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Shri Krishna Chhati 2025: कान्हा की छठी पर कढ़ी-चावल का भोग क्यों है जरूरी, जन्माष्टमी के 6 दिन बाद मनाई जाती है यह खास परंपरा

Krishna chhathi 2025: जन्माष्टमी के 6 दिन बाद, 21 अगस्त 2025 यानी आज मनाई जाएगी। इस दिन लड्डू गोपाल को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, काजल व फूलों से उनका श्रृंगार होता है और उन्हें विशेष भोग लगाया जाता है। 56 भोगों में सबसे अहम कढ़ी-चावल का भोग होता है।

By: Shivashakti Narayan Singh | Last Updated: August 21, 2025 11:34:42 AM IST



Krishna chhathi 2025: हिंदू धर्म में छठी का विशेष महत्व है जब भी घर में कोई बच्चा होता है, उसके जन्म के छठे दिन पूरे घर में उत्सव जैसा माहौल रहता है। भगवान श्रीकृष्ण की छठी भी इसी परंपरा से जुड़ी हुई है। जन्माष्टमी के बाद जब कान्हा का छठा दिन आता है तो भक्त विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। घर-घर में बाल स्वरूप लड्डू गोपाल को सजाया जाता है, उन्हें स्नान कराया जाता है, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और फिर भोग लगाया जाता है। इस दिन जो भी भोग लगाया जाता है, वह शुद्ध और सात्विक होता है। यही कारण है कि छठी पर कढ़ी-चावल का भोग विशेष महत्व रखता है। यह न सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है बल्कि इसमें वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण भी छिपे हैं।

कब है कान्हा की छठी (Krishna chhathi 2025)

इस साल कन्हैया की छठी 21 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई गई थी, इसलिए परंपरा अनुसार 6 दिन बाद यह पर्व आएगा। इस दिन सुबह से ही मंदिरों और घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सबसे पहले लड्डू गोपाल को गंगाजल से स्नान कराया जाता है, इसके बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, फूलों से श्रृंगार किया जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त पूरे भक्ति भाव से माखन-मिश्री, पेड़े, पंजीरी और 56 भोगों का आयोजन करते हैं, लेकिन इनमें से कढ़ी-चावल का स्थान सबसे ऊँचा माना गया है। मान्यता है कि यदि छठी के दिन कढ़ी-चावल का भोग न लगाया जाए तो पूजा अधूरी रहती है। लोग मानते हैं कि इस दिन बाल गोपाल को कढ़ी-चावल का भोग लगाकर वे न केवल कान्हा को प्रसन्न करते हैं बल्कि अपने घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं।

कढ़ी-चावल का भोग लगाने के पीछे की कहानी

मान्यता है कि बाल स्वरूप में कृष्ण को दही, माखन और छाछ बेहद प्रिय थे। और कढ़ी इन्हीं भी इन्हीं सब से बनाई जाती है इसलिए कढ़ी-चावल उनके सबसे प्रिय भोगों में से एक माना गया। भक्त इस दिन यह व्यंजन बनाकर कान्हा को अर्पित करते हैं। कहते हैं कि छठी पर यदि बाल गोपाल को कढ़ी-चावल का भोग न लगाया जाए तो पूजा का फल अधूरा रह जाता है। यही कारण है कि चाहे 56 भोग बनाए जाएं, लेकिन कढ़ी-चावल का स्थान उनमें सबसे महत्वपूर्ण होता है।

बिना लहसुन-प्याज का भोजन

कढ़ी-चावल का सबसे बड़ा महत्व इसके सात्विक स्वरूप में है। छठी पर बनने वाली कढ़ी हमेशा बिना लहसुन-प्याज के बनाई जाती है। इसमें केवल दही, बेसन और हल्के मसाले प्रयोग किए जाते हैं। सात्विक भोजन को शास्त्रों में भगवान को अर्पण करने योग्य माना गया है क्योंकि यह पवित्र और शुद्ध रहता है। छठी के दिन जब लड्डू गोपाल को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, तो उनके भोग में ऐसा भोजन ही होना चाहिए जो हल्का और सुपाच्य हो। भक्त मानते हैं कि यह सात्विक भोग न केवल कान्हा को प्रसन्न करता है बल्कि घर-परिवार में शांति और सकारात्मक ऊर्जा भी लाता है। यही कारण है कि छठी के दिन हर घर में बिना लहसुन-प्याज की शुद्ध कढ़ी-चावल ही बनाई जाती है।

पौष्टिकता और वैज्ञानिक कारण

कढ़ी में उपयोग होने वाला बेसन प्रोटीन का स्रोत है जबकि दही में कैल्शियम और विटामिन्स पाए जाते हैं। वहीं, चावल कार्बोहाइड्रेट प्रदान करते हैं जो शरीर को ऊर्जा देते हैं। इस तरह यह भोजन एक संपूर्ण डाइट माना जा सकता है। यही कारण है कि इसे बाल स्वरूप श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है ताकि प्रतीकात्मक रूप से उनके स्वास्थ्य और ऊर्जा का आशीर्वाद घर-परिवार पर बना रहे। शास्त्रों में भी कहा गया है कि भगवान को वही अर्पण करना चाहिए जो शुद्ध, पौष्टिक और सात्विक हो।

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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