Home > अजब गजब न्यूज > Ajab Gajab News : गधों का दुल्हन जैसा श्रृंगार और पूजा, राजस्थान के गांव की यह अनोखी रस्म जानकर रह जाएंगे आप भी हैरान

Ajab Gajab News : गधों का दुल्हन जैसा श्रृंगार और पूजा, राजस्थान के गांव की यह अनोखी रस्म जानकर रह जाएंगे आप भी हैरान

Ajab Gajab News : राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में हर साल दिवाली के अगले दिन गधों की पूजा की एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है. कुम्हार समुदाय अपने जीवन में गधों के योगदान के प्रतीक के रूप में उन्हें दुल्हन की तरह सजाता है और गधा दौड़ का आयोजन करता है. इस दौरान गधों को स्वादिष्ट व्यंजन भी खिलाए जाते हैं.

By: Shivashakti Narayan Singh | Published: October 23, 2025 8:52:53 PM IST



Rajasthan Unique Tradition: राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल गांव में गधों की विशेष पूजा की जाती है. उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है. पुराने लोग कहते हैं कि जिस तरह किसान बैलों की पूजा करते हैं, उसी तरह कुम्हार समुदाय गधों की पूजा करता है. प्राचीन काल में, जब परिवहन और माल ढुलाई के साधन नहीं थे, तब गधों का उपयोग माल ढोने के लिए किया जाता था. यह परंपरा तब से शुरू हुई. कुम्हार (प्रजापति) समुदाय वर्षों से गधों (बैशाखी नंदन) की पूजा करने की परंपरा का पालन करता आ रहा है.

कब शुरू हुई थी परंपरा?

यह परंपरा तब शुरू हुई जब गधे कुम्हार (प्रजापति) समुदाय की आजीविका का मुख्य स्रोत थे. ये गधे तालाबों और अन्य जल स्रोतों से काली मिट्टी लाते थे, जिसका उपयोग कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने में करते थे. समुदाय ने उनकी सेवा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए इस पूजा की शुरुआत की. यह आयोजन हर साल दिवाली के अगले दिन, गोवर्धन पूजा के दिन, प्रतापनगर चौक पर आयोजित किया जाता है. मंडल और आसपास के गांवों से सैकड़ों लोग इस आयोजन में शामिल होते हैं. पूजा की शुरुआत गधों की पूजा से होती है, जिसमें उन्हें तरह-तरह के व्यंजन खिलाए जाते हैं. इसके बाद “गधा दौड़” या “भड़काया” का आयोजन होता है.

इस कारण परंपरा का निर्वहन

मंडल में वैशाख नंदन उत्सव लगभग 70 वर्षों से मनाया जा रहा है. “हमारे पूर्वज हर घर में गधे रखते थे. वे हमारी आजीविका का साधन थे. अब, जैसे-जैसे संसाधन बढ़ रहे हैं, उनकी संख्या घट रही है.” फिर भी, हम उन्हें नहीं भूले हैं, और हमारे पूर्वज दिवाली पर उनकी पूजा करते थे. उसी परंपरा का पालन करते हुए, हम भी दिवाली के दूसरे दिन, अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के दिन उनकी पूजा करते हैं. जिस तरह किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं, उसी तरह हम कुम्हार समुदाय भी इस परंपरा को निभा रहे हैं.

गधों को विशेष सम्मान दिया जाता है

दौड़ में प्रथम आने वाले गधे को विशेष सम्मान दिया जाता है. इस परंपरा को जीवित रखने के लिए, कुम्हार समुदाय आस-पास के जंगलों और गाँवों से गधों को ढूंढ़कर उनकी पूजा करता है. यह आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि कुम्हार समुदाय की कड़ी मेहनत और आजीविका की ऐतिहासिक झलक भी प्रस्तुत करता है. आधुनिकता के इस दौर में भी, यह परंपरा समुदाय की सांस्कृतिक विरासत के रूप में जीवित है.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है

Advertisement