Boost For Military Power: भारत लगातार अपनी तीनों सेनाओं को मजबूत बनाने को लेकर बड़े कदम उठा रहा है. अब इसी कड़ी में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने रक्षा तैयारियों को बढ़ावा देने के लिए लगभग ₹79,000 करोड़ मूल्य के कई हथियारों और सैन्य उपकरणों की खरीद को मंजूरी दे दी है.
यह निर्णय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में लिया गया और ऑपरेशन सिंदूर (इससे पहले, 5 अगस्त को लगभग ₹67,000 करोड़ के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई थी) के बाद यह दूसरा बड़ा खरीद निर्णय है. स्वीकृत प्रस्तावों से थल, जल और वायु क्षमताओं को बढ़ाने और इलेक्ट्रॉनिक खुफिया जानकारी एवं निगरानी में सुधार करने की बात कही गई है.
भारतीय नौसेना को मिलेंगे ये हथियार
नौसेना के लिए कई महत्वपूर्ण प्रणालियों को मंजूरी दी गई—जिनमें लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक्स (एलपीडी) भी शामिल हैं—जो संयुक्त जल-थल अभियानों, शांति अभियानों और मानवीय सहायता/आपदा राहत अभियानों में सहायता करेंगी. 30 मिमी नेवल सरफेस गन (एनएसजी), एडवांस्ड लाइट वेट टॉरपीडो (एएलडब्ल्यूटी, डीआरडीओ द्वारा विकसित), इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल इन्फ्रा-रेड सर्च एंड ट्रैक सिस्टम और 76 मिमी सुपर रैपिड गन माउंट के लिए गोला-बारूद की खरीद को भी मंजूरी दी गई. ये प्रणालियाँ कम तीव्रता वाले समुद्री अभियानों, समुद्री डकैती-रोधी अभियानों और पनडुब्बी-रोधी युद्ध की क्षमताओं को बढ़ाएंगी.
भारतीय सेना को मिलेंगे ये हथियार
सेना के लिए नाग मिसाइल सिस्टम (ट्रैक्ड) एमके-2 (एनएएमआईएस) की खरीद को मंजूरी दी गई, जिससे बंकरों, दुश्मन के लड़ाकू वाहनों और फील्ड टारगेट को नष्ट करने की इसकी क्षमता बढ़ जाएगी. इसके अलावा, ग्राउंड-बेस्ड मोबाइल ईएलआईएनटी सिस्टम (जीबीएमईएस) से 24×7 इलेक्ट्रॉनिक खुफिया जानकारी मिलने की उम्मीद है. रसद में सुधार के लिए हाई मोबिलिटी व्हीकल्स (एचएमवी) और मटेरियल हैंडलिंग क्रेन भी शामिल किए गए.
बाकी प्रस्तावों पर एक नजर
वायु सेना अन्य प्रस्तावों को भी मंजूरी दी गई, जिनमें वायु शक्ति बढ़ाने के लिए एकीकृत लंबी दूरी लक्ष्य संतृप्ति/विनाश प्रणाली (सीएलआरटीएस/डीएस) शामिल है; इनमें स्वचालित टेक-ऑफ/लैंडिंग, नेविगेशन, टोही और पेलोड डिलीवरी जैसी क्षमताएं शामिल हैं.
कुल मिलाकर, इस पैकेज का उद्देश्य भारत की बहुमुखी सैन्य क्षमताओं – भूमि, समुद्र और हवाई क्षेत्र, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक खुफिया और समुद्री संचालन – को मजबूत करना है ताकि रणनीतिक चुनौतियों और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना किया जा सके.
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