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Operation Blue Star: ऑपरेशन ब्लू स्टार की 8 दिन की पूरी कहानी, यहां जानिये कब, कैसे और क्यों लेना पड़ा इंदिरा गांधी को यह फैसला

Operation Blue Star: इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) की अगुवाई मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार को सौंपी. इसके साथ पंजाब को भारतीय सेना के हवाले कर दिया गया.

Published by JP Yadav

Operation Blue Star Story: पंजाब के अमृतसर जिले में स्थित स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को अलगाववादियों से मुक्त कराने के लिए चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) को 4 दशक से भी अधिक का समय हो गया है. यह इतिहास का वह काला पन्ना है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इस ऑपरेशन के खत्म होने के 6 महीने के भीतर ही देश ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Indira Gandhi) को खो दिया. एक बार फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार चर्चा में है. दरअसल, वरिष्ठ कांग्रेसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम (Senior Contress Leader Palaniappan Chidambaram) पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के कसौली में ‘खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल’ में शामिल हुए. इसमें पत्रकार हरिंदर बावेजा की पुस्तक ‘They Will Shoot You, Madam’ की चर्चा हुई. इस दौरान हरिंदर बावेजा ने कहा कि इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के अपने फैसले की कीमत अपनी जान देकर चुकाई. इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि जून, 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार ‘गलत तरीका’ था. उन्होंने यह भी कहा कि इसके चलते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी जान गंवाई. पी. चिदंबरम ने यह भी कहा कि यह फैसला अकेले इंदिरा गांधी का नहीं था. इसमें आर्मी, पुलिस, ‘इंटेलिजेंस और प्रशासनिक अफसर भी शामिल थे. अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है, क्योंकि यह बयान कांग्रेस नेताओं को ही पसंद नहीं आया है. इस स्टोरी में हम बताएंगे कि क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार और क्यों इसकी नौबत आई और फिर क्या-क्या बदलाव आए?

क्यों करना पड़ा ऑपरेशन ब्लू स्टार? (Why Operation Blue Star carried out?)

1980 के दशक में पंजाब में अलगाववादी संगठन सक्रिय हुए. इससे राज्य का माहौल खराब होने लगा. अलगाववादियों के हौसले बुलंद होने लगे थे. भारत से पंजाब को अलग कर ‘खालिस्तान’ देश बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी. इस मांग के साथ हिंसक हो रहे अलगाववादियों ने पंजाब के अलग-अलग इलाकों में खून-खराबा करना शुरू कर दिया था. मासूम लोगों की हत्याओं से पंजाब से लेकर दिल्ली तक खलबली मच गई थी. ‘खालिस्तान’ देश बनाने की मांग को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय जरनैल सिंह भिंडरावाला था. खालिस्तान आंदोलन से भिंडरावाला ने पंजाब में एक अलग सिख राष्ट्र की स्वायत्तता के लिए हिंसक अभियान चलाया. हद तो तब हो गई जब उसने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर को अपना मुख्यालय बना लिया. धीरे-धीरे यहां पर उसने अपने साथियों के साथ मिलकर हथियारों का जखीरा इकट्ठा कर लिया. इसके साथ ही वह चुनौती भी देने लगा. पंजाब के साथ-साथ जरनैल सिंह भिंडरावाला का भारत सरकार के साथ भी टकराव बढ़ गया. तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने आखिरकार ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का फैसला लिया. स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को अलगाववादियों से आजाद कराने के लिए चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत 1 जून, 1984 को हुई और यह 8 जून, 1984 को पूरा हुआ. 6 जून, 1984 की देर रात भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर पर निर्णायक हमला किया. सुबह से लेकर शाम तक गोलियां चलती रहीं. जरनैल सिंह भिंडरावाला का शव बरामद होने के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया था. इसमें बड़ी संख्या में अलगाववादियों के साथ-साथ आम नागरिकों की जान गई, जो स्वर्ण मंदिर के भीतर थे. इनमें बच्चे और महिलाएं भी थीं.  

सेना को भी हुआ नुकसान? (Did the army also suffer losses)

ऑपरेशन ब्लू स्टार में सिर्फ उग्रवादी और अलगाववादी ही नहीं मारे गए, बल्कि इस दौरान 83 सैनिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी. इसमें भारतीय तीन सेना के अफसर भी शामिल थे. ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल 492 लोगों की जान गई और 248 लोग घायल हुए. दरअसल, उस समय पंजाब को भारत से अलग कर ‘खालिस्तान’ राष्ट्र बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी, इसलिए इंदिरा गांधी को यह सख्त फैसला लेना पड़ा. ऑपरेशन ब्लू स्टार का असल मकसद पंजाब के  चरमपंथी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाला और उसके समर्थकों को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालना, जो अंदर से हिंसक भाषण और बयान जारी कर रहे थे.  

कौन था  जरनैल सिंह भिंडरावाला? (Who Was Jarnail Singh Bhindrawala)

2 जून, 1947 को मोगा जिले के रोडे गांव में जन्मा जरनैल सिंह भिंडरावाला आक्रामक शख्सियत वाला था. वह दमदमी टकसाल का प्रमुख बना. इसके कुछ समय बाद खालिस्तान की मांग को लेकर 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद को बढ़ावा दिया. इस दौरान इसने कई हत्याएं भी कीं. वर्ष 1983 में उसने अपने हिंसक समर्थकों के साथ मिलकर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में घुसा और उस पर कब्जा कर लिया. इतना ही नहीं उसने सारे नियमों की अनदेखी करते हुए अकाल तख्त को अपना मुख्यालय बना लिया. जनरैल सिंह भिंडरावाला को पंजाब पुलिस ने कई बार पकड़ने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. एक बार जब पंजाब पुलिस भिंडरावाला को गिरफ्तार करने के लिए चंदो कलां पहुंची, तो उसके कुछ समर्थक हिंसक हो गए. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. पुलिस पर गोलीबारी के साथ-साथ इलाके में आगजनी की घटनाएं हुईं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब पुलिस के साथ जनरैल सिंह भिंडरावाला के समर्थकों ने झड़पें की, जिसमें कम से कम 11 लोगों की जान चली गई. दरअसल, जरनैल सिंह को सिख धर्म और ग्रंथों की शिक्षा देने वाली संस्था ‘दमदमी टकसाल’ का अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद उसके नाम के आगे भिंडरावाला जुड़ गया. इस तरह वह जरनैल सिंह भिंडरावाला के नाम से चर्चित हो गया. 

हिंसक होने के साथ धार्मिक प्रवृत्ति का भी था भिंडरावाला (Jarnail Singh Bhindranwale was not only violent but also religious)

जनरैल सिंह भिंडरावाला धार्मिक प्रवृत्ति का था. सिर्फ 30 साल की उम्र में ही वह ‘दमदमी टकसाल’ का अध्यक्ष बन गया. इसके बाद वह हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने लगा. 13 अप्रैल, 1978 की तारीख थी जब पंजाब में अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच मामूली झड़प हिंसक हो हुई. इसमें 13 अकाली कार्यकर्ताओं मारे गए. इसके बाद रोष दिवस मनाया गया तो जरनैल सिंह भिंडरावाला भी पहुंच गया. भिंडरावाला ने पंजाब और सिखों की मांग को लेकर भड़काऊ भाषण देकर राज्य का माहौल खराब करने लगा. वर्ष 1981 में एक घटना ने देशभर के लोगों को हिलाकर रख दिया. दरअसल, पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई. हत्या का आरोप जरनैल सिंह भिंडरावाला पर लगा, लेकिन सबूतों के अभाव में गिरफ्तारी नहीं की गई. वहीं, भिंडरावाला के समर्थक लगातार हिंसक हो रहे थे. अप्रैल, 1983 में हत्या की एक वारदात ने सबको डरा दिया. 

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पंजाब में लगाना पड़ा राष्ट्रपति शासन (President’s rule had to be imposed in Punjab)

तत्कालीन पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनका शव सीढ़ियों पर पड़ा था और किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उसे वहां से हटाया जाए.  इसके बाद मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को मिन्नतें करनी पड़ीं फिर भी वह नहीं माना.  इस वारदात के कुछ दिन बाद ही पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को गोलियों से छलनी कर दिया. बढ़ती हिंसक घटनाओं ने इंदिरा गांधी की चिंता बढ़ा दी. इंदिरा गांधी ने सख्त फैसला लेते हुए पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया.  सरकारी आंकड़ों बता दें कि अगस्त,1982 में धर्म युद्ध मोर्चा शुरू होने के 22 महीने के भीतर ही जनरैल सिंह भिंडरावाला के समर्थकों ने पंजाब 165 हिंदू और निरंकारियों की हत्या कर दी. इस दौरान उन 39 सिखों को भी मार दिया गया तो जो पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाला का विरोध कर रहे थे. 15 दिसंबर, 1983 को जनरैल सिंह भिंडरावाला ने समर्थकों के साथ स्वर्ण मंदिर में अपना कब्जा जमा लिया. स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया. अकालतख्त का मतलब एक ऐसा सिंहासन जो अनंतकाल के लिए बना हो. यहीं से सिख धर्म के लिए हुक्मनामे जारी होते हैं.

देश ने चुकाई ऑपरेशन ब्लू स्टार की कीमत (Indira Gandhi assassinated after Operation Blue Star)

पंजाब को हिंसा की जाता देख तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसा कठिन और निर्णायक फैसला तो ले लिया, लेकिन इसकी देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत 1 जून से 8 जून तक चली सेना की कार्रवाई में अकाल तख्त को भारी नुकसान हुआ. इसमें जनरैल सिंह भिंडरावाला अपने समर्थकों साथ मारा गया, लेकिन 83 सैनिक भी इसमें शहीद हुए. अभियान में स्वर्ण मंदिर में मौजूद अकाल तख्त को भी भारी नुकसान पहुंचा था. यही कारण रहा कि इंदिरा गांधी के इस एक्शन से सिखों में आक्रोश भी था. 6 महीने के भीतर ही इंदिरा गांधी की हत्या उनके सिख अंगरक्षकों ने कर दी. इसके बाद देश की राजधानी दिल्ली और देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे हुए. सिख विरोधी दंगों में भारी जान-माल का नुकसान हुआ. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हिंसा में 3000 से सिखों की मौत हुई. इस दौरान कांग्रेस कई नेताओं पर दंगों को भड़काने के आरोप लगे. इसी मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार जेल की सजा काट रहे हैं. 

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ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत क्या था प्लान? (What was the plan under Operation Blue Star?)

पंजाब में अशांति के बीच केंद्र सरकार ने सैन्य कार्रवाई का मन बनाया. इसके लिए 1 जून, 1984 को सैन्य अधिकारियों की ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर बैठक हुई.  इंदिरा गांधी का कहना था कि सैन्य कार्रवाई के दौरान हरमंदिर साहिब को नुकसान न पहुंचे. इसके बाद तमाम एहतियाती कदम उठाए गए. इसी के तहत पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया. इसके अलावा रेल और हवाई सेवाओं को स्थगित कर दी गईं.

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1 जून, 1984

पंजाब में शांति बहाली और हिंसक वारदातों पर लगाम लगाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार तय हो गई. इसी तारीख को नामी पत्रकार मार्क टली को जनरैल सिंह भिंडरावाला ने इंटरव्यू दिया. इसमें उसने साफ-साफ कहा कि वह डरने वाला नहीं है. 

2 जून, 1984

सैन्य कार्रवाई से पहले ही पंजाब के अलग-अलग गांवों में सेना की कम से कम सात डिवीजनों को तैनात किया गया. 2 जून की शाम को सेना ने जम्मू-कश्मीर और श्रीगंगानगर (राजस्थान) तक पाकिस्तान से लगी सीमा को सील कर दिया. आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई. 

3 जून, 1984

भारतीय सेना के जवानों ने 3 जून की को उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए पंजाब के 37 गुरुद्वारों को घेर लिया. दूसरी ओर अमृतसर में सुबह के दौरान कर्फ्यू में दो घंटे की ढील दी गई जिससे लोग स्वर्ण मंदिर में गुरु अर्जन देव की शहीदी दिवस मना सके. इसका फायदा उठाकर 200 उग्रवादी स्वर्ण मंदिर से निकलकर भाग गए. 

4 जून, 1984

 अमृतसर के बाहर 4 जून, 1984 को मौजूद गुरुद्वारों से उग्रवादियों को हटा दिया गया या फिर पकड़ा लिया था. हरमंदिर साहिब के बाहर से उग्रवादियो के लिए एनाउंसमेंट किया गया कि वे सरेंडर कर दें. इसी दौरान करण टोहरा ने दावा किया कि वो जनरैल सिंह भिंडरावाला को मना लेंगे. मुलाकात के दौरान करण टोहरा को भिंडरावाला ने इंदिरा गांधी का एजेंट बता दिया, जिसके बाद बात बिगड़ गई. इसके साथ ही सैन्य कार्रवाई एकमात्र विकल्प बचा. 

5 जून, 1984

भारतीय सेना ने करीब दस बजे शुरू किया. ऑपरेशन के समय हरमंदिर साहिब को काफी नुकसान पहुंचा. 

6 जून, 1984

6 जून की रात एक बजे सेना ने स्वर्ण मंदिर मे प्रवेश किया. जब सेना अंदर गई तो चारों ओर लाशें बिछी हुई थीं. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

7 जून,  1984

 सुबह साढ़े चार बजे विशेष सचिव (गृह) प्रेम कुमार ने जरनैल सिंह भिंडरावाला के मारे जाने की पुष्टि की. अकाल तख्त के बेसमेंट से उसका शव मिला.

8 जून,  1984

भिंडरावाला शव बुरी स्थिति में था, इसलिए पहचान को लेकर संशय था. बावजूद  इसके 9 जून को भिंडरावाला का पोस्टमार्टम किया गया.

क्या दिया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम (Why the name Operation Blue Star)

ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम देने के पीछे कई वजहें हैं. 1984 में सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे खालिस्तानी अलगाववादियों को हटाने के लिए यह अभियान चलाया था. इसे परेशन को ब्लू स्टार’ नाम दिया गया. इस सैन्य अभियान के कोडनेम के रूप में इस्तेमाल किया गया था. इसकी शुरुआत एक रेफ्रिजरेटर ब्रांड के नाम पर हुई थी. अभियान ब्लू स्टार एक कोडनेम था. यह ऑपरेशन की गोपनीयता बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सेना अधिकारी ने ऑपरेशन के दौरान एक ब्लू स्टार एयर कंडीशनर के विज्ञापन के पास से गुजरते हुए नाम सुझाया था.  

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