अक्षय महाराणा की मयूरभंज से रिपोर्ट: ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उदला ब्लॉक के दुगुधा नोडल उच्च प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा व्यवस्था की एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। यहां विद्यालय के गेट पर ताला लटक रहा है और बच्चे मजबूरी में स्कूल परिसर से बाहर सड़क किनारे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। वजह है शिक्षिका के तबादले पर नाराज़ अभिभावकों ने स्कूल में जड़ा ताला, बच्चे पढ़ाई को मजबूर पेड़ के नीचे , जिसके विरोध स्थानीय ग्रामीण और अभिभावक कर रहे हैं।स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक करीब 260 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। पहले यहां कुल 7 शिक्षक-शिक्षिकाएं कार्यरत थे। कुछ महीने पहले एक शिक्षक का तबादला किया गया था, लेकिन उसकी जगह अब तक किसी नए शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई। अब एक और शिक्षिका दीपिका कर का तबादला होते ही ग्रामीण भड़क उठे और उन्होंने स्कूल गेट बंद कर दिया।
शिक्षिका के तबादले पर नाराज़ अभिभावकों ने स्कूल में जड़ा ताला, बच्चे पढ़ाई को मजबूर पेड़ के नीचे
ग्रामीणों का कहना है कि दीपिका कर मेहनती शिक्षिका थीं और बच्चों को ईमानदारी से पढ़ाती थीं। उनका तबादला छात्रों के भविष्य के लिए नुकसानदायक है। इसी वजह से नाराज़ अभिभावकों ने विरोध के रूप में विद्यालय को बंद कर दिया।इस विरोध का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ा है। वे न तो कक्षाओं में बैठ पा रहे हैं और न ही पढ़ाई सही ढंग से हो रही है। हालात ऐसे बन गए हैं कि बच्चे किताब-कॉपी लेकर खुले आसमान तले पेड़ के नीचे बैठने को मजबूर हैं। यह दृश्य ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की जमीनी हकीकत को उजागर करता है।
ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) मौके पर पहुंचे
मामला बढ़ता देख ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) मौके पर पहुंचे और लोगों को समझाने की कोशिश की। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही नए शिक्षक की नियुक्ति की जाएगी। हालांकि, ग्रामीणों ने साफ कहा कि जब तक सही समाधान नहीं मिलता, वे अपना विरोध जारी रखेंगे।
यह घटना कई गंभीर सवाल खड़े करती है।
* पहले तबादला किए गए शिक्षक की जगह नियुक्ति अब तक क्यों नहीं हुई?
* क्या प्रशासन ने बच्चों की पढ़ाई पर पड़ने वाले असर को नज़रअंदाज़ किया?
* राज्य में पहले से ही शिक्षक की कमी है, ऐसे में तबादलों का निर्णय कितना सही है?
बच्चों की पढ़ाई को लेकर जागरूक हुए ग्रामीण
दुगुधा स्कूल की यह स्थिति सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि शिक्षा तंत्र की बड़ी खामी को उजागर करती है। ग्रामीण अब बच्चों की पढ़ाई को लेकर जागरूक हैं और प्रशासनिक फैसलों का विरोध भी कर रहे हैं। लेकिन यह सवाल ज़रूरी है कि कब तक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ेगी और कब शिक्षा विभाग समय रहते ऐसी समस्याओं का स्थायी समाधान निकालेगा।

