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Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज से जानें मृत्यु के बाद आत्मा अपने घर क्यों आती है?

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन लोगों को उनके जीवन के प्रेरित करते हैं. नाम जप, भगवान की सेवा, माता-पिता की सेवा करना ही परम सेवा है. इस लेख के जरिए जानें की मृत्यु के बाद आत्मा अपने घर क्यों आती है?

By: Tavishi Kalra | Published: November 27, 2025 8:11:29 AM IST



Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज, एक हिंदू तपस्वी और गुरु हैं, जो राधावल्लभ संप्रदाय मो मानते हैं. प्रेमानंद जी महाराज अपनी भक्ति, सरल जीवन, और मधुर कथाओं के लिए लोगों में काफी प्रसिद्ध हैं. हर रोज लोग उनके कार्यक्रम में शामिल होते हैं जहां वह लोगों के सवालों के जवाब देते हैं.हजारों लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं. उनके प्रवचन, जो दिल को छू जाते हैं, ने उन्हें बच्चों और युवाओं सहित विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया है. प्रेमानंद जी महाराज नाम जप करने के लिए के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं और साफ मन से अपने काम को करें और सच्चा भाव रखें.

इस लेख के जरिए जानें की मृत्यु के बाद आत्मा अपने घर क्यों आती है?

गरुड़ ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा आत्मा मृत्यु के बाद अपने परिजनों के पास मृत्यु लोक में क्यों जाती है, कृप्या मुझे बताएं श्री कृष्ण बोले – जिसने इस पृथ्वी लोक पर जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन इस “नश्वर देह” का त्याग करना पड़ता है. मृत्यु संसार का अटल सत्य है. परंतु उसकी परतों में छिपा रहस्य बहुत गहरा है.

कोई व्यक्ति जब अपना शरीर छोड़ता है तो आत्मा के साथ क्या होता है, आत्मा आखिर कहां जाती है, क्यों आत्मा मृत्यु के बाद 24 घंटे के बाद अपने घर में वापस आती है. क्या यह केवल दर्शन होता है या इसके पीछे बड़ा कारण छिपा है.

मृत्यु के बाद आत्मा कहां जाती है?

मृत्यु के तुरंत बाद यमराज के दूत उस आत्मा को साथ लेकर जाने की तैयारी करते हैं. आत्मा को तुरंत यम लोक नहीं लेकर जाया जाता. बल्कि पहले उसके संपूलर्ण जीवन के कर्मों पुण्य और पाप का लेखा जोखा तैयार होता. इसके बाद यमदूत आत्मा को थोड़े समय के बाद उसके घकर वापस छोड़ देते हैं. यह अवधि करीब 24 घंटे की मानी जाती है.

गरुड़ ने पूछा ऐसा क्यों आत्मा अपने घर लौटती है. श्री कृष्ण बोले संसार से उसके संबंध तुरंत समाप्त नहीं होते. आत्मा अपने को प्रियजनों से,इच्छाओं से, अधूरे कर्मों से एक अदृश्य सूत्र बांधे रहता है. इसीलिए जब वह घर आती है तो वह अपने परिजनों के बीच ऐसे घूमती है जैसे जीवित अवस्था में रहती थी. वह पुकारती है, रोती है,हाथ बढ़ाती है, लेकिन ना उसकी आवाज सुनी जाती है या उसकी आवाज महसूस होती है. उसका दुख यह होता है वह अपने शरीर में वापस उतरना चाहती है. लेकिन यमदूतों के पाश ने उसको बंधन में बांध रखा है. इसीलिए चाहे जितना प्रयास करें वह अपने शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती. जब घरवाले उस व्यक्ति के लिए दुख मनाते हैं. आत्मा यह सब देखती है और महसूस करती है ना अपनी उपस्थिति का प्रमाण दे सकती है,.

गरुण ने पूछा क्या आत्मा केवल अपने घर के दर्शन करके लौट जाती है, तो भगवान ने बताया नहीं यह अवधि इसलिए होती है क्योंकि मृत्यु के 10 दिनों बाद जो पिंडदान किया जाता है उसी के द्वारा आत्मा का सूक्ष्म शरीर धीरे-धीरे निर्मित हो सके. पहले 10 दिन किए गए पिंडदान से आत्मा के शरीर का निर्माण माना गया है. 11वें और 12वें दिन का पिंडदान उसके सूक्ष्म शरीर को स्थिरता प्रदान करता है. 13 वें दिन का पिंडदान सबसे महत्वपूर्ण होता है इस दिन आत्मा को सामर्थ मिलती है. जिसके सहारे वह यमलोक को अपनी यात्रा शुरू कर सके.

हिंदू धर्म में 13वीं का विधान अत्यंत विशेष माना गया है.क्योंकि इसी दिन आत्मा के सारे बंधन समाप्त होते हैं और वह अपने आगे के मार्ग की ओर बढ़ने लगती है.

13वीं के बाद आत्मा को यमलोक जाने में 1 साल का समय लग सकता है. यह यात्रा कठिन होती है और आत्मा को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

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