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Harayana News: 655 अस्पतालों ने बंद किया इलाज, 500 करोड़, कल पानीपत में होगी डॉक्टरों की राज्यस्तरीय बैठक

Harayana News: आयुष्मान भारत योजना 17 दिनों से इलाज बंद , 655 अस्पतालों ने बंद किया इलाज, 500 करोड़ बकाया के चलते फैसला, कल पानीपत में होगी डॉक्टरों की राज्यस्तरीय बैठक

By: Swarnim Suprakash | Published: August 23, 2025 9:02:35 PM IST



हरियाणा से संवाददाता की खास रिपोर्ट 

Harayana News: हरियाणा में आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी अस्पतालों को बकाया भुगतान नहीं मिलने से विवाद गहराता जा रहा है। स्थिति यह है कि प्राइवेट अस्पताल पिछले 17 दिनों से योजना के मरीजों का इलाज नहीं कर रहे हैं।शनिवार को हिसार में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की बैठक हुई। आईएमए जिला अध्यक्ष डॉ. रेणु छाबड़ा भाटिया ने बताया कि अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अस्पतालों को नोटिस भेजकर और डॉक्टरों को परेशान करके अपनी कमियों को छिपाने की कोशिश कर रही है।
इस मुद्दे को लेकर 24 अगस्त को पानीपत में राज्य स्तरीय बैठक बुलाई गई है, जिसमें आगामी आंदोलन की रूपरेखा तय की जाएगी। डॉक्टरों का कहना है कि लगातार भुगतान में देरी के कारण उन्हें मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ा है।

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7 अगस्त से अस्पतालों बंद इलाज 

डॉ. रेनू छाबड़ा ने बताया कि प्रदेश में करीब 655 निजी अस्पताल आयुष्मान भारत-आयुष्मान हरियाणा योजना के तहत कार्डधारकों का इलाज किया जा रहा था जिसे 7 अगस्त से बंद किया हुआ है। अकेले हिसार जिले में 70 निजी अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत अपनी सेवाएं दी जा रही थी। सरकार की तरफ से भुगतान में हो रही देरी के चलते आईएमए को यह फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने बताया कि हरियाणा राज्य के आयुष्मान भारत योजना से पंजीकृत निजी अस्पतालों को बीते कई महीनों से गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की तरफ से मार्च 2025 के बाद से कई अस्पतालों को कोई भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है। अभी भी प्राइवेट अस्पतालों के 400 से 500 करोड रुपए बकाया है।

कर्मचारियों का वेतन और दवाई पर भी क़र्ज़ का असर 

अस्पतालों को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा उन्होंने आरोप लगाया कि अनावश्यक एवं मनमानी कटौतियां क्लेम की गई राशि में बिना स्पष्ट कारण के कटौती कर दी जाती है, जिससे अस्पतालों को भारी वित्तीय नुकसान होता है। पोर्टल पर अस्पतालों द्वारा समय पर डेटा एंट्री और क्लेम अपलोड करने के बावजूद तकनीकी खामियों के कारण क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं। बहुत-सी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार ‌द्वारा तय दरें बेहद कम हैं, जिससे लागत निकालना असंभव हो गया है। बार-बार दस्तावेजों की मांग और क्लेम की प्रक्रिया में अत्यधिक देरी प्रशासनिक बोझ बढ़ा रही है। एक ही मरीज के लिए किए गए बार-बार इलाज को स्कीम से बाहर कर दिया जाता है। इससे न केवल अस्पतालों की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है, बल्कि कर्मचारियों के वेतन और दवाइयों/उपकरणों की खरीदी पर भी असर पड़ रहा है।

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