बिहार की राजनीति में बख्तियारपुर सिर्फ़ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि इतिहास, पहचान और विडंबना का संगम है. पटना से महज़ 51 किलोमीटर दूर स्थित यह इलाका, एक तरफ़ बिहार की सांस्कृतिक विरासत पर पड़े आक्रमण की याद दिलाता है, तो दूसरी तरफ़ राजनीति की उन परतों को भी उजागर करता है जहाँ भावनाएँ, जातीय समीकरण और सत्ता की रणनीतियाँ आपस में टकराती हैं
बख्तियारपुर वही भूमि है, जहाँ बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जन्म हुआ लेकिन हैरानी यह कि उनकी पार्टी यहाँ राजनीतिक मज़बूती नहीं बना सकी. इतिहास की चोट, नाम बदलने की बहस और लगातार बदलते जनाधार के बीच, बख्तियारपुर हर चुनाव में एक नया सवाल खड़ा करता है.
क्या इस बार इतिहास बदलेगा?
बिहार की बख्तियारपुर विधानसभा सीट पटना ज़िले में आती है और पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यह राजधानी से सिर्फ़ 15 किलोमीटर दूर है. बख्तियारपुर दिल्ली-हावड़ा मुख्य रेल लाइन पर स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है. इतिहासकारों के अनुसार, कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने 1203 ई. में बंगाल पर विजय प्राप्त करने के बाद इस शहर की स्थापना की थी. उसने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को भी नष्ट कर दिया था. चूँकि इसका नाम बिहार की सभ्यता को नष्ट करने वाले आक्रांता के नाम पर रखा गया है, इसलिए कई बार नाम बदलने की माँग उठी, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर बार इसे खारिज कर दिया. बख्तियारपुर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जन्मभूमि है, लेकिन विडंबना यह है कि उनकी पार्टियाँ यहाँ कभी चुनाव नहीं जीत पाईं.
बख्तियारपुर विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक इस सीट पर 18 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. यादव बहुल इस सीट पर 1952 से 1990 के बीच हुए 11 चुनावों में से 10 में कांग्रेस जीती, लेकिन उसके बाद उसका प्रभाव कम होता गया. 2000 से अब तक भाजपा और राजद तीन-तीन बार इस सीट पर चुनाव लड़ चुके हैं. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने 1972 में और जनता दल ने 1995 में एक बार जीत हासिल की थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार अनिरुद्ध कुमार ने भाजपा उम्मीदवार रणविजय सिंह को 20,672 मतों के भारी अंतर से हराया। नोटा 3,744 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहा.
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