जन्माष्टमी के पावन अवसर पर भक्तगण पूजा-अर्चना और मंत्रों के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त करने का संकल्प करते हैं। इस वर्ष 16 अगस्त की रात को निशीठ पूजा (मध्यरात्रि 12:04 बजे से 12:47 बजे तक) करने को सबसे शुभ समय माना जा रहा है, क्योंकि कहते हैं कि इसी समय श्रीकृष्ण अवतार लेंगे।
व्रत रखने वाले भक्त सुबह उठकर स्नान कर, साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लेते हैं और दिनभर फलाहार–यानी केवल फल, दूध, मखाना-खीर, साबूदाना खिचड़ी जैसे शुद्ध आहार अपनाते हैं। कुछ भक्त निर्जला व्रत भी रखते हैं, जिसमें व्रत तोड़ा सिर्फ मध्यरात्रि के बाद पूजा समाप्त होने पर किया जाता है।
पीढ़ियों से चली आ रही इस पूजा विधि के तहत, भक्त सबसे पहले श्रीकृष्ण की प्रतिमा का अभिषेक पंचामृत से करके, वस्त्र, आभूषण और फूल अर्पित करते हैं। इस दौरान “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय“, “हरे कृष्ण हरे कृष्ण“ जैसे प्रमुख मंत्रों का उच्चारण भक्तों को मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्य आशीर्वाद से जोड़ता है।
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मंदिरों और घरों में गूंजेगी आरती
इसके साथ ही, मध्यरात्रि के समय मंदिरों और घरों में भजन-कीर्तन, आरती (जैसे “आरती कुंज बिहारी की“) और झूला रस्म के साथ गाजे-बाजे की सज-धज होती है। इस पूजा के बाद व्रत-भंग की रस्म होती है, जिसमें भक्त शुद्ध आहार ग्रहण करते हैं।
भक्तों के लिए आत्मसंयम का अवसर
यह त्योहार न केवल श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व है, बल्कि भक्तों के लिए आत्मसंयम, भक्ति, और आध्यात्मिक जागृति का अवसर भी है। मंत्र-जप, पूजाविधि और व्रत के संयोजन से भक्त जीवन में समृद्धि, शांति और दिव्यता की अनुभूति करते हैं।

