General Knowledge News: साल 2025 की शुरुआत में केरल के तिरुवनंतपुरम जिले की नेय्याट्टिनकारा अदालत ने 24 साल की महिला, ग्रीष्मा को अपने प्रेमी शेरोन राज की हत्याकांड का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी. यह पूरा मामला भारत में महिलओं को दी गई फांसी की सजाओं के संदर्भ से जुड़ा हुआ है. तो वहीं, दूसरी तरफ इस घटना ने एक बार फिर से इस बात पर सोचने को मजबूर कर दिया है कि आज़ाद भारत में अब तक कितनी बार महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई है. तो आइए जानते हैं हमारी इस खबर में अब तक कितनी बार महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई है.
भारत की पहली महिला जिसे हुई थी फांसी
भारत में आजादी के बाद से अब तक सिर्फ और सिर्फ दो महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई है. इनमें से पहली महिला का नाम शबनम है जिसे साल 2008 में अपने परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था. शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की वारदात को अंजाम दिया था. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अब तक उसकी सजा को बरकार रखा हुआ है राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका को भी खारिज कर दिया था.
साल 1955 में रतनबाई को हुई थी फांसी की सजा
इसके अलावा, साल 1955 में रतनबाई जैन को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इस मामले को आपमें से बहुत कम लोग जानते होंगे और ज्यादातर लोगों ने रतनबाई का नाम नहीं सुना होगा. रतनबाई को यह सजा तीन लड़कियों की हत्या के आरोप में दी गई थी. पति के साथ अवैध संबंधों के शक में रतनबाई ने तीनों लड़कियों को मौत के घाट उतार दिया था. उसे, जनवरी 1955 में फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन, ग्रीष्मा को दी गई मौत की सजा एक नई घटना है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में महिलाओं को फांसी की सजा देने के बेहद ही कम मामले में हैं
महिलाओं को भारत में कब दी जाती है फांसी की सजा ?
भारतीय कानून व्यवस्था में मृत्युदंड ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस’ मामलों में ही दिया जाता है. लेकिन महिला अपराधियों के मामले में तो यह और भी ज्यादा दुर्लभ है. कुछ आंकड़ों के मुताबिक, आज़ाद भारत में अब तक 50 से भी कम महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई है, जिनमें से केवल कुछ को ही वास्तव में फांसी दी गई है.

