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वृंदावन के Premanand Maharaj ने संतों से कही जीवन बदल देने वाली बात, ‘गुरु के अनादर से शुरू होता है…’

Premanand Maharaj: मधुरा वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने संतों को उपदेश दिया कि यदि गुरु के प्रतिकूल व्यवहार को भी मंगलमयी मानें, तभी साधना का मार्ग सच्चा होगा.

By: Shristi S | Published: November 2, 2025 4:18:42 PM IST



Premanand Maharaj on Guru Respect: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मथुरा वृंदावन (Mathura) की पवित्र भूमि पर रविवार को एक आध्यात्मिक संगम का दृश्य देखने को मिला. श्रीराधा केलिकुंज आश्रम में जब मलूक पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी डॉ. राजेंद्रदास देवाचार्य और गोरीलाल कुंज के महंत किशोरदेव दास महाराज पहुंचे, तो वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने हर्ष और भक्ति से भरा वातावरण अनुभव किया. दोनों संतों ने प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Maharaj) से भेंट कर उनका हाल चाल जाना और स्वास्थ्य की जानकारी ली.

गले लगाकर किया स्वागत

संत प्रेमानंद जी, जिन्हें देखने मात्र से भक्ति का भाव जागृत होता है, दोनों संतों को देखते ही उठकर खड़े हो गए. उन्होंने प्रेमपूर्वक उनका माल्यार्पण किया, गले लगाकर स्वागत किया और चरणस्पर्श कर विनम्रता का उदाहरण प्रस्तुत किया. तीनों साधकों ने एक साथ बैठकर ‘राधा नाम’ की चर्चा की और भक्ति मार्ग के गूढ़ रहस्यों पर विमर्श किया.

साधकों को दिया ये संदेश

इस दौरान संत प्रेमानंद जी ने साधकों को एक गहन आध्यात्मिक संदेश दिया. उन्होंने कहा कि हम साधकों की सबसे बड़ी भूल यह होती है कि हम अपने गुरु के मंगलमयी प्रतिकूल व्यवहार को वास्तविक प्रतिकूल मान लेते हैं. इसी भ्रम में हम गुरु का अनादर करने लगते हैं, उनकी अवज्ञा करते हैं और यहीं से हमारी भटकन प्रारंभ होती है. उन्होंने आगे कहा कि जब साधक गुरु के हर व्यवहार को ईश्वरीय योजना का हिस्सा मानता है, तभी उसका मार्ग शुद्ध और सच्चा बनता है.

जो साधक अपने गुरु की प्रत्येक क्रिया में दिव्यता देखता है, वही अंततः ‘लाडली जी’ के चरणों तक पहुंचता है. जो विरोध या प्रश्न करता है, वह अपने ही मार्ग से भटक जाता है. संत प्रेमानंद जी के इन वचनों ने वहां उपस्थित सभी श्रद्धालुओं के मन को स्पर्श किया. अंत में तीनों संतों ने एक-दूसरे का स्नेहपूर्वक आतिथ्य स्वीकार किया और प्रसादी का वितरण हुआ. वातावरण में राधा नाम की मधुर ध्वनि और प्रेम का स्पंदन फैल गया.

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