Amla Navami 2025 Puja Vidhi: कार्तिक मास की अमावस्या, पूर्णिमा और षष्ठी तिथि की तरह ही कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि भी बेहद खास है क्योंकि इस दिन प्रकृति की सेवा और संरक्षण का संदेश देने वाला अक्षय नवमी का त्योहार मनाया जाता है. इस वर्ष 30 अक्टूबर, गुरुवार के दिन पूजा और व्रत किया जाएगा. यूं तो किसी भी पूजा पाठ और दान पुण्य करने का फल तो मिलता ही है किन्तु यदि कोई खास कार्य इस दिन किया जाए तो उसका फल अक्षय अर्थात कभी न खत्म होने वाला हो जाता है. हिंदू धर्म में प्रकृति का विशेष महत्व है और विशेष अवसरों पर विशेष वृक्षों की पूजा का महत्व है जैसे वट सावित्री में बरगद के पेड़ की पूजा का विधान है तो कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. वैसे तो इस पर्व के फल अक्षय होने के कारण इसका नाम अक्षय नवमी है किंतु आंवले के पेड़ की पूजा करने के कारण इसे आंवला नवमी भी कहते हैं. चलिए जानते हैं Pandit Shashishekhar Tripathi का क्या कहना है.
इस तरह से करें पूजन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग का आरंभ इस दिन से ही हुआ था. भगवान विष्णु ने सृष्टि को आंवले के पेड़ के रूप में स्थापित किया था. पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में निवास करते हैं. इस खास दिन गाय, भूमि, कपड़े, स्वर्ण आभूषण आदि का दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. इस दिन प्रातः जागने और स्नानादि से निवृत्त होने के बाद घर के पास के किसी आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख कर रोली, अक्षत आदि से पूजन करने के बाद पेड़ की जड़ में किसी पात्र से दूध की धारा डालनी चाहिए. इसके बाद पेड़ के चारो ओर कच्चे सूत को लपेट कर घी की बाती या कपूर से आरती करना चाहिए. आरती होने के साथ ही पेड़ की 108 या अपनी क्षमता के अनुसार 11, 21 अथवा 51 बार परिक्रमा करें. पूजन सामग्री में आंवला अवश्य ही होना चाहिए. ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन और दान दक्षिणा देकर विदा करने के बाद स्वयं भी भोजन करें. भोजन में भी आंवले का होना आवश्यक है और ब्राह्मण को दान में भी आंवला जरूर होना चाहिए.
आंवला नवमी व्रत की कथा
एक साहूकार था, जो आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देता था. उसके बेटों को यह सारा कार्य फालतू लगता और वह विरोध करते कि घर की सारी संपत्ति लुटाएं दे रहे हैं. बेटों की रोज-रोज की टोका-टाकी से तंग आकर दूसरे स्थान पर चला गया और वहां एक दुकान लेकर काम धंधा करने लगा. आंवले के पेड़ से प्यार होने के कारण उसने दुकान के सामने ही आंवले का पेड़ लगाया और सुबह शाम उसकी सुरक्षा और सेवा करता रहा. ऐसा करने से उसकी दुकान खूब चलने लगी. उधर धीरे-धीरे बेटों का सारा कारोबार चौपट हो गया, तो उन्हें कारण समझ में आया. बेटे पिता की तलाश करते हुए वहां पहुंचे जहां पर पिता कारोबार कर रहे थे. उन्होंने पिता के पैरों को पकड़ कर क्षमा मांगी. पिता ने उन्हें क्षमा कर आंवले के पेड़ की पूजा करने का आदेश दिया जिससे उनका काम फिर से अच्छा हो गया, यह खास दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी. तब से इन खास दिन को आंवला नवमी के रुप में मनाया जाने लगा.

