Ganesh Baraiya: 25 साल की उम्र में, तीन फुट लंबे और 20 किलो वजन वाले गणेश बरैया ने वो कर दिखाया जिसे लोग नामुमकिन समझते थे. छोटे कद के इस डॉक्टर ने जिन्होंने चिकित्सा के अपने अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी, गुरुवार को चिकित्सा अधिकारी के तौर पर अपनी पहली पोस्टिंग शुरू की. यह बरैया के लिए एक उल्लेखनीय सफ़र का अंत है, जो बौनेपन के साथ पैदा हुए थे, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 72% चलने-फिरने में दिक्कत हुई.
बरैया जन्म से ही बौनेपन के शिकार हैं. उनकी शारीरिक सीमाएं उन्हें कक्षा 12 में 87% नंबर मिले. उसके बाद उन्होंने अपने डॉक्टर बनने के सपने की ओर कदम बढ़ाया. उन्होंने खूब मेहनत की और तैयारी की जिसके वजह से उनका डॉक्टर बनने का सपना साकार हो गया. गणेश बरैया को नीट में 233 अंक प्राप्त हुए हैं.
गुजरात सरकार ने उन्हें रोक दिया था
2018 में गुजरात सरकार ने गणेश बरैया और दो अन्य विकलांग छात्रों को MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश देने से इनकार कर दिया. बरैया ने इस बात का विरोध किया. उनके स्कूल के प्रिंसिपल दलपत कटारिया और ट्रस्टी रेवतसिंह सरवैया ने उनकी मदद की. उन्होंने लड़ाई लड़ी. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों के पक्ष में फैसला सुनाया.
दोस्ती की तो दात देनी पड़ेगी
मेडिकल स्कूल ने बरैया के लिए अनोखी चुनौतियां पेश की थी. शरीर रचना विज्ञान के विच्छेदन की कक्षाओं के दौरान, उनके दोस्त और प्रोफेसर उनके लिए आगे की सीटें खाली रखते थे. सर्जरी के दौरान, सहपाठी उन्हें कंधे में उठाकर ले जाते थे ताकि वे ऑपरेशन टेबल को ऊपर से देख सकें.
दोस्तों और प्रोफेसर ने दिया खूब साथ
बरैया अक्सर कहते हैं कि उनके दोस्तों और प्रोफ़ेसरों ने हर मोड़ पर उनका हाथ थामे रखा. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी ऊंचाई कभी भी उनके ज्ञान की राह में बाधा न बने.अपनी नाज़ुक, बच्चे‑सदृश आवाज़ के बावजूद, बरैया में एक ठहराव‑भरा आत्मविश्वास रहता है.मरीजों से पहली मुलाक़ात में मिलने वाली आँखों की आश्चर्य‑भरी प्रतिक्रिया उनके लिए अब सामान्य हो गई है.शुरुआत में लोग उनके रूप‑रंग को देख कर हैरान रह जाते थे, पर जब वे सुनते हैं कि डॉक्टर बनने के लिए उन्होंने किन‑किन संघर्षों को पार किया है, तो उनका विश्वास पूरी तरह से उनके साथ हो जाता है.बरैया का लक्ष्य बाल रोग, त्वचा विज्ञान या रेडियोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करना है.

