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क्या है गंधर्व विवाह, हिंदू धर्म में लव मैरिज का विधान; प्रेम और सहमति से सम्पन्न होने वाली इस शादी में क्या है खास?

Gandharva Vivah: गंधर्व विवाह (Gandharva Vivah) लड़का-लड़की आपसी प्रेम-भाव और सहमति से बिना माता-पिता के शादी कर लेते हैं. भारतीय संस्कृति और धर्म शास्त्रों में विवाह का काफी महत्व होता है. विवाह को एक विशेष धार्मिक और सामाजिक संस्कार माना जाता है.

By: Preeti Rajput | Published: December 22, 2025 11:00:57 AM IST



Gandharva Vivah: गंधर्व विवाह (Gandharva Vivah) को प्राचीन भारत की ‘लव मैरिज’ (Love Marriage) का रुप ही माना जाता है. जिसमें लड़का-लड़की आपसी प्रेम-भाव और सहमति से बिना माता-पिता के शादी कर लेते हैं. यह विवाह वैदिक काल में काफी ज्यादा प्रचलित था. दुष्यंत-शकुंतला और श्रीकृष्ण-रुक्मिणी ने भी गंधर्व विवाह किया था. प्रेम विवाह आकर्षण और पसंद पर आधारित होते थे. 

गंधर्व विवाह की मुख्य विशेषताएं

  • आपसी सहमति: यह विवाह पूरी तरह से आपसी सहमित, प्रेम और आकर्षण पर आधारित होता है. जिसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.
  • अभिभावकों की सहमति: इस विवाह में माता-पिता या अभिभावकों की अनुमति जरुरी नहीं होती है. विवाह बाद माता-पिता को सूचित कर दिया जाता है.
  • सरल शादी: इस विवाह में किसी तरह के जटिल धार्मिक अनुष्ठान नहीं कराए जाते हैं. अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेना ही विवाह के लिए काफी होता है.
  • प्राचीन परंपरा: विवाह को आठ शास्त्रीय रूपों में बांटा गया है. यह विवाह इसी में से एक था और ऋग्वैदिक काल में इसका प्रचलन अधिक था.

दुष्यंत और शकुंतला, पुरुरवा और उर्वशी, तथा भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह गंधर्व विवाह के उदाहरण हैं.

गंधर्व विवाह का महत्व

भारतीय संस्कृति और धर्म शास्त्रों में विवाह का काफी महत्व होता है. विवाह को एक विशेष धार्मिक और सामाजिक संस्कार माना जाता है. विभिन्न शास्त्रों में विवाह के कई प्रकार का उल्लेख मिलता है. यह विवाह शास्त्रों में स्वीकार्य माना जाता है. इसे आदर्श विवाह के रुप में माना जाता है. क्योंकि यह विवाह शास्त्रों में स्वीकार्य है. साथ ही इसे आदर्श विवाह के रुप में भी माना जाता है. इसे दैवीय प्रेम का प्रतीक माना जाता है. महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी गंधर्व विवाह के कई तरह उदाहरण मिलते हैं.

गंधर्व विवाह का इतिहास और पौराणिक महत्व

गंधर्व विवाह का उल्लेख वेदों और शास्त्रों में मिलता है. ‘गंधर्व’का अर्थ देवताओं के एक वर्ग से है जो संगीत और नृत्य के संरक्षक भी माने जाते हैं. गंधर्व विवाह में प्रेम और आपसी आकर्षण माना जाता  है. इस विवाह को पहले से शुभ और पवित्र माना जाता है. 

कैसे अलग है गंधर्व विवाह? 

अन्य विवाह में शादी से जुड़ी कई तरह के रस्में निभानी होती हैं. गंधर्व विवाह में ऐसा कुछ भी नहीं होता है. इस विवाह में परिवार की सहमति से ज्यादा दूल्हे और दुल्हन की सहमति रखती है. इस विवाह के लिए परिवार या समाज की सहमति बहुत ज्यादा जरूरी होता है. यह विवाह अधिकतर लड़का-लड़की के आपसी प्रेम पर आधारित है. इस विवाह में किसी तरह के धार्मिक रीति रिवाज की जरुरत नहीं होती है. यह विवाह  स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का प्रतीक माना जाता है. इस विवाह में परिवार की कोई भूमिका नहीं होती है. यह विवाह  सामाजिक या पारिवारिक बंधन से मुक्त होता है.

पौराणिक कथाओं में गंधर्व विवाह का उल्लेख

  • दुष्यंत और शकुंतला- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम की कथा काफी प्रचलित है. उन्होंने भी गंधर्व विवाह किया था. दोनों का विवाह प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है.
  • अर्जुन और उर्वशी- महाभारत में अर्जुन और उर्वशी के बीच भी प्रेम संबंध था.  उर्वशी एक अप्सरा थी, दोनों ने गंधर्व विवाह किया था.
  • कृष्ण और रुक्मिणी – श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भी गंधर्व विवाह का ही उदाहरण है. जहां रुक्मिणी ने कान्हा जी को प्रेम पत्र भेजा था. विवाह करने की इच्छा जाहिर की थी. जिसके बाद कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह किया था. 

गंधर्व विवाह के नियम-विधि

  • गंधर्व विवाह की में किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है.  
  • इस विवाह में वर-वधू की आपसी सहमति और प्रेम जरूरी होता है.
  • धार्मिक अनुष्ठान या परिवार की आवश्यकता नहीं होती.

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