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Universal Basic Freebies: नेताओं के मुफ्त के वादे बढ़ा रहे अर्थशास्त्रियों की टेंशन, जानिये क्यों फायदेमंद होता है कैश ट्रांसफर?

Universal Basic Freebies: नकद हस्तांतरण (Cash transfer) लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारें ऐसा नहीं कर रही है. सब्सिडी की जगह कैश ट्रांसफर ज्यादा फायदेमंद होता है.

By: JP Yadav | Last Updated: October 12, 2025 8:40:54 PM IST



Bihar Chunav 2025 Universal Basic Freebies: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Elections 2025) में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (I.N.D.I.A.) के बीच ही मुकाबला नजर आ रहा है. गठबंधन के अलावा भी कई राजनीतिक दल और निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन सत्ता की चाबी NDA या फिर I.N.D.I.A. के बीच ही जाने वाली है. दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु की तरह ही बिहार विधानसभा चुनाव में भी राजनीति मुफ्त की स्कीमों के आसपास घूमने लगी है. दोनों ही गठबंधनों की ओर से लगातार कई लोकलुभावनी योजनाओं के एलान किए जा रहे हैं. कुछ ऐसे एलान भी हैं, जो पूरे होने अंसभव हैं. बावजूद इसके दोनों गठबंधनों की ओर से लुभावनी घोषणाएं जारी हैं. इस पर विशेषज्ञ चिंता भी जता रहे हैं कि क्या देश में इसका पुनर्जन्म यूनिवर्सल बेसिक फ्रीबीज़ (Universal Basic Freebies) के रूप में हो गया है. भारतीय लोकतंत्र ने यूबीआई (Universal Basic Income) के ऊंचे सपने को UBF में बदल दिया है.

नीतीश कर चुके हैं ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ का एलान (Bihar Mukhyamantri Mahila Rojgar Yojana)

2025 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए JDU मुखिया नीतीश कुमार और RJD से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव, दोनों लगातार वादों की झड़ी लगा रहे हैं. इसी कड़ी में नीतीश कुमार ने ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के जरिये एक बड़ा चुनावी दांव खेला है. इस योजना में बिहार के हर परिवार की एक महिला को रोजगार शुरू करने के लिए पहली किस्त के रूप में 10,000 रुपये दिए जाएंगे. इसके बाद 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त मदद भी प्रदान की जाएगी.  जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार का यह चुनावी दांव NDA की जीत की गारंटी भी बन सकता है.

महिलाओं को ही क्यों लुभा रहे राजनीतिक दल? (Why are political parties luring only women?)

इसी तरह विपक्ष के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सत्ता में आने पर ‘माई-बहिन मान योजना’ के अंतर्गत  हर महीने महिलाओं को 2,500 रुपये देने का वादा कर चुके हैं. JDU और RJD की ओर से घोषित ये दोनों योजनाएं बिहार की महिला वोटरों को लुभाने के लिए हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में महिलाओं का वोटिंग टर्नआउट  54.5 प्रतिशत था. शराबबंदी लागू करने के बाद से ही महिलाएं नीतीश कुमार के पक्ष में वोट करती रही हैं.  इसी साल रक्षाबंधन के मौके पर एक खुला पत्र लिख कर महिलाओं के लिए तेजस्वी ने 13 वादों का जिक्र किया था. इसमें 2,500 रुपये मासिक सहायता के अलावा 500 रुपये में गैस सिलेंडर और 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा शामिल है.   

मुश्किलें बढ़ा सकती हैं मुफ्त की सुविधाएं (Free facilities can increase difficulties)

ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिहार एक बार फिर भारत को आगे की राह दिखा रहा है या फिर आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है? सियासत के माहिर खिलाड़ी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग 1.2 करोड़ महिलाओं को 10-10 हज़ार रुपये की नकद राशि देने की घोषणा की है. आधिकारिक तौर पर यह महिलाओं को “व्यवसाय शुरू करने” में मदद करने के लिए है. बिहार की 1.27 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये प्रति महिला की दर से 12,700 करोड़ रुपये की बड़ी रकम दी जाएगी. नीतीश कुमार ने इसके पक्ष में कहा है कि सफल व्यवसायों को और भी ज़्यादा नकद राशि दी जाएगी. यह रकम 2 लाख रुपये तक है. इसमें अच्छी बात यह है कि किसी भी महिला को इस पैसे का इस्तेमाल दूसरे कामों में करने पर सज़ा नहीं दी जाएगी. पैसे मिलने पर महिलाएं अपनी बेटी की शादी के लिए दहेज दे सकेंगी. इसके अलावा अपने शराबी पति का कर्ज़ चुकाना भी इसमें शामिल है.

तेजस्वी ने किया हर परिवार को सरकारी नौकरी का वादा (Tejashwi promised government jobs to every family)

नीतीश के बाद RJD नेता तेजस्वी यादव ने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा करके इसका जवाब दिया है.  नीतीश और तेजस्वी दोनों ही जानते हैं कि मतदाता के दिल तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका उसके बैंक खाते के ज़रिए है. तमिलनाडु मुफ्त की स्कीमों में मामले में अग्रणी रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने निजी बटलर के अलावा सब कुछ दिया है. जैसे मुफ़्त मिक्सर, ग्राइंडर, लैपटॉप, बकरियां, पंखे, चावल और यहां तक कि शादी के लिए सोना भी. इसी तरह महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में चुनावी वादे किए गए है. इसका मतलब यह है कि कोई भी राज्य चुनाव के दिन से पहले खजाना खाली करने की इस महादौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता. 

अर्थशास्त्रियों ने जताई है चिंता (Economists have expressed concern)

उदारवादी दक्षिणपंथी मिल्टन फ्रीडमैन ने दशकों पहले कुछ ऐसा ही सुझाव दिया था. इसके तहत उन्होंने कहा था कि सभी अव्यवस्थित कल्याणकारी योजनाओं को खत्म कर दो. लोगों को बस नकद दो. इससे बाकी काम किसी अदृश्य हाथ से करवा दो. प्रणब बर्धन जैसे अर्थशास्त्रियों ने बुनियादी आय की कल्पना राज्य और नागरिक के बीच एक नए सामाजिक अनुबंध के रूप में की है. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया है कि जीवनयापन के लिए पर्याप्त राशि वह वार्षिक लाभांश होनी चाहिए जो राज्य प्रत्येक नागरिक को नागरिकता के पुरस्कार के रूप में देता है. यह अच्छा विचार है, लेकिन कुछ लोग कह सकते हैं कि भारत में इसका पुनर्जन्म हो रहा है. वहीं कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि  यह समतावादी डिजिटल है. जो हर किसी की बुद्धि का थोड़ा-बहुत अपमान करता है, लेकिन यह सबकी बुद्धि के लिए काम करता है. इसके जरिये राजनेता अपनी सीटें बचाते हैं और दूसरी ओर मतदाताओं को जेब खर्च मिलता है. इससे सबसे अधिक परेशानी होती है- अर्थशास्त्रियों को. 

फायदे हैं भी नकद हस्तांतरण के (Cash transfer Benefits)

जानकारों का कहना है कि नकद हस्तांतरण आर्थिक रूप से फायदेमंद भी हो सकते हैं. कैश ट्रांसफर से भ्रष्टाचार और लीकेज की गुंजाइश कम होती है. इसके साथ ही परिवारों को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से चुनाव करने की सुविधा देते हैं. कैश ट्रांसफर के फायदे हैं फिर भी केंद्र या राज्य सरकारों ने कुछ अपवादों को छोड़कर मौजूदा सब्सिडी की जगह नकद हस्तांतरण का इस्तेमाल नहीं किया है.  भारत के राजनेताओं ने बिना आम सहमति के भी एकजुट होने का रास्ता खोज लिया है. मुफ्त की स्कीम्स के मामले में राजनेताओं के वैचारिक मतभेद टकराव से मिट जाते हैं.

क्या है UBI? (What Is UBI?)

मुफ्त की स्कीम्स पर आर्थिक जानकार लगातार सवाल उठाते रहे हैं. मुफ्त की स्कीम्स की वजह से राजस्व घाटा प्रभावित होता है और राज्यों में कई बार सरकारी कर्मचारियों की सैलरी देने में भी परेशानी आती है. बावजूद इसके राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे वादे करते हैं और फिर सत्ता में आने के बाद इन्हें पूरा करना पड़ता है. यहां पर बता दें कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) एक प्रकार का कार्यक्रम है. इसके अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को सरकार से नियमित रूप से एक निश्चित राशि प्राप्त होती है. UBI के तहत दी जाने वाली धनराशि किसी व्यक्ति की भोजन, आवास और वस्त्र जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होती है. यह राशि काम से मिलने वाली मजदूरी के साथ दी जा सकती है. UBI का मकसद लोगों को काम खोजने में लचीलापन प्रदान करके और उनके सुरक्षा जाल को मज़बूत करके गरीबी से लड़ने में मदद करना है. सही मायने में UBI उन लोगों की मदद करने का एक तरीका प्रदान करता है जो बढ़ती तकनीक और स्वचालन के कारण नौकरी पाने में असमर्थ हैं. अलग-अलग राज्यों में और देशों में UBI के लिए अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे – बेसिक इनकम, बेसिक इनकम गारंटी, बेसिक लिविंग स्टाइपेंड (BLS), या यूनिवर्सल डेमोग्रांट.

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