दिल्ली में स्थित गोल डाकखाना कब बना? 100 में से 99 लोग देते हैं गलत जवाब

Gol Dak Khana History: दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक धरोहरों में से एक गोल डाकखाने का इतिहास काफी पुराना है, जब भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित हुई, उसी दौरान इस इमरात की नींव रखी गई थी.

Published by Sohail Rahman

Delhi Gol Dak Khana: दिल्ली में मुगलों और ब्रिटिश काल की काफी पुरानी इमारतें मौजूद हैं. जो ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल हैं. ऐसे में आज हम दिल्ली के गोल डाकघर की चर्चा करेंगे. दिल्ली की व्यस्त सड़कों के बीच एक गोल इमारत है, जो आज भी ब्रिटिश काल की भव्यता का प्रतीक है. जी हां हम गोल डाकखाना (गोल डाकघर) की बात कर रहे हैं. इस पुराने जनरल पोस्ट ऑफिस (GPO) का अनोखा गोल डिजाइन दिल्लीवासियों को हमेशा से पसंद आया है. यह इमारत न केवल डाक सेवा का केंद्र थी, बल्कि औपनिवेशिक भारत के तेजी से हो रहे विकास की गवाह भी है.

गोल डाकखाना का निर्माण कब हुआ? (When was Gol Dak khana building constructed?)

1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज ने दिल्ली को भारत की नई राजधानी घोषित किया और सत्ता का केंद्र कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया. इसी समय नई दिल्ली का निर्माण शुरू हुआ और इसी दौरान गोल डाकखाने की नींव रखी गई. शुरुआत में इसे ‘वायसराय कैंप पोस्ट ऑफिस’ कहा जाता था और यह अस्थायी रूप से काम करता था. लेकिन 1929 से 1931 के बीच इसकी जगह एक भव्य स्थायी इमारत बनाई गई. इसका मकसद न केवल डाक व्यवस्था को मजबूत करना था, बल्कि नई राजधानी के संचार नेटवर्क का केंद्र भी बनाना था. 1934 तक इसे आधिकारिक तौर पर नई दिल्ली जीपीओ के रूप में शुरू कर दिया गया.

‘गोल डाकखाना’ नाम सुनते ही आपके मन में आता होगा कि ये गोल होगा, लेकिन हकीकत इससे उलट है. दरअसल, असल में यह इमारत अष्टकोणीय (आठ कोनों वाली) है, लेकिन ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स के शानदार डिज़ाइन ने इसे गोल जैसा बना दिया है. इसके अलावा, इस इमारत के आसपास का इलाका ‘गोल मार्केट’ के नाम से मशहूर है. जिसे 1921 में बनाया गया था.

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किसने बनाया इसका डिजाइन? (Who designed Gol Dak Khana?)

इस इमारत के पीछे रॉबर्ट टॉर रसेल का दिमाग था, जो उस समय पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के मुख्य आर्किटेक्ट थे. रसेल ने नई दिल्ली में कई ऐतिहासिक इमारतें बनाईं, लेकिन गोल डाकखाना उनकी मास्टरपीस है. उन्होंने इसमें इंडो-सैसैनिक शैली का इस्तेमाल किया – ऊंचे मेहराब, एक घड़ी टॉवर और कोनों पर छोटे गुंबद. 99,105 वर्ग फुट में फैली यह इमारत ब्रिटिश इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है. रसेल का मानना ​​था कि यह इमारत सिर्फ एक डाकघर न हो, बल्कि शहर का एक पहचान वाला स्थल बने, और आज भी लोग यहां आकर सेल्फी लेने का मौका नहीं छोड़ते.

अब तक कैसे जीवित है यह इमारत? (How has gol dak khana managed to survive until now?)

स्वतंत्रता के बाद भी गोल डाकखाना दिल्ली की डाक सेवाओं का मुख्य केंद्र बना रहा. 1930 के दशक में बना डायरेक्टर का आवास हाल ही में सुधारा गया है, जिससे इसकी विरासत को नया जीवन मिलेगा. हालांकि, कुछ चुनौतियां अभी भी हैं – ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है, और डिजिटल ईमेल के इस युग में पारंपरिक डाक का महत्व कम हो गया है. फिर भी यह जगह पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय आकर्षण बनी हुई है. यहां घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे समय थम गया हो- एक तरफ पुराने स्टाइल के लेटरबॉक्स और दूसरी तरफ स्मार्टफोन से ली गई सेल्फी.

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