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क्या बिहार बदल रहा है राजनीतिक दिशा? विपक्ष का आरोप ध्रुवीकरण ने AIMIM को दी चुनावी बढ़त

Bihar Election news: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन किया है.

By: Shubahm Srivastava | Published: November 16, 2025 11:49:56 PM IST



AIMIM In Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र फिर से राज्य की राजनीति का केंद्र बना रहा, जहां असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने अपने प्रभाव को मजबूत करते हुए न केवल 2020 की पांचों सीटें—अमौर, बहादुरगंज, बैसी, जोकीहाट और कोचाधामन—बरकरार रखीं, बल्कि कई अन्य सीटों पर महागठबंधन को निर्णायक रूप से नुकसान पहुंचाया. पार्टी ने इस बार 1.85% का कुल वोट शेयर प्राप्त किया, जो पिछले चुनाव के 1.3% से अधिक है. इससे यह स्पष्ट होता है कि एआईएमआईएम ने सीमांचल में अपने सामाजिक और धार्मिक मुद्दों के आधार पर खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित किया है.

AIMIM की बढ़ती लोकप्रियता से हुआ मुस्लिम वोटों का विभाजन

चुनाव के दौरान और बाद में विपक्ष, विशेष रूप से राजद और कांग्रेस, ने एआईएमआईएम पर आरोप लगाया कि उनकी उपस्थिति और उनकी राजनीति ने बिहार में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है. महागठबंधन का आरोप है कि एआईएमआईएम की बढ़ती लोकप्रियता से मुस्लिम मतों का विभाजन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एनडीए को फायदा मिला. यह आरोप कुछ सीटों के परिणामों से भी झलकता है. उदाहरण के लिए, कस्बा में कांग्रेस उम्मीदवार को 74,002 वोट मिले लेकिन एआईएमआईएम उम्मीदवार ने 35,309 वोट हासिल कर लिया. इससे एनडीए के नितेश कुमार सिंह ने 86,977 वोटों के साथ भारी जीत दर्ज की. 

इसी तरह बलरामपुर में भी एआईएमआईएम के उम्मीदवार ने 80,070 वोट हासिल किए, जो महागठबंधन उम्मीदवार को मिले 79,141 वोटों से अधिक थे. इन दोनों ही सीटों पर एआईएमआईएम के वोटों ने सीधे महागठबंधन की हार सुनिश्चित की.

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सीमांचल और आसपास के क्षेत्रों में कमजोर हुई महागठबंधन की पकड़

महागठबंधन के एक वरिष्ठ मुस्लिम नेता ने स्वीकार किया कि सीमांचल और आसपास के क्षेत्रों में एआईएमआईएम की बढ़ती पैठ ने उनकी पकड़ कमजोर कर दी है. उन्होंने कहा कि बिहार में पहले कहा जाता था कि ध्रुवीकरण की राजनीति काम नहीं करती, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि यह धीरे–धीरे प्रभावी हो रही है. मुस्लिम समुदाय में एआईएमआईएम की अपील बढ़ने के पीछे ओवैसी के तेज़, भावनात्मक और आक्रामक भाषणों को मुख्य कारण बताया जा रहा है. उनके “गयूर मुसलमान” वाले बयान ने मुस्लिम युवाओं में पहचान की राजनीति को बल दिया. चुनाव प्रचार के दौरान ओवैसी और कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी के बीच हुई सार्वजनिक नोकझोंक ने भी चर्चा को हवा दी और सीमांचल में एआईएमआईएम को केंद्र में ला दिया.

तेजस्वी और ओवैसी में नहीं बनी बात

राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी एआईएमआईएम पर तीखा हमला किया और कहा कि अतिवाद के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है, इसी वजह से गठबंधन संभव नहीं था. राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवल किशोर ने तो यहां तक कहा कि एआईएमआईएम की राजनीति भाजपा के हित में काम करती है. उनका आरोप है कि एआईएमआईएम नेताओं को कभी ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग की जांच का सामना नहीं करना पड़ा, जो ‘राजनीतिक संदेह’ को बढ़ाता है.

एआईएमआईएम का सीमांचल में बड़ा दाव 

एआईएमआईएम का दावा है कि दलितों और मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में नौकरी, प्रतिनिधित्व और अवसर नहीं दिए गए, और इसी असमानता के खिलाफ वे राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. इसी के चलते सीमांचल में उनका प्रभाव बढ़ा और महागठबंधन की पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक पर सीधी चोट हुई.

कुल मिलाकर, सीमांचल में एआईएमआईएम की मजबूती ने बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण पैदा कर दिया है—जहां मुद्दे, पहचान और ध्रुवीकरण तीनों निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं.

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