Marhaura Seat Ka Samikaran: बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद अब राजनीतिक पार्टियों की ओर से सीटों के समीकरण को ध्यान में रखते हुए तैयारी शुरू हो चुकी है. ऐसे में आज हम एक ऐसे सीट की बात करेंगे, जो राजद का परंपरागत गढ़ माना जाता है. हम बात कर रहे हैं मढ़ौरा विधानसभा सीट की. यह सीट सारण जिले में पड़ता है.
मढ़ौरा क्षेत्र न सिर्फ राजनीतिक बल्कि औद्योगिक गतिविधियों के लिए भी सुर्खियों में रहा है. यदुवंशी राय ने 1995 और 2000 में विधायक बनकर इस क्षेत्र में राजद की जड़ें मजबूत की थीं. उनके निधन के बाद बेटे जीतेंद्र कुमार राय ने इस विरासत को आगे बढ़ाया. जीतेंद्र 2010, 2015 और 2020 में जीत दर्ज कर विधायक बने और 2022 में राज्य सरकार में मंत्री भी बनाए गए.
शिवरात्रि पर लगता है विशाल मेला
यहां का शिल्हौरी मंदिर, जो शिवपुराण और रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित है, धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां देवर्षि नारद का मोहभंग हुआ था. हर शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है और देशभर से श्रद्धालु बाबा शिलानाथ के दर्शन के लिए आते हैं. यह प्राचीन स्थान मढ़ौरा से 3.5 किमी दूर है. इसी क्षेत्र में स्थित है मां गढ़देवी शक्तिपीठ, जो एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है.
मान्यता है कि सती माता के अंगों से रक्त की कुछ बूंदें इस स्थान पर गिरी थीं, जिससे यह शक्ति स्थल के रूप में विख्यात हुआ. चैत्र और दुर्गा पूजा के समय यहां लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं. मढ़ौरा का एक जीर्ण-शीर्ण मध्ययुगीन किला, अपनी प्राचीन वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है.
इस वजह से भी मशहूर था मढ़ौरा
माना जाता है कि यह किला एक स्थानीय सरदार का निवास स्थान था, जो शासन और कर संग्रहण का कार्य देखता था. मढ़ौरा कभी अपनी मशहूर मॉर्टन चॉकलेट फैक्ट्री के लिए देशभर में जाना जाता था. 1929 में सी एंड ई मॉर्टन लिमिटेड की ओर से स्थापित यह फैक्ट्री चॉकलेट, टॉफी और कुकीज बनाती थी और हजारों लोगों को रोजगार देती थी.
चीनी मिलों और अन्य कारखानों के साथ मढ़ौरा कभी एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र था, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी और श्रम विवादों के कारण 1997 में यह फैक्ट्री बंद हो गई. मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र के कारखाने में बने रेल डीजल इंजन विदेशी धरती पर अपनी छाप छोड़ते हैं. रेल इंजन की पहली खेप हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी अफ्रीका के गिनी गणराज्य के लिए भेजी थी. फिलहाल, मढ़ौरा में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं.
कब किसे मिले जीत?
1952- राम स्वरूप देवी- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1952- जनार्दन प्रसाद सिंह- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1957- देवी लालजी- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1962- सूरज सिंह- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1967– देवी लालजी- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1969- भीष्म प्रसाद यादव- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1972- सूर्य सिंह- जनता पार्टी
198- भीष्म प्रसाद यादव- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1985- भीष्म प्रसाद यादव- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1990- सुरेंद्र शर्मा- निर्दलीय
1995- यदुवंशी राय- जनता दल
2000- यदुवंशी राय- राष्ट्रय जनता दल
2005- लाल बाबू राय- निर्दलीय
2005- लाल बाबू राय- निर्दलीय
2010 जीतेन्द्र कुमार राय- राष्ट्रीय जनता दल
2015- जीतेन्द्र कुमार राय- राष्ट्रीय जनता दल
2020- जीतेन्द्र कुमार राय- राष्ट्रीय जनता दल
यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या अधिक
बता दें कि मढ़ौरा विधानसभा सीट बिहार की उन सीटों में शामिल है, जहां पर जातीय समीकरण और उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि दोनों ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं. सारण लोकसभा के अंतर्गत आने वाली इस सीट पर यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या अधिक है, जो लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कोर वोट बैंक माने जाते हैं. यही कारण है कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों 2010, 2015 और 2020 में इस सीट पर राजद के जितेन्द्र कुमार राय ने लगातार जीत दर्ज की है.
2020 के चुनाव में राजद के जितेन्द्र कुमार राय का मुकाबला जदयू के अल्ताफ आलम राजू से था. चुनाव त्रिकोणीय होता, अगर लोजपा ने यहां उम्मीदवार उतारा होता, लेकिन लोजपा का प्रभाव इस सीट पर सीमित रहा. जितेन्द्र कुमार राय ने जदयू के अल्ताफ आलम को 11,385 वोटों के अंतर से हराकर हैट्रिक पूरी की थी.