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राष्ट्रीय प्रतीकों को तोड़ने या अपमान करने पर कितनी मिलती है सजा? जानिए क्या कहता है कानून

Ashoka Vandalism punishment: जो कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान या किसी अन्य स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या उससे संबंधित राष्ट्रीय प्रतीक को विकृत, नष्ट, रौंदता है या अन्यथा अनादर या अवमानना ​​(चाहे मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा, या कृत्यों द्वारा) प्रदर्शित करता है, उसे अधिकतम 3 वर्ष के कारावास और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

Published by Ashish Rai

Dargah Hazratbal Shrine Row: शुक्रवार को ईद-ए-मिलाद के मौके पर जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित हज़रतबल दरगाह में कुछ लोगों ने अशोक स्तंभ वाली एक नवनिर्मित पट्टिका को गिरा दिया, जिसके बाद वहां भारी हंगामा मच गया। इस बीच, पुलिस ने इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज कर ली है।

सूत्रों के मुताबिक, निगीन पुलिस स्टेशन में एफआईआर संख्या 76/2025 के तहत भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) की जुड़ी धाराओं के अंतर्गत एक FIR दायर की गई है। यह मामला धारा 300, 352, 191(2) 324(4) 196 61(2) बीएनएस धारा (2) पीआईएच अधिनियम, 1971 के तहत दायर किया गया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि राष्ट्रीय प्रतीकों को तोड़ने या उनका अपमान करने पर कितनी सजा हो सकती है…

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राष्ट्रीय प्रतीकों को तोड़ने या उनका अपमान करने पर क्या है सजा का प्रावधान?

ज्ञात हो कि देश में राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान बनाए रखने के लिए भारतीय ध्वज संहिता, 2002 और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 लागू हैं। ये कानून राष्ट्रीय प्रतीक और तिरंगे के सही उपयोग, प्रदर्शन और सम्मान के नियम निर्धारित करते हैं। अगर कोई इससे छेड़छाड़ करता है, तो उसकी यह गलती भारी पड़ सकती है।

इसके तहत, जो कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान या किसी अन्य स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या उससे संबंधित राष्ट्रीय प्रतीक को विकृत, नष्ट, रौंदता है या अन्यथा अनादर या अवमानना ​​(चाहे मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा, या कृत्यों द्वारा) प्रदर्शित करता है, उसे अधिकतम 3 वर्ष के कारावास और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

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हज़रतबल दरगाह का निर्माण किसने करवाया था?

बता दें, 17वीं शताब्दी से हज़रतबल दरगाह का इतिहास जुड़ा माना जाता है। आज जिस जगह पर हज़रतबल दरगाह मौजूद है, वहाँ पूर्व में इशरत महल और एक बगीचा हुआ करता था, जिसका निर्माण साल 1623 में शाहजहाँ के गवर्नर सादिक खान ने करवाया था।

जम्मू और कश्मीर पर्यटन विकास निगम (JKTDC) की वेबसाइट पर बताया गया है कि दरगाह में वास्तव में पैगंबर मुहम्मद साहब की दाढ़ी के बाल रखे हुए हैं। इसे दरगाह शरीफ, असर-ए-शरीफ और मदीन-उस-सानी के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1968 में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की देखरेख में मुस्लिम औकाफ ट्रस्ट द्वारा शुरू किया गया था।

इस गुंबददार सफेद संगमरमर की दरगाह का निर्माण वर्ष 1979 में पूरा हुआ था। यानी इसे बनने में लगभग 11 साल लगे थे। हज़रतबल दरगाह में शुक्रवार (जुम्मे) की नमाज़ के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा, यहाँ पर्यटकों का भी आना-जाना लगा रहता है। विशेष अवसरों पर यहाँ पर्यटकों की अच्छी संख्या होती है।

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