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Chhath puja 2025: नदी, तालाब या पोखर में ही खड़े होकर क्यों दिया जाता है छठी मैया को अर्घ्य

छठ पूजा में क्यों दिया जाता है जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य? जानिए इस प्राचीन परंपरा के पीछे छिपे वैज्ञानिक, योगिक और आध्यात्मिक कारण

By: Shivani Singh | Published: October 22, 2025 11:20:36 PM IST



छठ पूजा का नाम लेते ही मन में उगते सूरज की लालिमा, घाटों पर गूंजते गीत, और ठंडे पानी में खड़े व्रती की दृढ़ आस्था की झलक सामने आ जाती है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर सूर्य देव को पानी में खड़े होकर ही अर्घ्य क्यों दिया जाता है? क्यों नहीं किसी और तरीके से? यह केवल एक धार्मिक रिवाज़ नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपे हैं गहरे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण, जिनसे जुड़ा है हमारे जीवन और प्रकृति का संतुलन. 

कड़ाके की ठंड में पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन यह आवश्यक भी है. इसके बिना छठ पूजा अधूरी है। अर्घ्य केवल व्रती ही नहीं, बल्कि छठ घाटों पर जाने वाले लोग भी देते हैं. व्रती हाथ में सूप, प्रसाद लेकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं. यह अलग बात है कि हमने प्राकृतिक जलस्रोतों की पूजा तो की है, लेकिन उनकी उपेक्षा की है, जिसके परिणामस्वरूप स्वच्छ जल स्रोतों का अभाव है जहाँ हम पानी में खड़े होकर पूजा या स्नान कर सकें. इसलिए, आजकल लोग घर पर ही जलस्रोत तैयार करते हैं, कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं. छठ के दौरान बिना पानी में खड़े हुए सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जाता. आइए जानें ऐसा क्यों है और इसके पीछे क्या मान्यताएँ हैं… जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने के कारण

क्यों छठ में जल में खड़े होकर दिया जाता है अर्घ्य?

सूर्य जीवन और ऊर्जा का दाता है, जबकि जल जीवन का आधार है। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देकर लोग प्रकृति के दोनों स्रोतों का सम्मान करते हैं. हम दोनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि सौर ऊर्जा से जुड़ने का एक वैज्ञानिक और योगिक तरीका है. जल में खड़े होने से सूर्य की किरणें शरीर पर प्रत्यक्ष और परिवर्तित, दोनों रूपों में पड़ती हैं. इससे विटामिन डी का अवशोषण और शरीर की ऊर्जा बढ़ती है. जल में खड़े होने से शरीर का तापमान संतुलित रहता है और तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यह ध्यान के दौरान मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ाता है. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, प्राचीन ग्रंथों में नदी को देवी कहा गया है. जल में खड़े होना अहंकार के त्याग का प्रतीक है, क्योंकि जल सभी को समान रूप से स्पर्श करता है.

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धार्मिक मान्यता यह भी है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं. इसलिए इस समय जल में खड़े होकर पूजा करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि अर्घ्य देते समय जल के छींटे पैरों पर नहीं पड़ने चाहिए. इसलिए कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है.

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