Omar Abdullah: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अलग ही मूड में नज़र आ रहे हैं। वह बिना नाम लिए भाजपा से लेकर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा तक, सभी पर निशाना साध रहे हैं। इसकी मुख्य वजह घाटी में 13 जुलाई को शहीद दिवस पर लगी रोक मानी जा रही है। मुख्यमंत्री का आरोप है कि 13 जुलाई को प्रशासन ने उन्हें शहीदों की कब्रों पर जाने से रोक दिया।
अगले दिन, सोमवार (14 जुलाई) को वह बिना किसी को बताए नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में श्रद्धांजलि देने के लिए निकल पड़े। रास्ते में उन्हें रोकने की कोशिश की गई, लेकिन वह नहीं रुके। वह कब्रिस्तान का दरवाज़ा फांदकर अंदर गए और फ़ातिहा पढ़ा। इस दौरान उन्होंने पुलिसकर्मियों पर हाथापाई का आरोप लगाया।
हम किसी के गुलाम नहीं – उमर अब्दुल्ला
उमर अब्दुल्ला इस घटना से नाराज़ हैं। उन्होंने कहा कि हम किसी के गुलाम नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने मंगलवार (15 जुलाई) को कहा, “हमारी शालीनता को हमारी कमज़ोरी मत समझिए… मैं यह कहना चाहता हूँ। हम जम्मू-कश्मीर के लोगों के इरादों और सपनों से समझौता नहीं करेंगे। हम यहाँ किसी के एहसान के बल पर नहीं बैठे हैं।”
हड्डी और जोड़ अस्पताल में एक समारोह को संबोधित करते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा, “जिन लोगों ने 8 साल राज किया, वे एहसान के बल पर यहाँ बैठे थे। यहाँ अगर हमारा कोई एहसान है, तो सबसे पहले अल्लाह का और फिर यहाँ की जनता का। हम किसी और के कर्जदार नहीं हैं। कहीं न कहीं कुछ लोगों को गलतफहमी हो गई है कि हम ऊँची आवाज़ में नहीं बोलते, हम धमकी नहीं देते, हम गुंडागर्दी नहीं करते, इसलिए हम कमज़ोर हैं। हम कमज़ोर नहीं हैं साहब। जनता ने हमें यहाँ बिठाया है, हम यहाँ के लोगों की रक्षा करेंगे।”
उपराज्यपाल के बयान पर भी प्रतिक्रिया
पहलगाम हमले पर उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा के बयान पर उमर अब्दुल्ला ने कहा कि “भले ही 80 दिन बाद हो, लेकिन देर आए दुरुस्त आए।” हमने यह (पहले) नहीं कहा, जबकि हम जानते थे कि इतना बड़ा हमला (खुफिया) विफलता के बिना नहीं हो सकता। अब जब विफलता स्वीकार कर ली गई है, तो ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए।” मनोज सिन्हा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि वह पहलगाम हमले की पूरी ज़िम्मेदारी लेते हैं।
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में सरकार बनने के बाद से ही उमर अब्दुल्ला विपक्षी भाजपा के प्रति बेहद नरम रुख अपना रहे थे। उन्होंने ऐसे बयान दिए, जिससे भाजपा खुश और गठबंधन सहयोगी कांग्रेस असहज हो गई। चाहे वह भारत एकता गठबंधन हो, पहलगाम आतंकी हमले पर संसद सत्र बुलाना हो, या फिर ईवीएम का मुद्दा।

