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Bharat Bandh 2025: 25 करोड़ कामगारों की हड़ताल से देश की थमी रफ्तार, बैंक-बिजली-डाक सेवाओं पर पड़ेगा गहरा असर

Bharat Bandh 2025: देशभर में आज यानी 9 जुलाई 2025 को ‘भारत बंद’ का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साझा मंच द्वारा बुलाए गए इस बंद में करीब 25 करोड़ से अधिक कामगार शामिल हो रहे हैं। यह हड़ताल सरकार की श्रम नीतियों और आर्थिक फैसलों के खिलाफ विरोध का प्रतीक है।

By: Shivanshu S | Published: July 9, 2025 8:51:47 AM IST



Bharat Bandh 2025: देशभर में आज यानी 9 जुलाई 2025 को ‘भारत बंद’ का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साझा मंच द्वारा बुलाए गए इस बंद में करीब 25 करोड़ से अधिक कामगार शामिल हो रहे हैं। यह हड़ताल सरकार की श्रम नीतियों और आर्थिक फैसलों के खिलाफ विरोध का प्रतीक है। बता दें, ‘भारत बंद’ में एटक (All India Trade Union Congress), HMS, सीटू, इंटक, इनुटुक, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल होंगे।

बैंक और बीमा सेवाओं पर असर

बैंक कर्मचारियों ने इस बंद में भागीदारी की पुष्टि की है। हालांकि कोई आधिकारिक बैंक अवकाश नहीं है, लेकिन कई शाखाओं में कामकाज प्रभावित हो सकता है। इसके साथ ही बीमा क्षेत्र के कर्मचारी भी बंद का हिस्सा बन सकते हैं।

बिजली सेवाएं हो सकती हैं बाधित

बिजली क्षेत्र के लगभग 27 लाख कर्मचारी इस हड़ताल में शामिल हैं। इससे कई राज्यों में बिजली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि सरकार की नीतियां कर्मचारियों के हितों के खिलाफ हैं।

डाक और निर्माण क्षेत्र भी हड़ताल में

डाक विभाग, कोयला खनन और निर्माण क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी भी इस बंद में शामिल हैं। इससे आम लोगों को डाक और जरूरी सेवाओं में देरी हो सकती है।

स्कूल-कॉलेज खुले, लेकिन यातायात पर असर

स्कूल और कॉलेज सामान्य रूप से खुले हुए हैं क्योंकि कोई सरकारी छुट्टी घोषित नहीं हुई है। लेकिन कुछ जगहों पर हड़ताल की वजह से यातायात और रेलवे सेवाओं में थोड़ी बहुत देरी देखने को मिल सकती है।

हड़ताल की मांगें क्या हैं?

  1. बेरोज़गारी कम करना और रोजगार सृजन
  2. मनरेगा में मजदूरी और काम के दिन बढ़ाना
  3. नए श्रम कानूनों को वापस लेना
  4. सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार लौटाना

क्या कहती हैं यूनियनें?

यूनियनों का आरोप है कि सरकार ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर सिर्फ नियोक्ताओं (कंपनियों) को फायदा पहुंचा रही है। नए श्रम कानूनों से मजदूरों के अधिकार कमजोर हुए हैं, काम के घंटे बढ़ गए हैं और नियोक्ताओं की जवाबदेही कम हो गई है। यूनियनें चाहती हैं कि यह हड़ताल सरकार पर दबाव बनाए और उसकी मजदूर-विरोधी नीतियों में बदलाव हो। सभी कर्मचारियों और मजदूरों से इसे सफल बनाने की अपील की गई है।

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