Home > धर्म > Brahmacharini Devi : नवरात्र के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी का पूजन और पाएं आत्मसंयम, धैर्य तथा कठिन परिस्थितियों से लड़ने का सामर्थ्य

Brahmacharini Devi : नवरात्र के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी का पूजन और पाएं आत्मसंयम, धैर्य तथा कठिन परिस्थितियों से लड़ने का सामर्थ्य

Navratri 2025: नवरात्र का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित है. ब्रह्मचारिणी शब्द में ब्रह्म का अर्थ तप और चारिणी का अर्थ आचरण से है अर्थात तप का आचरण करने वाली देवी. माता पार्वती को यह नाम कठोर तप के कारण ही मिला है. देवी इस स्वरूप में दाहिने हाथ में जप की माला लिए हैं तो बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हैं.

By: Pandit Shashishekhar Tripathi | Published: September 15, 2025 2:01:59 PM IST



नवरात्र का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित है. ब्रह्मचारिणी शब्द में ब्रह्म का अर्थ तप और चारिणी का अर्थ आचरण से है अर्थात तप का आचरण करने वाली देवी. माता पार्वती को यह नाम कठोर तप के कारण ही मिला है. देवी इस स्वरूप में दाहिने हाथ में जप की माला लिए हैं तो बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हैं.

 माता ब्रह्मचारिणी के जन्म की कथा 

पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री या पार्वती था. बड़ी होने पर एक बार देवर्षि नारद पर्वतराज के घर पहुंचे और देवी पार्वती को देख उनका भविष्य बताते हुए कहा कि पूरा संसार इनकी आराधना करेगा. उन्होंने बताया कि इनका विवाह शिव जी से होगा लेकिन उन्हें पाने के लिए कठोर तप करना होगा. बस उनकी बात सुन वो जंगल में तप करने चल पड़ीं. कठोर तप करने के कारण उन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाना लगे. उन्होंने एक हजार वर्ष तक केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ सालों तक केवल शाक आदि खाकर निर्वहन किया. तीन हजार सालों तक बिल्व पत्र खाकर शिव जी की जाप करती रहीं. इसके बाद हजारों साल निर्जला और निराहार रहते हुए तपस्या की, पत्ते खाना छोड़ने से उनका नाम अपर्णा पड़ा. उनके तप से प्रभावित होकर सप्तर्षियों ने दर्शन देकर कहा कि तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी और जल्द ही भगवान शंकर तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे. तुम्हारा तप पूर्ण हुआ और जल्द ही पिता बुलाने आएंगे तो घर चली जाना. इसके बाद ही उनका भोलेनाथ से विवाह हुआ.

संघर्ष में विचलन नहीं धैर्य चाहिए

इन देवी की कथा सीख देती है कि मनुष्य को जीवन के कठिन दौर में भी विचलित नहीं होना चाहिए बल्कि धैर्य से कार्य करना चाहिए. परिस्थितियां चाहे जैसी हो, आत्मसंयम तथा समर्पण से कभी नहीं डिगना चाहिए. मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से भक्तों को मनोबल, धैर्य, आत्मसंयम की प्राप्ति के साथ ही जीवन की कठिनाइयों से पार पाने का साहस मिलता है और उनकी कृपा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं. 

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