एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है Fake it until you make it, यानी तब तक दिखावा करो जब तक आप असल में सफल न हो जाओ. लेकिन भारत के आज के उद्यमियों, खासकर फूड और क्विक-कॉमर्स इंडस्ट्री में, ये कहावत पूरी तरह पलट गई है. यहां चलन है Make it until you can fake it, यानी पहले असली चीज दो, फिर नाम और शोहरत मिलने के बाद धीरे-धीरे नकली बनाना शुरू कर दो.
अगर आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है कि इस लेख में किस चीज की बात हो रही है तो अपने किचन में रखे हुए अंडे को जाकर एक बार देखें-
एक ब्रांड, जो पहले असली था… फिर बन गया ‘पैकेज्ड झांसा’
करीब एक साल पहले एक अंडा ब्रांड से परिचय हुआ. ‘जंबो’ अंडे बेचने वाला ये ब्रांड वाकई में बाजार के सबसे बड़े और बेहतर अंडे दे रहा था. अंडों का शेप उनकी ताजगी, साफ-सफाई और क्वालिटी सब कुछ शानदार था. ये इकलौता ब्रांड था जिसकी क्वालिटी अमेरिकी और यूरोपीय मानकों के आसपास लगती थी. लेकिन कुछ महीनों बाद सब कुछ बदलने लगा.
पहला बदलाव: पैकेजिंग पहले सादा ट्रे में आने वाले अंडे अब मोटे, चमकदार पेपर से ढंके हुए हाई-क्वालिटी प्रिंटेड स्लीव में आने लगे.
दूसरा बदलाव: अंडों की क्वालिटी.
अब अंडों का शेप अस्थिर हो गया कभी बड़े, कभी मीडियम और कई बार तो छोटे भी. कभी-कभी उनके खोल पतले और पारदर्शी से दिखने लगे. ताजगी और स्वाद में भी फर्क महसूस होने लगा.
यानि, जिस प्रोडक्ट ने भरोसा जीता था, वही अब नकली क्वालिटी के लिबास में आ गया.
हर ब्रांड का एक जैसा खेल
फिर मैंने कई अन्य ब्रांड्स आजमाए – Blinkit, Instamart, लोकल ग्रॉसरी स्टोर से लेकर हाई-एंड ऑर्गेनिक स्टोर्स तक. नाम अलग-अलग: Natural+ VitaD, Protein Max, Abhi Vitamin D3, Nutra Plus Specialty… लेकिन कहानी सबकी एक फैंसी नाम और पैकेजिंग, लेकिन कोई स्थायित्व नहीं. अंडों का शेप, स्वाद, ताजगी सब में फर्क. असली चीज बस दिखावे में थी.
“Make It Until You Can Fake It” — असल रणनीति क्या है?
जैसे ही कोई नया ब्रांड बाजार में आता है, वो बेहतरीन क्वालिटी के प्रोडक्ट से लोगों का विश्वास जीतता है. लेकिन जैसे ही उसका नाम चलता है, वो “स्केल” बढ़ाने के चक्कर में क्वालिटी से समझौता करता है. लागत घटाने, मुनाफा बढ़ाने के चक्कर में प्रोडक्ट का असली चेहरा बदल जाता है.
ये रणनीति आज के ज़्यादातर नए फूड ब्रांड्स में आम है. शुरुआत में ऐप्स पर अच्छे रेटिंग्स बटोर लो, फिर घटिया माल बेचना शुरू कर दो. भारत की खाद्य प्रणाली की सबसे बड़ी कमजोरी यही है रेगुलेशन की कमी.
हिंदुस्तान में अंडों की ‘क्रांति’ नहीं, समस्या है
Eggoz, HenFruit, The Natural Fresh जैसे ब्रांड आपको बताएंगे कि उनके अंडे खास हैं क- भी मुर्गियों के खान-पान की वजह से, कभी फार्म की लोकेशन की वजह से. कोई कहता है उसकी मुर्गियां ड्राई फ्रूट खाती हैं, तो कोई दावा करता है कि उसकी मुर्गियां ऑरेंज जूस में भीगे ड्राई फ्रूट्स खाती हैं, इसलिए अंडों में नट्स का स्वाद और फल जैसी ताजगी है!
कहीं दावा होता है कि मुर्गियां 10,000 स्टेप्स रोज चलती हैं. मतलब फिटनेस फ्री रेंज मुर्गियां हैं! कोई कहता है अंडों में मल्टीविटामिन, आयरन, मैग्नीशियम घोला गया है जैसे अंडा नहीं, कोई हेल्थ-सप्लिमेंट बेच रहे हों.
पैकेजिंग में सब कुछ, अंडे में कुछ नहीं
ये ब्रांड अंडों के रंग – “सबसे सफेद सफेद”, “गहरा ब्राउन” — को तो जोर-शोर से प्रचारित करते हैं, लेकिन अंडे का असली वजन, पोषण, ताजगी इन पर कोई ध्यान नहीं.ग्राहकों को पैकेजिंग और शब्दों के खेल में फंसाया जा रहा है.
हाल ही में आंध्र प्रदेश के एक स्कूल में मिड-डे मील की जांच हुई, तो बच्चों को मिलने वाले अंडे सिर्फ 31 ग्राम के निकले! तुलना करें तो अमेरिका में एक सामान्य अंडा 50 ग्राम होता है. भारत में 45 ग्राम के अंडे को भी “एक्स्ट्रा लार्ज” कहकर बेचा जाता है वो भी तब जब वो अंडा वाकई ताजा हो. लेकिन ज्यादातर बार वो भी नहीं होता.
फूड इंडस्ट्री की सामान्य चालबाजी
ऐसा सिर्फ अंडों के साथ नहीं है. नए-नए रेस्टोरेंट्स ऐप्स पर आते हैं, बढ़िया खाना और अच्छे हिस्से देते हैं, 4-5 स्टार रेटिंग कमाते हैं. फिर क्वालिटी गिरती है, हिस्से घटते हैं और दाम बढ़ते हैं.
Blinkit और Instamart जैसी क्विक-कॉमर्स ऐप्स पर भी यही खेल है. ऑर्गेनिक, लार्ज, फार्म फ्रेश जैसे टैग्स से लोगों को आकर्षित किया जाता है. फिर वही घटिया स्तर पर चीजें पहुंचाई जाती हैं.

