Hyderabad House History: 1911 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली शिफ्ट की, तो इसके साथ ही उन्होंने भारतीय रियासतों के राजाओं को दिल्ली में ठहरने की व्यवस्था के लिए 1919 में ‘चेंबर ऑफ प्रिंसेस’ की स्थापना की. इसी के बाद हैदराबाद रियासत के निजाम उस्मान अली खान ने 1919 में 8.2 एकड़ जमीन खरीदी और एक शाही रेसिडेंस बनाने की योजना शुरू की.
1928 तक यह भव्य महल ‘हैदराबाद हाउस’ के रूप में बनकर तैयार हुआ. इसे बनाने में लगभग 2,00,000 पाउंड की लागत आई थी, जो आज के समय में 170 करोड़ रुपए से भी अधिक के बराबर है. हालांकि इस आलीशान महल का निजाम ने बेहद कम उपयोग किया.
आजादी के बाद हैदराबाद हाउस का बदला हुआ भविष्य
1947 में भारत की आजादी और रियासतों के विलय ने हैदराबाद हाउस के इतिहास की दिशा बदल दी. हैदराबाद ने शुरुआती दौर में भारत में विलय का विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप 1948 में भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन पोलो’ चलाया गया. इसके बाद हैदराबाद भारतीय संघ का हिस्सा बना और उसके साथ ही हैदराबाद हाउस भारतीय सरकार की संपत्ति बन गया.
1974 में इसे औपचारिक रूप से विदेश मंत्रालय को सौंप दिया गया और तब से यह प्रधानमंत्री का स्टेट गेस्ट हाउस बन गया है. यहां दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री और उच्च स्तरीय विदेशी प्रतिनिधि ठहरते तथा भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात करते हैं. दिल्ली में पटियाला हाउस और जयपुर हाउस की तरह यह भी ब्रिटिश काल के 28 बड़े शाही निवासों में शामिल है.
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वास्तुकला: तितली के आकार वाला भव्य महल
हैदराबाद हाउस का डिजाइन सर एडविन लुटियंस ने तैयार किया था, जो राष्ट्रपति भवन और राष्ट्रीय संग्रहालय जैसे प्रतिष्ठित भवनों के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध हैं. महल का आकार तितली जैसा है, जिसे ‘बटरफ्लाई शेप्ड’ संरचना कहा जाता है. इसकी कुल फैलावट 8.2 से 8.77 एकड़ के बीच है. इसमें 36 बड़े कमरे हैं, जिनमें से कई को बाद में डाइनिंग हॉल के रूप में बदल दिया गया. एक जनाना या महिलाओं के लिए अलग हिस्सा भी इसमें शामिल था.
मुख्य द्वार पर एक विशाल गुंबद है, जिसके दोनों ओर 55 डिग्री के कोण पर तितली जैसे पंखों वाली संरचनाएँ बनी हैं. महल के भीतर मुगल और यूरोपीय कला का अद्भुत संगम दिखाई देता है—मेहराबें, छतरियां, रॉम्बिक डिज़ाइन वाला मार्बल फ्लोर, सर्कुलर फॉयर, आर्चवे और पिरामिडनुमा पत्थर की आकृतियाँ इसका हिस्सा हैं. महल के बाहरी हिस्से में विशाल चौकोर बगीचे, पत्थरों की कलाकृतियाँ और बड़ा केंद्रीय डोम इसे दिल्ली के सबसे भव्य महलों में से एक बनाते हैं. निर्माण के समय निजाम ने लाहौर के प्रसिद्ध कलाकार अब्दुर्रहमान चुगताई से 36 इस्लामिक व मुगल शैली की पेंटिंग्स भी मंगवाई थीं.
हैदराबाद हाउस से जुड़े रोचक किस्से
किताब ‘द पैट्रियट’ (2024) के अनुसार, निजाम उस्मान अली पहली बार 1936 में इस महल को देखने आए थे, लेकिन उन्हें यह बहुत वेस्टर्न लगा और उन्होंने इसे मजाक में ‘घोड़ों का अस्तबल’ कह दिया. उनके पुत्रों को भी यह महल पसंद नहीं आया, इसलिए परिवार ने इसे लगभग कभी उपयोग नहीं किया. एक और दिलचस्प प्रसंग तब जुड़ा जब फिल्म ‘गांधी’ की शूटिंग के दौरान क्रू मेंबर्स को लगा कि कोई भूतनुमा आकृति दिखी—इसे मजाक में ‘निजाम का भूत’ कहा गया.
कुल मिलाकर, हैदराबाद हाउस सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि ब्रिटिश काल से आजादी, रियासतों के विलय और आधुनिक भारतीय कूटनीति का जीवंत प्रतीक है.
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