Vikram Batra Life Story: 1999 की कारगिल जंग का ज़िक्र आते ही एक नाम दिल में बिजली सा दौड़ जाता है- कैप्टन विक्रम बत्रा। 24 साल की उम्र में उन्होंने जो कर दिखाया, वो पीढ़ियों तक साहस का सबक देता रहेगा। उनका कोड नेम था “शेरशाह“ और इस नाम को उन्होंने अपने लहू से अमर कर डाला। आज भी उनकी कहानी लोगों के रौंगटे खड़े करने के लिए मशहूर है।
हिमालय की बर्फीली चोटियों पर, 17 हजार फीट की ऊंचाई पर, ऑक्सीजन की कमी और दुश्मन की गोलियों के बीच विक्रम बत्रा ने जो मिशन पूरे किए, वो किसी फिल्मी सीन से कम नहीं थे। शायद यही वजह रही कि इंडस्ट्री के मेकर्स ने लाखों में से एक बत्रा की कहानी को लोगों तक पहुंचाने का फैसला लिया। Point 5140 पर कब्जा करते समय उन्होंने दुश्मन की मशीन गन को ध्वस्त किया और जीत के बाद रेडियो पर सिर्फ तीन शब्द बोले- “ये दिल मांगे मोर!“। विक्रम बत्रा के मुंह से निकला ये जुमला सिर्फ उनका ही नहीं, पूरे देश का जोश बन गया।
विक्रम बत्रा के साहस की कहानी
लेकिन, असली परख हुई Point 4875 पर। यहां चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि हर कदम मौत को न्यौता देता था। दुश्मन के बंकर करीब थे, गोलियां बरस रही थीं, फिर भी बत्रा ने अपने साथियों के साथ आगे बढ़ते हुए दुश्मन के ठिकानों को साफ किया। इसी लड़ाई में उन्होंने एक घायल साथी को बचाते हुए, खुद दुश्मन की गोली खा ली। उनके आखिरी शब्द थे- “तुम हट जाओ, मुझे पहले जाने दो… जय माता दी!“
कैप्टन विक्रम बत्रा का सफर हिमाचल के छोटे से शहर पालमपुर से शुरू हुआ था। कॉलेज में एनसीसी के साथ खेलों में भी बेहतरीन थे, पर दिल में बस एक ख्वाहिश थी- सेना की वर्दी पहनना। कमीशन मिलने के बाद उन्होंने कश्मीर घाटी में भी कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया, जहां से उनका आत्मविश्वास और भी निखर गया।
परमवीर चक्र से हुए सम्मानित
जुलाई 1999 में उनकी वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज भी उनकी कहानी सुनकर रगों में खून नहीं, बिजली दौड़ने लगती है। उनकी ज़िंदगी साबित करती है कि सच्चा हीरो वही है जो अपने लिए नहीं, बल्कि देश के लिए जीता और मरता है।

