Ram Ayodhya return: हर साल कार्तिक महीने (Kartik Month) की अमावस्या (Amavsya) को मनाई जाने वाली दिवाली (Diwali), केवल एक पर्व नहीं बल्कि आस्था, आनंद और आध्यात्मिकता का संगम है. इस साल 20 अक्टूबर 2025, सोमवार को दीपों का यह महापर्व देशभर में उल्लास के साथ मनाया जाएगा. दीपावली के दिन जब घर-आंगन में दीपक झिलमिलाते हैं, मिठाइयों की खुशबू फैलती है और हवा में भक्ति-उल्लास का रंग घुल जाता है, तो हर दिल यही कहता है- “अंधकार मिटा, अब रोशनी का समय है.”
लेकिन, दिवाली की चमक केवल एक ही कहानी से नहीं जुड़ी, बल्कि यह पर्व कई युगों और परंपराओं की कथाओं से जुड़ा है. कहीं यह भगवान राम की अयोध्या वापसी का प्रतीक है, तो कहीं मां लक्ष्मी के अवतरण का दिन और कहीं महावीर स्वामी के निर्वाण का स्मरण.
जब राम लौटे अयोध्या
त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर रावण का वध कर सीता और लक्ष्मण संग अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों की खुशी का ठिकाना न रहा. कहा जाता है, उस रात अंधकार से भरी अमावस्या थी. लेकिन अयोध्यावासियों ने हर घर, हर गली, हर मंदिर में दीप जलाकर ऐसा उजाला किया कि रात दिन जैसी लगने लगी. यही वह क्षण था जब अंधकार पर प्रकाश की विजय, दीपावली का अर्थ बना.
जब क्षीर सागर से प्रकट हुईं मां लक्ष्मी
दूसरी कथा देव-दानवों के समुद्र मंथन की है. कहा जाता है कि जब क्षीर सागर का मंथन हुआ, तब 14 रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी थीं.जब वे प्रकट हुईं, तो जगमगाहट और वैभव का संचार हुआ. इसलिए कार्तिक अमावस्या को मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं, और देवी को आमंत्रित करते हैं कि वे उनके घर समृद्धि और सौभाग्य का वास करें.
महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस
जैन परंपरा में दिवाली का दिन भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन जैन समाज के लोग दीप जलाकर आत्मज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं. उनके लिए यह पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति का प्रतीक है. इस तरह, दिवाली केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकाश, सत्य, और आत्मबल की यात्रा का प्रतीक है. यही कारण है कि हर दीपक केवल घर नहीं, बल्कि आत्मा को भी रोशन करता है.