Anant Chaturdashi 2025: गणेश चतुर्थी के बाद डोल ग्यारस और उसके बाद अनंत चतुर्दशी का महत्त्व आता है। यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है और भक्त अनंत चतुर्दशी व्रत करके जीवन में सुख, समृद्धि और असीमित आनंद की कामना करते हैं। विशेष पूजा-अर्चना, कथा वाचन और निर्जला व्रत का पालन इस दिन की धार्मिक परंपरा का हिस्सा है।
भगवान अनंत
चतुर्मास के समय भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही अपने वामन अवतार में केवल दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना ही आदि का पता है न किसी अंत का इसलिए भी इनको अनंत कहा जाता है इसलिए भगवान विष्णु के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है
क्यों मनाया जाता है अनंत चतुर्दशी का त्योहार ?
भाद्रपद मास के शुक्ल की अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा का विशेष विधान है। मान्यता है कि यदि आपने अपने जीवन में सब कुछ खो दिया है और कष्ट झेल रहे हैं तो अनंत चतुर्दशी का विधिवत व्रत रखने और पूजा करने से सभी कुछ प्राप्त कर लेंगे। इसलिए भी मनाते हैं अनंत चतुर्दशी का त्योहार। इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करे तो संतान की प्राप्ती भी होती है।
क्यों बांधते हैं अनंत सूत्र ?
अनंत चतुर्दशी व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के बाद बाजू पर अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन कच्चे धागे से बने 14 गांठ वाले धागे को बाजू में बांधने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
अनंत सूत्र का अपमान करने से बचें
यह व्रत और धागा बेहद पवित्र माना जाता है। कथा अनुसार, कौंडिल्य ऋषि ने अपनी पत्नी के बाजू में बंधे अनंत सूत्र को जादू-टोना समझकर जला दिया था। इसके कारण उन्हें कष्ट झेलने पड़े। जब उन्होंने भूल का एहसास किया, तो 14 वर्षों तक भगवान अनंत की तपस्या की। भगवान प्रसन्न हुए और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान की।सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी अनंत चतुर्दशी व्रत के पश्चात ही अपनी परीस्थितियों से मुक्त हुए। वहीं, महाभारत में जब पांडवों ने जुए में अपना राजपाट हार दिया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करके अपने कष्ट से मुक्ति पाने की सलाह दी। यह व्रत परिवार सहित पालन करने पर विशेष फलदायी माना जाता है।
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