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CJI Gavai on Crtiticising Judges: ‘जजों की आलोचना करना वकीलों में चलन बन गया है’, मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस वकील को लगाई फटकार, बिना शर्त करना पड़ा ये काम

CJI BR Gavai: मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने उच्च न्यायालय और निचली अदालतों के न्यायाधीशों की आलोचना पर नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि निचली अदालतों के न्यायाधीशों की आलोचना करना आजकल वकीलों के बीच एक चलन बन गया है।

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CJI Gavai on Crtiticising Judges: मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने उच्च न्यायालय और निचली अदालतों के न्यायाधीशों की आलोचना पर नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि निचली अदालतों के न्यायाधीशों की आलोचना करना आजकल वकीलों के बीच एक चलन बन गया है। सोमवार 11 अगस्त, 2025 को उन्होंने एक याचिकाकर्ता और उसके वकीलों को निर्देश दिया कि वे तेलंगाना उच्च न्यायालय की न्यायाधीश मौसमी भट्टाचार्य से उनकी आलोचना के लिए बिना शर्त माफी मांगें।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई , न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने स्वत: संज्ञान वाली अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप अवमाननापूर्ण हैं और उन्हें माफ नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीश पर पक्षपातपूर्ण और अनुचित व्यवहार का आरोप

यह मामला एन पेड्डी राजू द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका से संबंधित है। इसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पक्षपातपूर्ण और अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया गया था।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा, ‘हम न्यायाधीशों को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकते और न ही किसी वादी को ऐसे आरोप लगाने की अनुमति दे सकते हैं। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश संवैधानिक अधिकारी होते हैं और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान सम्मान और छूट प्राप्त है।’

संजय हेगड़े ने बिना शर्त माफ़ी मांगी

अवमानना नोटिस मामले में बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने बिना शर्त माफ़ी मांगी और उन परिस्थितियों के बारे में बताया जिनमें ये बयान दिए गए थे। मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि ऐसा आचरण एक परेशान करने वाला चलन बन गया है जब वकील और वादी राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल यह चलन हो गया है कि अगर किसी राजनेता से जुड़ा कोई मामला होता है, तो वे मान लेते हैं कि उच्च न्यायालय में उस मामले में न्याय नहीं होगा।

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संविधान पीठ के एक फैसले का हवाला देते हुए, मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने पर वादियों और वकीलों को अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है।

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पीठ ने निर्देश दिया कि पहले से निपटाए जा चुके इस मामले को तेलंगाना उच्च न्यायालय में फिर से खोला जाए और एक सप्ताह के भीतर संबंधित न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। साथ ही, याचिकाकर्ता को न्यायाधीश से बिना शर्त माफी मांगने का भी आदेश दिया।

न्यायाधीश फैसला करेंगे कि माफी स्वीकार की जाए या नहीं

अदालत ने कहा कि इसके बाद न्यायाधीश एक सप्ताह में फैसला करेंगे कि माफी स्वीकार की जाए या नहीं। मुख्य न्यायाधीश गवई ने तीन न्यायाधीशों की पीठ के हालिया फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें ऐसी स्थितियों में दंडात्मक कार्रवाई के बजाय माफी स्वीकार करने का पक्ष लिया गया था। उन्होंने कहा, “बुद्धिमत्ता दंड देने के बजाय क्षमा करने में है।”

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