Categories: देश

Himalayan Region Disaster: हिमालयी क्षेत्र विनाश की ओर, सही प्लानिंग करनी होगी, विशेषज्ञ

Geological Investigations: भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक ने कहा की मौसम को दोष देना बेमानी है. नदी के किनारे इमारतों का निर्माण बन रहा है क्षेत्र के विनाश का कारण. आइए जानते हैं विशेषज्ञों ने क्या कहा.

Published by Sharim Ansari

Indian Meteorological Department: हिमालयी राज्य जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर इस वक़्त बड़ी समस्या में हैं. हर बार इसे मौसम या जलवायु परिवर्तन कहकर टाल दिया जाता है, जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके पीछे असल वजह सही विकास मॉडल का न होना है. अगर समय रहते इसे नहीं बदला गया, तो चरमराते हिमालय को बचाना मुश्किल हो जाएगा.

भारतीय मौसम विज्ञान सोसायटी (Indian Meteorological Society) के अध्यक्ष और भारतीय मौसम विभाग (Indian Meteorological Department) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक आनंद शर्मा कहते हैं, एक दशक में फोरकास्ट और मॉनिटरिंग क्षमता में ज़बरदस्त सुधार हुआ है, लेकिन जब तक स्थानीय प्रशासन और सोसाइटी समय रहते चेतावनियों पर प्रतिक्रिया नहीं देगी, तब तक सिर्फ़ मौसम को दोष देना बेमानी है. असली नाकामी डेवलपमेंट और प्लानिंग प्रक्रिया में है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वेदर स्टेशन, अर्ली वार्निंग सिस्टम और ऑल-वेदर कम्युनिकेशन नेटवर्क का एक मज़बूत नेटवर्क बिछाना होगा ताकि आपदा की स्थिति में जान-माल की रक्षा की जा सके. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन स्टडीज के वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश गौतम भी मानते हैं कि नदियों के किनारों पर अतिक्रमण, पहाड़ की स्थिरता की जांच किए बिना निर्माण करना खतरा मोल लेने जैसा है.

ट्रेन के डिब्बे में आपत्तिजनक स्थिति में कपल का वीडियो वायरल, सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

तट पर इमारतें बन रहीं विनाश का कारण

विशेषज्ञों का मानना है कि जब विकास प्रकृति के अनुरूप होता है, तो खतरे की उम्मीद काफी हद तक कम हो जाती है. जापान में समुद्र तट पर लगाई गई घनी हरित पट्टियाँ सुनामी और चक्रवात के पहले प्रहार को रोक देती हैं. वहीं दूसरी ओर, भारत में नदी की ज़मीन पर अतिक्रमण करके बिल्डिंग्स बनाई जाती हैं, सड़कें सीधे जलधाराओं में समा रही हैं और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन खाली फॉर्मेलिटी बनकर रह गया है. यह असंतुलित और अव्यवस्थित विकास हिमालयी क्षेत्रों को बार-बार विनाश की ओर धकेल रहा है.

Related Post

एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड और हिमाचल का लगभग 70 प्रतिशत इलाका लैंडस्लाइड ज़ोन में आता है. इसकी औसत भार वहन क्षमता 60 से 80 टन प्रति हेक्टेयर है. यानी चौड़ी सड़कें, बहुमंजिला होटल, सुरंगें और बड़े बांध जैसे भारी निर्माण इस प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ देते हैं.

पर्यावरणीय रूप से असुरक्षित परियोजनाएं

उत्तराखंड में, सिर्फ चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना के लिए ही 700 किलोमीटर से ज़्यादा सड़कें काट दी गईं, और हज़ारों टन मलबा नदियों में बहा दिया गया. राज्य में 98 बड़ी और मध्यम बांध परियोजनाएं प्रस्तावित हैं या अंडर कंस्ट्रक्शन हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना ​​है कि ऐसी नाज़ुक घाटियों में 20 से ज़्यादा बड़े बांध पर्यावरण की दृष्टि से असुरक्षित हैं.

Dog’s Case: दिल्ली के करीब 10 लाख स्ट्रीट डॉग्स को लगाई जाएगी माइक्रोचिप.

Sharim Ansari

Recent Posts

Cloudflare फिर हुआ down..! एक साथ कई वेबसाइट हुई बंद, लोगों ने की शिकायत..

Cloudflare down: देश भर में एक बार फिर क्लाउडफ्लेयर डाउन हो गया है और लोगों…

December 5, 2025

बेटी के सम्मान की लड़ाई, पिता ने किया कुछ ऐसा कि रेलवे भी हुआ झुकने पर मजबूर

Railway Concession Certificates: रेलवे ने दिव्यांग व्यक्तियों के रियायती प्रमाणपत्रों में “मानसिक रूप से विकृत”…

December 5, 2025

कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय की शादी का Video वायरल, ताज आमेर में लेंगे सात फेरे; जानें कौन हैं उनकी दुल्हन

Indresh Upadhyay Marriage: मशहूर कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय की शादी का पहला वीडियो सोशल मीडिया पर…

December 5, 2025

Breast Implant: स्तन फटने से लेकर इन्फेक्शन तक का डर! यूं ही नहीं Sherlyn Chopra ने हटवाया ब्रेस्ट इम्प्लांट, कितना है खतरनाक?

Breast Implant Side Effects: ब्रेस्ट ऑग्मेंटेशन एक सर्जरी है जिससे ब्रेस्ट का साइज़ बढ़ाया जाता…

December 5, 2025