Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में एनडीए को प्रचंड जीत मिलने के बाद अब सबकी नजरें सीएम चेहरे पर टिकी हुई है, जहां एक तरफ बीजेपी की तरफ से अभी तक मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई बयान सामने नहीं आया है. तो वहीं दूसरी तरफ जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले मनीष वर्मा ने बड़ा बयान देकर हलचल तेज कर दी है.
उन्होंने स्पष्ट कहा कि नीतीश कुमार ही बिहार के मुख्यमंत्री थे, हैं और आगे भी रहेंगे, क्योंकि चुनाव उन्हीं के चेहरे और नेतृत्व में लड़ा गया है. उनके अनुसार जनता ने नीतीश-मोदी की जोड़ी पर भरोसा जताया है और सहयोगी दल भी पहले ही नीतीश के नेतृत्व पर सहमति जता चुके हैं.
‘बिहार को अधिक पूंजी निवेश की जरूरत’
मीडिया से बातचीत में मनीष वर्मा ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर कहा कि यह मुद्दा वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन इसमें तकनीकी बाधाएं हैं, इसलिए विशेष पैकेज दिया गया. उन्होंने जोर देकर कहा कि बिहार को विकास की रफ्तार बनाए रखने के लिए विशेष सहायता, अधिक पूंजी निवेश और केंद्र से निरंतर सहयोग की आवश्यकता है. उनका कहना था कि बिहार ने लो-बेस से विकास की शुरुआत की है, इसलिए मोमेंटम बनाए रखने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत होगी.
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‘नीतीश ने चुनाव में 84 रैलियां तथा कई रोड शो किए’
तेजस्वी यादव पर हमला बोलते हुए मनीष वर्मा ने कहा कि विपक्ष व्यक्तिगत हमले कर रहा था, जबकि उनके अपने घर में भी बुजुर्ग माता-पिता हैं जिनका सम्मान होना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष ने चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार को बीमार बताकर जनता को भ्रमित करने की कोशिश की, लेकिन जनता ने इसका करारा जवाब दिया. वर्मा के अनुसार नीतीश स्वयं छह महीने से लगातार जिलों के दौरे कर विकास कार्यों की समीक्षा कर रहे थे और चुनाव में 84 रैलियां तथा कई रोड शो किए.
‘विपक्ष ने गैर-जरूरी मुद्दों और असंभव वादों पर चुनाव लड़ा’
राहुल गांधी पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि राहुल ऐसे मुद्दे उठाते हैं जो जनता से जुड़े नहीं हैं, जैसे वोट कटने जैसी शिकायतें. उन्होंने दावा किया कि यह चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष था और प्रचंड बहुमत का श्रेय जनता को जाता है जिसने नीतीश कुमार के 20 साल के कामकाज पर भरोसा जताया.
महागठबंधन की करारी हार के कारणों पर उन्होंने कहा कि विपक्ष ने गैर-जरूरी मुद्दों और असंभव वादों पर चुनाव लड़ा, जैसे हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा. यह जनता को स्वीकार नहीं हुआ, जिसके कारण एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला.
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