समाज की कई पुरानी परंपराएँ आज भी कुछ जगहों पर लोगों की जिंदगी को प्रभावित करती हैं. इनमें से एक है चौपाड़ी प्रथा, जो मुख्य रूप से नेपाल और हिमालयी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में देखने को मिलती है. इस प्रथा के तहत मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और लड़कियों को अपवित्र मानकर घर से बाहर झोपड़ी या अलग कमरे में रहने को मजबूर किया जाता है. आइए जानते हैं चौपाड़ी प्रथा से जुड़े 10 पहलू और इसके प्रभाव.
चौपाड़ी प्रथा की उत्पत्ति
चौपाड़ी प्रथा सदियों पुरानी मान्यताओं से जुड़ी है. उस समय मासिक धर्म को अपवित्र माना जाता था और महिलाओं को घर से बाहर रखा जाता था. लोग मानते थे कि उनका घर में रहना अशुभ है और देवताओं का अपमान है. धीरे-धीरे यह सोच परंपरा का रूप ले गई और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही. शिक्षा और विज्ञान की कमी के कारण लोग इसे सच मानते रहे. आज जब समय बदल चुका है, फिर भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रथा मजबूती से कायम है.
मासिक धर्म के दौरान नियम
चौपाड़ी प्रथा के अंतर्गत महिलाओं पर कठोर नियम थोपे जाते हैं. मासिक धर्म के दिनों में उन्हें घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती. उन्हें अलग झोपड़ी में रहना पड़ता है जहाँ सुविधाएँ बेहद कम होती हैं. वे परिवार के साथ खाना नहीं खा सकतीं, पूजा-पाठ में भाग नहीं ले सकतीं और घरेलू कार्यों से दूर रहती हैं. यह सब उन्हें समाज से अलग-थलग कर देता है. इन प्रतिबंधों के कारण वे अपने ही घर में परायों जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाती हैं.
स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर
झोपड़ियों में रहने से महिलाओं का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है. अक्सर ये झोपड़ियाँ अस्वच्छ होती हैं, जिनमें धुआँ, धूल, कीड़े-मकोड़े और जानवरों का खतरा बना रहता है. ठंड और बारिश में महिलाएं बीमार पड़ जाती हैं. मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का ध्यान न रखने से संक्रमण और गंभीर बीमारियाँ भी हो सकती हैं. पर्याप्त खाना और पोषण न मिलने से उनकी कमजोरी और बढ़ जाती है. यह परंपरा महिलाओं के शारीरिक स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान पहुँचाती है.

