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सिंधु जल समझौते के बाद गंगा जल समझौते की बारी, PAK जैसा होगा बांग्लादेश का हाल…! जाने क्या है मोदी सरकार का प्लान?

इस समझौते को 1996 में औपचारिक रूप दिया गया था, जब शेख हसीना ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल शुरू किया था।

Published by Shubahm Srivastava

Ganga Water Sharing Treaty : ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पाकिस्तान पर ऐसा एक्शन लिया की पहले तो अपनी मिसाइलों से उसके यहां आग लगाई और फिर सिंधु जल समझौता रद्द कर पानी भी बंद कर दिया है। भारत के इस कदम से पाक में भूचाल आ गया।

अब वहां के पीएम शहबाज भारत से बात करने की गुहार लगा रहा है। एक पड़ोसी देश की अक्कल ठिकाने लगाने के बाद अब पीएम मोदी की नजरें दूसरे पड़ोसी देश पर हैं, जो हाल के समय में भारत को आंखे दिखा रहा है। 

यहां हम बात कर रहे हैं बांग्लादेश की। वहां सत्ता परिवर्तन के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव है। वहां की यूनुस सरकार लगातार भारत के खिलाफ काम कर रही है। इसी के मद्देनजर गंगा जल बंटवारे को लेकर बांग्लादेश के साथ हुए एक अहम समझौते को संशोधित करने और उसका पुनर्मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।

क्या है गंगा जल समझौता?

इस समझौते को 1996 में औपचारिक रूप दिया गया था, जब शेख हसीना ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल शुरू किया था। उन्होंने 1 जनवरी से 31 मई तक हर साल सूखे की अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल में फरक्का बैराज पर गंगा के प्रवाह को वितरित करने के लिए एक रूपरेखा तैयार की थी। फरक्का जल आवंटन के बारे में विवादों को हल करने के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच 1996 का जल-साझाकरण समझौता स्थापित किया गया था।

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साल 2026 में खत्म हो रही संधि

जानकारी के लिए बता दें कि गंगा जल बंटवारा जिसे गंगा जल बंटवारा संधि के नाम से भी जाना जाता है, 2026 में खत्म हो रही है। जो इसके लागू होने के 30 साल पूरे होने का प्रतीक है। ईडी में छपी खबर के मुताबिक समझौते को दोबारा लागू करने के लिए दोनों देशों की आपसी सहमति की जरूरत है और ऐसे में नई दिल्ली संधि को नया रूप देने का इंतजार कर रही है, ताकि बिना किसी परेशानी के भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।

संधि में बदलाव करने के पीछे भारत की योजना

पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच जल वितरण में मानक संतुलन हासिल करने के लिए समझौते पर फिर से विचार करने की जरूरत है। ईटी सूत्रों के अनुसार, भारत सिंचाई के साथ-साथ बंदरगाह रखरखाव और बिजली उत्पादन की अपनी जरूरतों को शामिल करने के लिए संधि में संशोधन करना चाहता है। पश्चिम बंगाल प्रशासन कथित तौर पर केंद्र सरकार की स्थिति का समर्थन करता है, यह मानते हुए कि संधि के मौजूदा प्रावधान उनकी जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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