Explainer: कभी बीड़ी तो कभी बोला गया बीमारी! दूसरे राज्यों में बिहारियों पर कब-कब हुए हिंसक हमले और किया गया अपमान? पढ़िए यह विस्तृत रिपोर्ट

Bihari Migrants: बिहारी प्रवासी मजदूर और छात्र अक्सर अन्य राज्यों में अपमान झेलते हैं. स्थानीय लोगों के साथ-साथ नेता और राजनीतिक पार्टियों ने भी बिहार के लोगों के लिए अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल किया है. जानिए दूसरे राज्यों में उनकी मेहनत और योगदान, उनके बिना उद्योग और समाज कैसे प्रभावित हो सकते हैं.

Published by Shivani Singh

‘ये मेरा महाराष्ट्र है, यहां बिहारियों की नहीं चलेगी…’ महाराष्ट्र में बिहारियों के साथ बदसलूकी की कहानी फिर एक बार सुर्खियों में है और यकीन मानिए, यह कोई नई बात नहीं है. हाल ही में वायरल हो रहे एक वीडियो में एक महिला अपने साथियों के साथ मिलकर अपने बिहारी बॉस की बेरहमी से पिटाई करती देखी जा सकती है. उस व्यक्ति की गलती क्या थी? सिर्फ इतना कि उसने उस महिला को दफ़्तर में देर से आने पर टोका था. जिसके बाद उस महिला ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे ना सिर्फ पीटा बल्कि सबके सामने जलील किया और वहां बैठे कुछ लोग बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं कि ‘ये मेरा महाराष्ट्र है यहां बिहारियों की नहीं चलेगी’. 

यह पहली बार नहीं है जब किसी व्यक्ति को सिर्फ बिहारी होने की कीमत चुकानी पड़ी हो. विभिन्न रिपोर्ट्स बताती हैं कि बिहारियों को समय–समय पर दूसरे राज्यों में मारपीट, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ा है. पिछले कई वर्षों में ऐसे कई मामले दर्ज किए गए हैं. यह प्रवृत्ति केवल कुछ स्थानीय व्यक्तियों तक सीमित नहीं है. महाराष्ट्र की कुछ राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के भीतर भी बिहारियों के प्रति भेदभाव की झलक अक्सर देखी गई है.

2008 महाराष्ट्र हमले: बिहारियों पर उग्र हिंसा और पलायन का दौर

महाराष्ट्र से शुरू हुआ बिहारी समुदाय के प्रति नफरत धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया है. बात फरवरी 2008 की है जब महाराष्ट्र के नासिक और पुणे जैसे शहरों में उत्तर भारतीय, विशेषकर बिहारियों पर बड़े पैमाने पर हमले किए गए थे. उस समय राज ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की MNS पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ‘बाहरी मजदूरों’ के खिलाफ हिंसक गतिविधियां अपनाई थी, इन घटनाओं में कई लोग घायल हुए और कई परिवार अपने घर लौटने को मजबूर हो गए. इन हमलों के कारण Nashik से लगभग 15,000 और Pune से करीब 25,000 माइग्रेंट्स अपने मूल राज्यों को लौट गए, जिसमें एक बड़ी संख्या बिहारी प्रवासियों की थी. जिससे स्थानीय व्यवसाय और छोटे औद्योगिक क्षेत्रों पर भारी असर पड़ा. आर्थिक नुकसान का अनुमान उस समय ₹500–700 करोड़ तक लगाया गया था. इसके अलावा, राजनीतिक बयानबाज़ी और भाषाई भेदभाव ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ असुरक्षा और डर का माहौल और बढ़ाया. यहां बिहारियों को अक्सर रोजगार और सामाजिक पहचान में बाधा डालने वाला दिखाया गया. कभी इन्हे रोजगार हड़पने वाला बताया गया तो कभी गन्दगी फैलाने वाला.

प्रतिष्ठित अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया और भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में मजदूरों से उनकी भाषा पूछकर पीटा गया इस हिंसा के बाद हजारों बिहारी मजदूर गुजरात छोड़कर वापस अपने घर लौट गए.

भारत में बिहारियों के खिलाफ अपमान और भेदभाव केवल आम लोगों तक सीमित नहीं रहा; कई बार इसे नेताओं और राजनीतिक पार्टियों ने भी बढ़ावा दिया है. महाराष्ट्र जैसे राज्यों में राज ठाकरे हों या तेलंगाना के CM स्टालिन या फिर रेवंथ रेड्डी, ऐसे नेताओं ने अक्सर उत्तर भारतीय, खासकर बिहारी प्रवासियों के खिलाफ विवादित बयान दिए, जिसमें उन्हें मजदूर, बाहरी, बीड़ी, इत्यादि जैसे शब्दों से सम्बोधित किया गया. इसी तरह, अन्य राजनीतिक मंचों पर भी भाषणों और सार्वजनिक टिप्पणियों के माध्यम से बिहारियों को नीचा दिखाने और डराने की घटनाएँ सामने आई हैं. जैसे

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बिहार के लोगों पर अलग-अलग राज्यों के नेताओं के विवादित बयान

  • तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने एक बयान में कहा था कि “बिहारियों के डीएनए में मजदूरी है.
  • वहीं हाल में ही भाजपा के प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने आरोप लगाया कि डीएमके के लोग बिहारियों को अनपढ़, पानीपुरी बेचने वाले और तमिलनाडु में शौचालय साफ करने वाले कहकर उनका अपमान करते रहे हैं.
  • तृणमूल कांग्रेस (TMC) के विधायक मनोरंजन ब्यापारी ने कहा था ‘एक बिहारी, सौ बीमारी’, और साथ ही यह भी जोड़ा कि बंगाल को बीमारी‑मुक्त होना चाहिए.
  • केरल कांग्रेस के आधिकारिक अकाउंट से एक ट्वीट किया गया, ‘बीड़ी और बिहार दोनों ‘B’ से शुरू होते हैं. अब इन्हें पाप नहीं माना जा सकता.’ यह ट्वीट तब आया था जब केंद्र सरकार ने बीड़ी पर टैक्स घटाकर 28 प्रतिशत से 18 प्रतिशत कर दिया था.
  • एक बार पूर्व मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि बिहार का एक आदमी 500 रुपये का टिकट लेकर ट्रेन से दिल्ली आता है और 5 लाख का इलाज फ्री में करवा कर चला जाता है.
  • दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने एक बार कहा था कि यूपी बिहार से होने वाले पलायन के कारण दिल्ली के इनफ्रास्ट्रक्चर पर भारी दबाव है.
  • मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी एक बार कहा था कि मध्यप्रदेश में बेरोजगारी का असली कारण बिहारी लोग हैं.

महाराष्ट्र के इंफ्रास्ट्रक्चर में बिहारियों का बड़ा योगदान

अब आइये आपको बताते हैं कि बिहारियों के बिना महाराष्ट्र के निर्माण, फैक्ट्री, टेक्सटाइल, होटल और लॉजिस्टिक्स में बिहारियों का कितना बड़ा योगदान है जिन बिहारी मजदूरों और पेशेवरों को महाराष्ट्र में “नीच” समझा जाता है, वही अक्सर उद्योगों और व्यवसायों का असली आधार हैं. निर्माण, फैक्ट्री, टेक्सटाइल, होटल और लॉजिस्टिक्स में उनका योगदान इतना अहम है कि बिना उनके उत्पादन 15–25% तक घट सकता है और मालिकों को अतिरिक्त खर्च झेलना पड़ेगा. यानी, जिन्हें लोग नीचा समझते हैं, वही राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं.

गुजरात की टेक्सटाइल उद्योग की रीढ़ हैं बिहारी

गुजरात के अहमदाबाद, सूरत और राजकोट में बिहारी मजदूर टेक्सटाइल उद्योग की रीढ़ हैं. सिलाई, मशीन ऑपरेशन और पैकेजिंग जैसे कामों के लिए उन्हें कम वेतन पर उच्च गुणवत्ता वाले काम और उच्च उत्पादकता कंपनियों को मिल जाती है वो सिर्फ बिहारी मजदुर की वजह से संभव है. कई बिहारी सुपरवाइजिंग और मैनेजमेंट में भी योगदान देते हैं. बिना इनके कंपनियों की लागत बढ़ सकती है और उत्पादकता कम हो सकती है. यानी बिहारी गुजरात के टेक्सटाइल उद्योग की असली रीढ़ हैं.

शिक्षा क्षेत्र के लिए एक बड़ा आर्थिक स्त्रोत हैं बिहारी

बिहार के छात्र देश भर में शिक्षा क्षेत्र के लिए एक बड़ा आर्थिक स्त्रोत माने जाते हैं. ये छात्र न केवल अपनी पढ़ाई के लिए शुल्क भरते हैं, बल्कि अपने रहने, खाने और अन्य खर्चों के माध्यम से विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और हॉस्टल इंडस्ट्री को भी महत्वपूर्ण वित्तीय योगदान देते हैं. खासकर मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे बड़े शिक्षा केंद्रों में बिहारियों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उनके बिन शैक्षणिक संस्थान आर्थिक रूप से प्रभावित हो सकते हैं.

बिहारी हर फील्ड में बड़ी ऊंचाइयां हासिल कर रहे हैं

बिहार के लोग देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में कामयाबी हासिल कर रहे हैं. ब्यूरोक्रेसी से लेकर नेशनल लेवल तक, बिहारी हर फील्ड में बड़ी ऊंचाइयां हासिल कर रहे हैं. बिहार ने देश को कई जाने-माने इंडस्ट्रियलिस्ट दिए हैं. वेदांता के अनिल अग्रवाल और एल्केम के संप्रदा सिंह जैसे बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट भी इसी धरती की देन हैं. वहीं उत्तर प्रदेश के बाद आईएएस और आईपीएस देने की लिस्ट में दूसरा स्थान बिहार राज्य का है

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