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Malegaon Blast Case के फैसले पर भयंकर नाराज हुए असदुद्दीन ओवैसी- कहा-‘फिर 6 निर्दोष लोगों की हत्या किसने की?’

Asaduddin Owaisi: एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार 31 जुलाई को मालेगांव विस्फोट मामले में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने 2008 के इस विस्फोट मामले के सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इनमें पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल हैं। ओवैसी ने इस मामले को लेकर X पर एक पोस्ट शेयर किया है।

By: Deepak Vikal | Published: July 31, 2025 3:13:32 PM IST



Malegaon Blast Case Verdict: एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार 31 जुलाई को मालेगांव विस्फोट मामले में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने 2008 के इस विस्फोट मामले के सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इनमें पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल हैं। ओवैसी ने इस मामले को लेकर X पर एक पोस्ट शेयर किया है।

एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले को न्याय का मखौल करार देते हुए कई गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने एक्स पर लिखा, “क्या मोदी और फडणवीस सरकारें इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी, जैसा उन्होंने 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में बरी किए गए 12 आरोपियों के खिलाफ किया था? क्या महाराष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष दल इस मामले में जवाबदेही की मांग करेंगे? सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन छह निर्दोष लोगों की हत्या किसने की?”

ओवैसी ने रोहिणी सालियान का ज़िक्र क्यों किया?

ओवैसी ने 2016 में तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान के बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने खुलासा किया था कि एनआईए ने उनसे आरोपियों के खिलाफ नरम रुख अपनाने को कहा था। उन्होंने लिखा, “साल 2017 में एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा को बरी करने की कोशिश की थी, जो बाद में 2019 में भाजपा सांसद बनीं।”

ओवैसी ने जांच एजेंसियों पर सवाल उठाए

ओवैसी ने जांच एजेंसियों, एनआईए और एटीएस की लापरवाही और संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “यह आतंकवाद पर सख्त होने का दावा करने वाली मोदी सरकार का असली चेहरा दिखाता है, जिसने एक आतंकी मामले में एक आरोपी को आरोपी बना दिया।” एक सांसद। क्या दोषी जाँच अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा?”

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ओवैसी का कहना है कि इसका जवाब सबको पता है। यह मामला न केवल जाँच प्रक्रिया की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या भारत में धार्मिक हिंसा के पीड़ितों को कभी न्याय मिलेगा। मालेगांव के पीड़ित अभी भी जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं।

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