Mewar Royal family Property Dispute: मेवाड़ शाही परिवार की संपत्ति को लेकर दशकों से चला आ रहा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. यह मामला मुख्य रूप से उदयपुर के ऐतिहासिक सिटी पैलेस, HRH होटल्स ग्रुप और अन्य बहुमूल्य चल-अचल संपत्तियों के स्वामित्व और नियंत्रण से जुड़ा है. विवाद का केंद्र पूर्व महाराजा अरविंद सिंह मेवाड़ की वसीयत की वैधता और उत्तराधिकार का प्रश्न है, जिसे उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ और बेटी पद्मजा कुमारी परमार ने अलग-अलग आधारों पर चुनौती दी है.
मेवाड़ शाही परिवार में चल रहा है मतभेद
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में बताया गया कि याचिकाकर्ता मेवाड़ के पूर्व शासक महाराणा भगवंत सिंह मेवाड़ के वंशज हैं. परिवार के भीतर लंबे समय से यह मतभेद चला आ रहा है कि संपत्तियों का बंटवारा और ट्रस्टों का संचालन किसके नियंत्रण में होना चाहिए. अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन के बाद यह विवाद और तीखा हो गया, क्योंकि उनकी वसीयत के आधार पर संपत्तियों के प्रबंधन और स्वामित्व को लेकर उनके बच्चों के बीच मतभेद सामने आए.
इस वजह से सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का कारण अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित मामले भी हैं. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चल रहे मामलों को राजस्थान हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी, जबकि उनकी बहन पद्मजा कुमारी परमार ने राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर बेंच में लंबित मामलों को बॉम्बे हाई कोर्ट भेजने का अनुरोध किया. दोनों पक्षों की इन परस्पर विरोधी मांगों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया.
दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर होंगे सारे लंबित मामले – सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत ने सुझाव देते हुए आदेश दिया कि परिवार से जुड़े सभी लंबित मामलों को एक ही स्थान पर सुना जाना चाहिए ताकि विरोधाभासी आदेशों से बचा जा सके. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट में लंबित सभी मामलों को दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का निर्देश दिया. अदालत ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में इस विवाद से जुड़े कोई अन्य केस सामने आते हैं, तो उन्हें भी दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए आवेदन किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों हाई कोर्ट को आदेश दिया कि वे सभी केस से जुड़े दस्तावेज दिल्ली हाई कोर्ट को भेजें. अब इस मामले की सुनवाई जनवरी 2026 से दिल्ली हाई कोर्ट में होगी. सुनवाई के दौरान एक अहम मुद्दा संपत्तियों के संरक्षण का भी है. सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि इस विवाद में बड़ी मात्रा में गहने और अन्य कीमती चल संपत्ति शामिल है, जिसके चलते एक एडमिनिस्ट्रेटर की नियुक्ति से जुड़ी याचिका भी लंबित है.
मेवाड़ शाही परिवार में संपत्ति विवाद का इतिहास
इस पूरे विवाद की जड़ मेवाड़ रियासत के इतिहास में है. महाराणा भूपाल सिंह ने 1930 से 1955 तक मेवाड़ पर शासन किया. उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने भगवंत सिंह मेवाड़ को गोद लिया. अपने जीवन के अंतिम दिनों में, अप्रैल 1955 में, भूपाल सिंह ने एकलिंगजी ट्रस्ट की स्थापना की, जो बाद में संपत्ति विवाद का एक महत्वपूर्ण पक्ष बना.
पिता के खिलाफ अदालत पहुंचा बड़ा बेटा
भगवंत सिंह मेवाड़ के तीन बच्चे थे—महेंद्र सिंह, अरविंद सिंह और योगेश्वरी कुमारी. 1983 में विवाद तब शुरू हुआ जब भगवंत सिंह ने पारिवारिक संपत्तियों को बेचने और लीज पर देने का फैसला किया. उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह ने इसका विरोध किया और अपने पिता के खिलाफ अदालत का रुख किया. इससे पारिवारिक रिश्तों में गहरी दरार पड़ गई.
भगवंत सिंह के निधन के बाद बढ़ गया विवाद
कथित तौर पर इस विवाद से नाराज़ होकर भगवंत सिंह मेवाड़ ने संपत्तियों और ट्रस्ट के प्रबंधन की जिम्मेदारी अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को सौंप दी और महेंद्र सिंह को लगभग बाहर कर दिया. 3 नवंबर 1984 को भगवंत सिंह के निधन के बाद यह विवाद और गहराता चला गया और दशकों तक अदालतों में चलता रहा.
करीब 37 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2020 में उदयपुर जिला अदालत ने फैसला सुनाया. कोर्ट ने संपत्तियों को चार हिस्सों में बांटने का आदेश दिया—एक हिस्सा भगवंत सिंह मेवाड़ के नाम और बाकी तीन उनके तीनों बच्चों में. हालांकि, तब तक अधिकांश संपत्तियां अरविंद सिंह मेवाड़ के नियंत्रण में थीं. अदालत ने कुछ प्रमुख प्रॉपर्टीज से जुड़ी वित्तीय गतिविधियों पर रोक भी लगाई.
16 मार्च 2025 को अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके तीन बच्चों—लक्ष्यराज सिंह, भार्गवी कुमारी और पद्मजा कुमारी—के बीच विवाद फिर से केंद्र में आ गया. अब यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में नई सुनवाई के लिए तैयार है, जहां से मेवाड़ शाही परिवार के इस लंबे विवाद की आगे की दिशा तय होगी.