Bihar News: बिहार के छह जिलों में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि कई स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में यूरेनियम (U-238) मौजूद है. ये बहुत चिंता की बात इसलिए है क्योंकि शिशु अपने जीवन के शुरुआती महीनों में केवल मां के दूध पर निर्भर होते हैं. ऐसे में किसी भी प्रकार के रासायनिक तत्व का होना उनके दिमाग और शरीर के विकास को प्रभावित कर सकता
है.
अध्ययन बेगूसराय, कटिहार, समस्तीपुर, भोजपुर, खगड़िया और नालंदा जिलों में किया गया. इनमें कटिहार जिले में सबसे ज्यादा यूरेनियम पाया गया. ये अध्ययन इन जिलों में रह रही 40 स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध के सैंपल पर बेस्ड था. माताओं की उम्र 17 से 35 साल के बीच थी. इन जिलों का चयन इसलिए किया गया क्योंकि यहां पहले से भूजल में यूरेनियम की मिलावट के संकेत मिले थे.
अध्ययन किसने किया
इस शोध को कई मेन संस्थानों ने मिलकर पूरा किया, जिनमें शामिल हैं-
महावीर कैंसर संस्थान और रिसर्च सेंटर, पटना
एम्स (AIIMS), दिल्ली
भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), रांची
यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज़, देहरादून
इन सभी संस्थानों ने मिलकर ये समझने की कोशिश की कि माताओं के शरीर में यूरेनियम कैसे पहुंच रहा है और इसका असर शिशुओं की सेहत पर क्या हो सकता है.
यूरेनियम शरीर में कैसे पहुंचता है
यूरेनियम एक नेचुरल भारी धातु है, जो कई क्षेत्रों में जमीन और चट्टानों के अंदर मौजूद होती है. समय के साथ ये भूजल (Groundwater) में घुल जाता है.
अगर लोग ऐसा पानी पीते हैं या इसका इस्तेमाल खाना बनाने में करते हैं, तो ये धीरे-धीरे शरीर में जमा होने लगता है.
बिहार के कई जिलों में भूजल में यूरेनियम की मौजूदगी पहले भी दर्ज की गई है. 11 जिलों में इसकी पुष्टि पहले हो चुकी है, जैसे – गोपालगंज, सारण, सीवान, पूर्वी चंपारण, पटना, वैशाली, नवादा, नालंदा, सुपौल, कटिहार और भागलपुर. पूरे देश के 18 राज्यों में 151 जिलों में भूजल में यूरेनियम पाया गया है. यही कारण है कि अब ये धातु माताओं के शरीर में पहुंचकर स्तन दूध तक पहुंचा है.
यूरेनियम का शिशुओं पर संभावित असर
शिशु के शरीर का विकास जन्म के बाद तेजी से होता है. अगर कोई हानिकारक पदार्थ उनके शरीर में जाए, तो उसके प्रभाव लंबे समय तक रह सकते हैं. अध्ययन के अनुसार यूरेनियम के कारण-
शिशुओं का IQ कम हो सकता है
दिमागी विकास धीमा पड़ सकता है
नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को नुकसान हो सकता है
आगे चलकर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ हो सकती हैं
यूरेनियम शरीर में जमा रहता है और धीरे-धीरे असर दिखाता है, इसलिए विशेषज्ञ इसे बेहद गंभीर मामला मानते हैं.
माताओं के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ा
अध्ययन में ये बात भी सामने आई कि यूरेनियम की मौजूदगी के बावजूद माताओं की सेहत पर फिलहाल कोई बड़ा प्रभाव नहीं देखा गया. शोधकर्ताओं के अनुसार ये संभव है क्योंकि- जितनी मात्रा पाई गई, वो अभी अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम थी. शरीर में मौजूद मात्रा तुरंत गंभीर बीमारी नहीं लाती, लेकिन लंबे समय में इसका असर हो सकता है. इसलिए माताओं के लिए भी सतर्क रहना जरूरी है.
स्तन दूध में यूरेनियम के लिए कोई तय सीमा नहीं
अंतरराष्ट्रीय लेवल पर स्तन दूध में यूरेनियम के लिए कोई स्पष्ट सीमा नहीं बनाई गई है. हालांकि, पीने के पानी के लिए कुछ मानक हैं:
WHO: 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर
जर्मनी: 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर
शोध में पाया गया कि माताओं के दूध में यूरेनियम की मात्रा इन सीमाओं से कम थी, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ये स्थिति सुरक्षित मानी नहीं जा सकती, क्योंकि शिशु बहुत छोटे होते हैं और उनके शरीर में ऐसी धातुएं अधिक तेजी से असर डालती हैं.
यह अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है
ये बिहार में पहली बार हुआ कि किसी अध्ययन ने सीधे स्तन दूध में यूरेनियम की मौजूदगी की जांच की. इससे ये साफ होता है कि भूजल की समस्या अब व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालने लगी है. शोधकर्ताओं के अनुसार- प्रभावित क्षेत्रों में बड़े स्तर पर जैव-निगरानी (Bio-monitoring) की जरूरत है, भूजल के स्रोतों की नियमित जांच होनी चाहिए और लोगों को सुरक्षित और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए.