Parenting: 10 साल के KBC कंटेस्टेंट की हरकत ने मचाया हंगामा, क्या इसके लिए माता-पिता जिम्मेदार हैं?

Ishit Bhatt KBC: 10 साल के केबीसी कंटेस्टेंट इशित भट्ट के बिहेवियर ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया. माता-पिता पर भी आलोचना हुई. जानिए क्यों बच्चों के व्यवहार को सिर्फ पैरेंटिंग से जोड़ा जाता है? और क्या ये सही है?

Published by Shraddha Pandey

Child Behaviour Parenting: गुजरात के 10 साल के इशित भट्ट (Ishit Bhatt) हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति (KBC) में दिखाई दिए. उनके अतिआत्मविश्वासी और बोल्ड अंदाज ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया. लोग उनके जवाबों और अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के साथ उनके तरीके को ‘अहंकारी’ बता रहे हैं. इस बीच उनके माता-पिता भी आलोचना के निशाने पर आ गए. यूजर्स उनकी पेरेंटिंग (Parenting) स्टाइल पर टिपण्णी करने लगे. लेकिन, क्या सच में माता-पिता को बच्चे के हर व्यवहार के लिए दोषी ठहराना सही है?

बच्चों का व्यवहार उनके स्वभाव और माहौल दोनों से बनता है. कुछ बच्चे जन्म से ही बोल्ड और निडर होते हैं, जबकि कुछ बच्चे शांत और शर्मीले होते हैं. पैरेंटिंग और सामाजिक अनुभव ये तय करते हैं कि ये गुण असल में कैसे दिखेंगे. यानी बच्चे का आत्मविश्वास उनके लिए सामान्य व्यक्तित्व हो सकता है, माता-पिता की गलती नहीं.

बच्चों का व्यवहार vs बुरी पेरेंटिंग

टीवी पर आत्मविश्वासी या थोड़ा अहंकारी दिखना हमेशा बुरी पेरेंटिंग नहीं बताता. बच्चे कभी-कभी थकान, घबराहट या उत्साह में ऐसे व्यवहार दिखा सकते हैं. छोटे बच्चों के लिए नेशनल टीवी पर रहना बहुत दबाव वाला होता है. उनकी नर्वसनेस और एक्साइटमेंट बाहर से अहंकार की तरह लग सकता है. लेकिन, असल में यह तनाव या असहजता को संभालने का तरीका होता है.

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बच्चों में कैसे आती है अच्छी आदतें

समाज अक्सर सोचता है कि अच्छी पेरेंटिंग (Good Parenting) का मतलब है बच्चे हमेशा विनम्र, शांत और तुरंत मान जाएं. लेकिन, असली सीख गलतियों और अनुभवों से आती है, सिर्फ अच्छे व्यवहार से नहीं. सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखकर तुरंत बच्चों और पेरेंट्स की आलोचना करना उनके सेल्फ-एस्टिम और परिवार पर लंबे समय तक असर डाल सकता है.

क्या हम सही कर रहे हैं?

हकीकत ये है कि हर बच्चे को गलतियां करने का हक है. पेरेंट्स भी हमेशा सही और बच्चे को सीखने देने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं. कुछ सेकंड की स्क्रीन टाइम (Screen Time) को पूरे मोरल जजमेंट (Moral Judgement) में बदलना सिर्फ ये बताता है कि शायद हम ही बच्चों से ज्यादा जल्दी निर्णय ले लेते हैं.

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