.
गैर-हिंदुओं को परेशान नहीं किया जाना चाहिए…
आरएसएस ने बंगाल में भाजपा के प्रदर्शन को विकास की दिशा में एक कदम बताया. आरएसएस ने कहा कि 72-75 सीटें जीतना अपने आप में एक उपलब्धि है, जबकि सत्ता में आना एक अलग बात है. आरएसएस ने यह भी कहा कि उनकी अक्टूबर तक देश भर में एक लाख शाखाएँ स्थापित करने की योजना है. आरएसएस ने दोहराया कि सभी को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार है, लेकिन राष्ट्र के प्रति निष्ठा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। आरएसएस ने कहा कि गैर-हिंदुओं को सताया नहीं जाना चाहिए और बांग्लादेश में हिंदुओं को भी उत्पीड़न से बचाया जाना चाहिए. गैर-हिंदुओं को सताया नहीं जाना चाहिए…
इसके अलावा, संगठन की विस्तार योजनाओं के बारे में, आरएसएस ने कहा कि उसका लक्ष्य अक्टूबर 2025 तक 1,00,000 शाखाएँ स्थापित करना है.

