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Chhath Puja 2025: सदियों से चल रही है छठ पूजा की परंपरा! यहां जानें कैसे हुई शुरुआत, क्या है इतिहास?

Chhath Puja History: छठ पूजा का त्योहार आज से नहीं बल्कि, सदियों से मनाया जा रहा है. छठ पूजा के लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं हैं. चलिए जानते हैं यहां कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत? और क्या है छठ पूजा का इतिहास?

By: chhaya sharma | Published: October 24, 2025 8:01:55 PM IST



Chhath Puja ki shuruat kaise Hui: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि पर छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन इस त्योहार की शुरुआत चार दिन पहले से ही हो जाती है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय होती है और इस दौरान विशेष पूजन और अनुष्ठान किया जाता है. छठ पूजा में सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा की जाती है. इस त्योहार के दौरान महिलाएं 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई? किसने किया पहली बार छठ पूजा का व्रत? क्या है छठ पूजा का इतिहास? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं यहां. सबसे पहले जानते हैं साल 2025 में कब है छठ पूजा 

कब है छठ पूजा?  (When is Chhath Puja 2025? )

हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा के त्योहार की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है और इसका समापन सप्तमी तिथि पर होता है. ऐसे में साल 2025 में छठ पूजा के त्योहार की शुरुआत 25 अक्टूबर से होगी और इसका समापन 28 अक्टूबर को होगा. 

कैसे हुई छठ पूजा की शुरुआत (How Did Chhath Puja Begin?)

छठ पूजा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं. कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत बिहार एक जिले मुंगेर से हुई थी. मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहला छठ पूजन  बिहार एक जिले मुंगेर में गंगा तट पर माता सीता ने किया था. तभी से छठ पूजा की शुरुआत हुई थी. वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार बिहार के जिले मुंगेर में माता सीता ने छह दिनों तक छठ पूजन किया था. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि भगवान राम को रावण वध का पाप लगा था. 

मुग्दल ऋषि के कहने पर किया था मा सीता ने छठ का व्रत 

पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के कहने पर प्रभु श्री राम ने फैसला किया वो राजसूय यज्ञ कराएंगे. इसके बाद मुग्दल ऋषि को आमंत्रण भेजा गया, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम और माता सीता को  उनके आश्रमआने का आदेश दिया. इसके बाद उन्होंने माता सीता को सूर्य की अराधना करने की सलाह दी. मुग्दल ऋषि के कहने पर माता सीता ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर भगवान सूर्य की अराधना की और डूबते सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर उदयगामी सूर्य को पूर्व दिशा की ओर अर्घ्य दिया था. 

आज भी मौजुद है माता सीता के चरणों के निशान

जिस जगह पर माता सीता ने छठ का व्रत किया था वह आज सीता चारण मंदिर के नाम से भारत में प्रसिद्ध है. मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं. साथ ही शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान भी वहा दिखते हैं.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है. पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें. Inkhabar इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है.

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