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Mohan Bhagwat: भारत कैसा बनेगा विश्वगुरु? संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया फार्मूला, बोले- आर्थिक ताकत नहीं…

भागवत के इस बयान को संघ की दीर्घकालिक विचारधारा का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भारत की वैश्विक भूमिका को न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व के रूप में भी देखा जाता है।

Published by Ashish Rai

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि दुनिया भारत को विश्वगुरु तभी मानेगी जब देश अध्यात्म और धर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति करेगा। महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था का 3 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा होना कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि दुनिया के कई देश आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। लेकिन भारत की असली पहचान अध्यात्म और धर्म में है, जिसकी आज पूरी दुनिया को ज़रूरत है।

आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा, “भले ही हमारी अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर हो, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि कई देश समृद्ध हैं। लेकिन हमारे पास अध्यात्म और धर्म है, जिसकी आज दुनिया को ज़रूरत है और जो सिर्फ़ हमारे पास है। जब हम इन दोनों आयामों में प्रगति करेंगे, तब दुनिया हमें विश्वगुरु मानेगी।”

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भारत को भगवान शिव की तरह निर्भय होना चाहिए

अपने संबोधन में भागवत ने भगवान शिव का उदाहरण देते हुए कहा कि केवल वही निर्भय है जो शक्तिशाली है। उन्होंने कहा कि भारत को भी निर्भय और आत्मविश्वासी बनना होगा, क्योंकि शक्ति के बिना निर्भयता संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक और नैतिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल भी आवश्यक है।

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धर्म अपनत्व और एकता लाता है

इससे पहले बुधवार को एक अन्य कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा था कि धर्म सच्चा और पवित्र कर्तव्य है और इसे जिम्मेदारी से निभाने से समाज में शांति बनी रहती है। उन्होंने कहा, “दुनिया को हिंदू धर्म की तरह विविधता को अपनाने वाले धर्म की आवश्यकता है। धर्म हमें अपनत्व सिखाता है और मतभेदों को स्वीकार करना सिखाता है। हम बाहर से अलग दिख सकते हैं, लेकिन मूलतः हम एक हैं।”

विश्वगुरु बनने का सूत्र

भागवत के अनुसार, भारत को विश्वगुरु का दर्जा तभी मिलेगा जब आर्थिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का भी उत्थान होगा। उन्होंने कहा कि आध्यात्म और धर्म का मार्ग ही भौतिक समृद्धि के साथ संतुलन बनाए रखने का एकमात्र रास्ता है, जो न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में शांति और सद्भाव ला सकता है।

भागवत के इस बयान को संघ की दीर्घकालिक विचारधारा का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भारत की वैश्विक भूमिका को न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व के रूप में भी देखा जाता है।

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