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China Panda Diplomacy: दुनिया में ऐसे कई जानवर हैं, जोकि काफी आलसी होते हैं. लेकिन अपनी क्यूटनेस के चलते सभी को अपना दीवाना बनाकर रखा हुआ है. इस लिस्ट में पांडा (Panda) आते हैं. काले-सफेद रंग के यह भालू जैसे जानवर हर किसी को पसंद हैं. सोशल मीडिया पर आपको इनके ढेरों वीडियो मिल जाएंगे. बास खाना वाला ये जानवर मुख्य रूप से चीन के पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं.
लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि दुनिया में पांडा को लेकर एक कानून है, जिसके अंतर्गत पांडा चाहे दुनिया में के किसी भी देश में क्यों न हो उन सभी पर चीन का अधिकार होता है. चलिए इसके बारे में और जान लेते हैं.
दुनिया के सभी पांडा पर चीन का हक
चीनी नीति के अनुसार, अगर कोई पांडा किसी दूसरे देश के चिड़ियाघर में रहता है या वहां पैदा होता है, तो भी उसका मालिकाना हक चीनियों के पास ही रहता है. यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह बिल्कुल सच है. दुनिया के सभी पांडा चीन के ही हैं. 2014 की जनगणना के अनुसार, दुनिया में लगभग 1,900 पांडा हैं, जिनमें से लगभग 400 चिड़ियाघरों या प्रजनन केंद्रों में मानव देखरेख में रहते हैं.
लगभग 50 पांडा चीन के बाहर रखे गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अगर कोई पांडा किसी दूसरे देश में पैदा होता है, तब भी चीन का उस पर अधिकार बना रहता है.
चीन की पांडा डिप्लोमेसी क्या है?
दरअसल, चीन पांडा को सिर्फ़ जानवर नहीं, बल्कि अपनी कूटनीति का हिस्सा मानता है. इसे पांडा कूटनीति कहते हैं. चीन अपने पांडा किसी भी देश को तोहफ़े में नहीं, बल्कि उधार में देता है. यानी पांडा चीन की संपत्ति ही रहते हैं, बस थोड़े समय के लिए दूसरे देश भेजे जाते हैं. चीन जिन देशों में पांडा भेजता है, वहां उन्हें देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, जिससे पर्यटन और राजस्व में बढ़ोतरी होती है.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के 2013 के एक अध्ययन के अनुसार, चीन जिस भी देश को पांडा भेजता है, उससे अच्छी-खासी रकम वसूलता है. हर पांडा का किराया लगभग 10 लाख डॉलर प्रति वर्ष है. यह पैसा पांडा संरक्षण परियोजनाओं पर खर्च किया जाता है. अगर किसी दूसरे देश में पांडा का बच्चा पैदा भी होता है, तो उसे चीन की संपत्ति माना जाता है. आम तौर पर, किसी देश को पांडा को 10 साल या एक निश्चित उम्र तक ही रखने की अनुमति होती है.
पांडा डिप्लोमेसी पर एक नजर
पांडा डिप्लोमेसी की शुरुआत कई साल पहले हुई थी. दरअसल, चीन के तांग राजवंश के दौरान, 685 में, महारानी वू ज़ेटियन ने जापानी सम्राट तेनमू को पांडा का एक जोड़ा उपहार में दिया था. इसका आधुनिक उपयोग 1956 में शुरू हुआ, जब चीन ने सोवियत संघ को पिंगपिंग नाम का एक पांडा दिया. बाद में, 1972 में, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा के दौरान, चीन ने अमेरिका को दो पांडा उपहार में दिए.
हालांकि, इसके बाद, अन्य देशों ने भी पांडा की मांग शुरू कर दी, जिसके बाद 1984 में चीन ने अपनी नीति बदली और पांडा उपहार में देने के बजाय उन्हें किराए पर देना शुरू कर दिया.