Bihar Shelter Home Scandal: साल 2018 में मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड का खुलासा हुआ, जिसके बाद बिहार में बड़ा राजनीतिक भूकंप आ गया था. इस ‘भूकंप’ से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक जमीन दिल्ली तक हिल गई. इसको लेकर बिहार से लेकर दिल्ली तक प्रदर्शन हुआ. यह प्रदर्शन कई दिनों तक चला. आखिरकार नीतीश सरकार ने प्रदर्शन के डर से जांच SIT को सौंप दी. इसके बाद यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) के पास चला गया. रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2013 से 2018 के बीच बिहार के मुजफ्फरनगर स्थित शेल्टर होम में कम से कम 34 लड़कियों के साथ दुष्कर्म किया गया. एक बार नहीं बल्कि बार-बार इन लड़कियों को हवस का शिकार बनाया गया. विरोध करने पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई. मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड का खुलासा कई किस्तों में हुआ. आरोप तो यह भी है कि दबंग आरोपियों की पहुंच के चलते रिपोर्ट को देरी से जारी किया गया. बेशक इस मामले में जमकर राजनीति भी हुई, क्योंकि विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसमें सत्ता में बैठे कई लोग शामिल हैं. इसके बाद तत्कालीन सामाजिक कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा तक देना पड़ा था. मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले की सुनवाई दिल्ली के साकेत कोर्ट में हुई थी. इस स्टोरी में हम आज बात करेंगे मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड की, इसके गुनहगारों की और इसमें अब तक क्या-क्या हुआ है?
कैसे हुआ मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड का खुलासा (How muzaffarnagar shelter home Scandal exposed)
पहले बात करेंगे कि इस कांड का खुलासा कैसे हुआ? टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) की एक टीम को बिहार में चल रहे प्राइवेट शेल्टर होम का सर्वे करना था. इसी सिलसिले में TISS की एक टीम ने बिहार के तत्कालीन सामाजिक कल्याण विभाग के मुख्य सचिव अतुल प्रसाद से मुलाकात की और इस काम में मदद मांगी. अतुल प्रसाद को TISS का यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया, लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रख दी. उन्होंने सुझाव के साथ शर्त रखी कि TISS प्राइवेट शेल्टर होम के साथ सरकारी शेल्टर होम का भी सर्व करे. उनका मकसद सरकारी शेल्टर होम की रिपोर्ट के आधार पर उनमें खामियों को दूर करना था. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) की टीम ने अपनी जांच में पाया कि बिहार में 100 से अधिक शेल्टर होम्स हैं. जांच के दौरान TISS की टीम को 15 शेल्टर होम्स में गड़बड़ियां मिलीं. इन्हीं 15 में से एक था- मुजफ्फरनगर बालिका गृह यानी मुजफ्फरनगर शेल्टर होम. रिपोर्ट में सामने आया कि इस शेल्टर होम में कुल 44 लड़कियां रहती थीं, जिनमें ज्यादातर मानसिक रूप से कमजोर थीं. इस शेल्टर होम को सरकार की ओर से आर्थिक मदद मिलती थी, इसलिए यह सवालों के घेरे में आ गया. इसका संचालक था ब्रजेश ठाकुर.
ब्रजेश ठाकुर था मास्टरमाइंड (Brajesh Thakur was the mastermind)
मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड का खुलासा सितंबर, 2018 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) की रिपोर्ट से हुआ था, जिसके बाद देशभर में बवाल मच गया. इस रिपोर्ट के बाद CBI जांच शुरू हुई और ब्रजेश ठाकुर समेत 19 लोगों को दोषी पाया गया. ब्रजेश को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. हम यहां पर बात कर रहे हैं मुजफ्फरनगर बालिका गृह कांड में लगे आरोपों की. हैरत की बात यह है कि TISS ने अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार के अधीन समाज कल्याण विभाग को फरवरी, 2018 में ही सौंप दी थी. बताया जाता है कि आरोपी ब्रजेश ठाकुर के दबाव में यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. इस बीच अप्रैल, 2018 में इस रिपोर्ट के कुछ हिस्से लीक हो गए. इस बीच 29 मई को इस मामले में नया ट्विस्ट आ गया, जबकि यह जानकारी मीडिया के जरिये सामने आई कि सरकार मुजफ्फरनगर बालिका गृह की लड़कियों को दूसरे शेल्टर होम में शिफ्ट किया जा रहा है. विपक्ष को मुद्दा मिल गया. सरकार पर दबाव बनने लगा. नीतीश सरकार ने 31 मई, 2018 को जांच के लिए एसआईटी बना दी. विपक्ष हंगामा करने पर उतारू था, इसलिए मुजफ्फरनगर बालिका गृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत 11 लोगों पर FIR करा दी गई. इस FIR में शेल्टर होम में रह रहीं लड़िकयों से दुष्कर्म करने, सामूहिक दुष्कर्म करने, बच्चियों के प्रति क्रूरता के साथ POCSO एक्ट की धाराएं भी आरोपियों पर लगाई गईं. विपक्ष ने प्रदर्शन जारी रखा. इसके बाद 3 जून, 2018 को आरोपी ब्रजेश ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच की कड़ी में मुजफ्फरनगर बालिका गृह की सभी लड़कियों की मेडिकल जांच की गई. इनमें 34 लड़कियों के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई. हालांकि, एक महीने बाद इस जांच रिपोर्ट का खुलासा किया गया. ऐसे में सरकार पर तथ्य छिपाने के आरोप लगे. वहीं, सीबीआई द्वारा मामला अपने हाथ में लेने के एक हफ़्ते बाद बिहार के समाज कल्याण विभाग ने राज्य भर के 14 ज़िला अधिकारियों को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया.
आरोप-1
TISS की रिपोर्ट सामने आने के बाद जांच में कई हैरान करने वाली जानकारी सामने आई. बालिका गृह में लड़कियों के साथ दर्दनाक और अमानवीय अत्याचार होते थे. शेल्टर होम में रह रहीं लड़कियों का आरोप था कि बाल कल्याण समिति के सदस्य विकास कुमार हर मंगलवार को कुछ लोगों के साथ आते थे और ‘गंदा काम’ करते थे. इसमें एक महिला शाइस्ता परवीन का नाम सामने आया था. इस महिला को शेल्टर होम में रहने वाली लड़कियां ‘मधु आंटी’ कहती थीं. आरोप है कि मधु लड़कियों की पिटाई करती थीं. कोई विरोध करता या कोशिश करता तो खाने-पीने पर पाबंदी लगा देती थीं. पीड़ित लड़कियों का कहना था कि हाउस मदर मीनू देवी उन्हें नशे की दवा देती थी, जबकि बाल संरक्षण पदाधिकारी रवि रोशन भी लड़कियों का यौन शोषण करता था. रवि रोशन यहां पर रह रही लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने के लिए दबाव बनाता था.
आरोप-2
मामला दर्ज होने के बाद मुजफ्फरनगर बालिका गृह में रह रहीं 42 लड़कियों की मेडिकल जांच की गई तो पता चला कि 34 लड़कियों को महीनों तक नशीला पदार्थ दिया गया. इतना ही नहीं उन्हें प्रताड़ित किया गया, मारा-पीटा गया और उनके साथ बार-बार दुष्कर्म किया गया. ज्यातातर लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया.
आरोप-3
यह भी सामने आया था कि स्थानीय ज़िला अधिकारियों की आपत्तियों के बावजूद आरोपी ब्रजेश ठाकुर को बालिका गृह परियोजना की अनुमति मिली थी. आरोप है कि इमारत का एंट्री गेट काफी छोटा था. यहां पर अनिवार्य सीसीटीवी नेटवर्क का अभाव था. ऐसे परिसरों में नाइट विज़न सुविधा वाले हाई डेफ़िनिशन कैमरे होने चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. निगरानी हार्ड डिस्क ड्राइव में लगभग 30 दिनों की फुटेज होनी चाहिए, लेकिन बालिका गृह में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी.
आरोप-4
3 जून को आरोपी ब्रजेश ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद जांच तेजी से आगे बढ़ी. इस दौरान यानी समाज कल्याण विभाग द्वारा किए गए निरीक्षणों से जानकारी मिली थी कि बालिका गृह से 11 महिलाएं और चार बच्चे गायब हैं. जांच की कड़ी में मुजफ्फरपुर पुलिस की छापेमारी में में बालिका गृह से भारी मात्रा में नशीले पदार्थ और कंडोम के पैकेट बरामद किए. इससे साफ था कि लड़कियों ने जो आरोप लगाए, उसमें काफी सत्यता थी. दावा किया गया था कि जांच के दौरान इमारत की छत पर इस्तेमाल किए गए कंडोम और शराब की खाली बोतलें बिखरी पड़ी थीं.
कौन था मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर (who was brajesh Thakur)
ब्रजेश ठाकुर बिहार में काफी दबंग शख्स था. वह ‘प्रातः कमल’ नाम से अखबार चलाता था. इसके दम पर उसने कई ठेके भी हासिल कर लिए थे. उसके बिहार के कई राजनेताओं से संबंध थे. वह ‘प्रातः कमल’ समाचार पत्र के अलावा अंग्रेज़ी में न्यूज़ नेक्स्ट और उर्दू में हालात-ए-बिहार भी निकालता था. ब्रजेश ठाकुर ने प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) से मान्यता भी प्राप्त कर ली है. इतना ही नहीं ब्रजेश ठाकुर ने बिहार सरकार की प्रेस मान्यता समिति की सदस्यता भी हासिल कर ली थी. ब्रजेश ठाकुर ने 1995 के विधानसभा चुनाव में कुढ़नी (मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला) से बीपीपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली. नवंबर 2013 में ब्रजेश ठाकुर ने मुज़फ़्फ़रपुर के साहू रोड स्थित अपने आवास से सटी एक इमारत में बालिका गृह खोला था. यहां पर रह चुकी 471 लड़कियों में से तीन की मौत हो गई और चार भाग गईं. ब्रजेश ठाकुर का एनजीओ बेसहारा महिलाओं के लिए एक दूसरा आश्रय गृह और स्वाधार गृह भी चलाता था.
यहां जानें घटना का सिलसिलेवार ब्योरा
- अक्टूबर, 2017 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की एक टीम ने मुजफ्फरपुर में बालिका गृह का दौरा किया और सामाजिक ऑडिट के लिए संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत अन्य लोगों का साक्षात्कार भी लिया था.
- नवंबर, 2017 बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष हरपाल कौर ने आश्रय गृह को स्थानांतरित करने की सिफारिश की.
- दिसंबर 2017 मुजफ्फरपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने एक अनुस्मारक भेजा.
- 26 अप्रैल, 2018 को TISS ने राज्य के समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव अतुल प्रसाद को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में आश्रय गृह में रहने वालों के यौन शोषण की ओर इशारा किया गया है. तत्काल कार्रवाई करने के बजाय, विभाग ने TISS से रिपोर्ट का संपादित और मुद्रित संस्करण प्रस्तुत करने के लिए कहा.
- 9 मई को TISS ने संशोधित रिपोर्ट प्रस्तुत की। समाज कल्याण विभाग ने रिपोर्ट की प्रतियों के प्रकाशन के लिए निविदा जारी की.
- 26 मई पटना में एक बैठक में जिला अधिकारियों के बीच रिपोर्ट वितरित की गई.
- 31 मई अंततः ठाकुर के एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई; 44 कैदियों को पटना, मोकामा और मधुबनी के आश्रय स्थलों में स्थानांतरित किया गया है.
- 3 जून को ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया। कैदियों की मेडिकल जाँच में बलात्कार और यौन शोषण की पुष्टि हुई.
- 26 जुलाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की.
- 29 जुलाई सीबीआई ने कार्यभार संभाला.
- 6 अगस्त पटना उच्च न्यायालय मामले की निगरानी के लिए सहमत.
- 8 अगस्त बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि ठाकुर के कॉल रिकॉर्ड से उनके पति चंद्रेश्वर वर्मा के साथ उनके करीबी संबंध होने का पता चला.
- मामले की जटिलता को देखते हुए 28 नवंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ये केस CBI को ट्रांसफर कर दिया.
किन्हें मिली सजा
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने बालिका गृह कांड में ब्रजेश ठाकुर के अलावा जिन लोगों को सजा सुनाई गई थी. रवि रोशन, विकास कुमार, दिलीप कुमार, विजय तिवारी, गुड्डू पटेल, कृष्णा राम, रामानुज ठाकुर, रामा शंकर सिंह, अश्विनी, शाइस्ता परवीन, इंदु कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, किरण कुमारी और रोजी रानी शामिल थे. इन सभी पर अलग-अलग आरोप थे और इन्हें अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं थी. 2020 में दिल्ली के साकेत कोर्ट ने इस मामले के सभी 19 आरोपियों को सज़ा सुनाई. इस मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर को आजीवन कारावास की सज़ा और 32 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया. अन्य आरोपियों को भी इस मामले में उनकी संलिप्तता के आधार पर अलग-अलग सजाएं मिलीं.

