Mandareshwar Mahadev Temple: राजस्थान के वागड़ अंचल, खासकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में श्रावण मास में एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है। बांसवाड़ा जिला मुख्यालय की तलहटी में स्थित है मदारेश्वर महादेव मंदिर। यह मंदिर केवल एक शिव मंदिर नहीं है, यह मंदिर भारतीय संस्कृति की गंगा-जमुनी तहजीब का जीता-जागता प्रमाण है, जहाँ शिव और और फकीर बाबा एक साथ विराजमान हैं।
शिव और फकीर बाबा का अनोखा मिलन
टीवी 9 की रिपोर्ट के मुताबिक इस मंदिर को अलग और खास बनाता है इसके परिसर में स्थित मदार फकीर बाबा की समाधि। यह एक ऐसा दृश्य है जो शायद ही कहीं और देखने को मिले। जहाँ शिवभक्त भगवान भोलेनाथ की पूजा के साथ-साथ समाधि पर भी पूरी श्रद्धा से प्रार्थना करते हैं।
यहाँ शिवभक्त जब भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं, तो उसी श्रद्धा से समाधि पर चादर भी चढ़ाते हैं। यह एक अनोखी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग, चाहे शुक्रवार हो या कोई त्यौहार, इस मज़ार पर आकर माथा टेकते हैं और दुआएँ माँगते हैं। यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही सांप्रदायिक सद्भावना की कहानी कहती है।
यहां कोई धर्म छोटा नहीं
मदारेश्वर महादेव मंदिर में आस्था का एक अद्भुत संगम देखते को मिलता है। यहां न तो कोई धर्म छोटा है, न ही कोई रीति-रिवाज पराया है। इस मंदिर में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आते हैं, एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं। यह मंदिर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है, जहां विभिन्न समुदायों के लोग सद्भाव से रहते हैं। मदारेश्वर महादेव मंदिर के एक सशक्त सामाजिक संदेश भी प्रसारित करता है।
डेढ़ महीने का श्रावण
बाँसवाड़ा में डेढ़ महीने का श्रावण भी अपने आप में एक विशेषता है। इससे भक्तों को भगवान शिव की आराधना और भक्ति में डूबने का अधिक समय मिलता है। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं। मदारेश्वर महादेव मंदिर इस विस्तृत श्रावण का केंद्र बिंदु बन जाता है, जहाँ हर दिन सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल गूंजती है।
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