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Explainer: पवित्र परंपरा, बदलती प्रथा…क्या है सनातन धर्म में शादी का असली महत्व, जानें वेदों और धर्मशास्त्रों में कितने तरह की शादियों का है जिक्र?

Arranged Marriage In Sanatan Dharma: सनातन धर्म में शादी का काफी पवित्र महत्व है. वेदों के अनुसार शादी (Vedas On Marriage)के जरिए एक व्यक्ति अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करता है. सनातन धर्म में विवाह 16 संस्कारों में से एक माना जाता है.

By: Preeti Rajput | Published: December 20, 2025 11:53:19 AM IST



Arranged Marriage In Sanatan Dharma: सनातन धर्म में विवाह को एक पवित्र संस्कार के तौर पर देखा जाता है. यह व्यक्तिगत चुनाव या सामाजिक अनुबंध होता है, जिनमें दो आत्माओं का मिलन होता है. दोनों के बीच यह संबंध जन्म-जन्मांतर तक हो जाता है. जिसके लिए धार्मिक रीति-रिवाज और अग्नि के सामने सात फेरे लेना बेहद जरुरी होता है. यह गृहस्थ जीवन की शुरुआत मानी जाती है. विवाह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है

विवाह को संस्कार मानने के कारण

  • आध्यात्मिक बंधन: विवाह संस्कार में सिर्फ दो लोगों का नहीं बल्कि दो परिवारों और दो आत्माओं का मिलन माना जाता है, जो आग को साक्षी मानकर सात फेरे लेने के साथ पूरा होता है.
  • विश्वास का बंधन: विवाह को दो लोगों के बीच का एक मजबूत रिश्ता माना जाता है. जिसे तोड़ना बहुत मुश्किल होता है. जो जीवन के साथ और मौत के बाद तक भी चलता है. हालांकि, कानून के मुताबिक तलाक हो सकता है.
  • कर्तव्य और जिम्मेदारी का रिश्ता: यह धर्म का पालन करने, वंश और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है.
  • गृहस्थ आश्रम: यह जीवन के चार आश्रमों: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास में से ग्रहस्थ जीवन में प्रवेश के लिए जरुरी माना जाता है.

 कितने तरह की शादियों का जिक्र है?

वेदों और धर्मशास्त्रों में विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख है.

  • ब्रह्म विवाह (Brahma Vivah): इस विवाह में योग्य, सुशील और विद्वान दूल्हे को वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित कर कन्यादान किया जाता है. यह सबसे उत्तम विवाह माना जाता है.
  • दैव विवाह (Daiva Vivah): इस विवाह में पुरोहित को कन्या अर्पित की जाती है.
  • आर्ष विवाह (Arsha Vivah): वर से एक-दो जोड़ी गाय-बैल लेकर कन्यादान करता है, यह विवाह ऋषि-मुनियों से जुड़ा है.
  • प्रजापत्य विवाह (Prajapatya Vivah): कन्यादान करते समय पिता कहता है कि तुम दोनों मिलकर गृहस्थ धर्म का पालन करो”.
  • असुर विवाह (Asura Vivah): वर द्वारा कन्या के पिता या संबंधियों को धन देकर कन्या खरीदा जाता है. इसे अशुभ विवाह माना जाता है.
  • गंधर्व विवाह (Gandharva Vivah): कन्या और वर की आपसी सहमति से प्रेम के बाद यह विवाह किया जाता है.
  • राक्षस विवाह (Rakshasa Vivah): युद्ध या बलपूर्वक कन्या का हरण करके विवाह किया जाता है.
  • पैशाच विवाह (Paishacha Vivah): सोती हुई या नशे में धुत कन्या के साथ छल-कपट या जबरदस्ती हासिल करना.

गृहस्थ आश्रम और 4 पुरुषार्थ क्या हैं?

गृहस्थ आश्रम जीवन का दूसरा चरण है. जिसमें व्यक्ति विवाह के करके परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाता है. चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष मानव जीवन के चार प्रमुख लक्ष्य होते हैं. यह विवाह को संतुलित और उद्देश्य से भरे बनाते हैं. जिनमें गृहस्थ आश्रम का अर्थ सुख-सुविधाएं और धन प्राप्त करना होता है. विवाह धर्म और काम के साथ मिलकर चलता है. 

चार पुरुषार्थ (Four Purusharthas)

  • धर्म (Dharma): कर्तव्य, नैतिकता, सही आचरण और धार्मिकता
  • अर्थ (Artha): धन, भौतिक सुख-सुविधाएं और सांसारिक आवश्यकताएं.
  • काम (Kama): इच्छाएं आनंद, प्रेम और भोग.
  • मोक्ष (Moksha): जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और परम स्वतंत्रता.

शादी की सही उम्र क्या है?

शास्त्रों में शादी की कोई एक उम्र नहीं बताई गई है, बल्कि शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पर ज्यादा जोर दिया जाता है. जिसमें लड़कियों के लिए मासिक धर्म शुरु होने के बाद और लड़कों के लिए करीब 20 से 25 की उम्र को सही माना जाता है. लेकिन आज के समय शादी की उम्र लड़कियों के लिए 21 और लड़कों के लिए 21 मानी जाती है. यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तैयारी को दर्शाती है. सही वहीं है जब दोनों शादी के लिए पूरी तरह से तैयार हो.

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