Amul Girl Ad Campaign: अमूल गर्ल (Amul Girl) को आज के समय में हर कोई जानता है. पोल्का डॉटेड ड्रेस और पोनीटेल पहने एक खुशमिजाज छोटी बच्ची लाखों लोगों को उनके बचपन की याद दिलाती है. लगभग छह दशकों से अमूल गर्ल ने पता नहीं कितने लोगों के दिलों में एक अहम जगह बनाकर रखी है. अमूल ने इसके चलते भारत में उपभोक्ताओं का मन मोह लिया है.
ऐसे हुई थी Amul Girl की शुरूआत
जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय डेयरी ब्रांड अमूल के लिए 1967 में बनाया गया यादगार टैगलाइन “अटरली बटरली डिलिशियस” वाला कार्टून सामने आया, विज्ञापन एजेंसी एएसपी के सिल्वेस्टर दा कुन्हा और उनके कला निर्देशक, यूस्टेस फर्नांडीस के दिमाग की उपज था.
इसे डेयरी सहकारी समिति द्वारा प्रतिद्वंद्वी ब्रांड पोल्सन से बाजार हिस्सेदारी हासिल करने के प्रयासों के तहत बनाया गया था, जो 1900 से मक्खन बाजार पर हावी था, जब इसकी स्थापना पेस्टनजी एडुल्जी दलाल ने की थी. मुंबई में होर्डिंग्स, बस पैनल और पोस्टरों पर दिखाई देने के बाद से, यह लड़की भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में सर्वव्यापी रही है.
लोगों को मिला एक प्यारा दोस्त
अमूल गर्ल को एक साधारण विज्ञापन के बजाय एक सहज, प्यारी दोस्त जैसा महसूस कराती है. यह सौम्य हास्य भावनात्मक जुड़ाव और विश्वास भी पैदा करता है, क्योंकि लोग स्वाभाविक रूप से उन दृश्य उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया देते हैं जो मानवीय विशेषताओं की नकल करती हैं, जैसे कि उसका भावपूर्ण चेहरा और बच्चों जैसी मासूमियत.
लेकिन विज्ञापनों में मुख्य भूमिका हास्य की रही है, जिसमें असंबंधित तत्वों का अप्रत्याशित मिश्रण आश्चर्य और आनंद का कारण बनता है. विज्ञापन अक्सर गंभीर समाचार घटनाओं को मक्खन से जुड़े मज़ेदार चुटकुलों के साथ पेश करते हैं (जैसे फूट डालो और लार टपकाओ; मक्खन की रानी, मस्करे का राजा; मरद तो ऐसा होना, मक्खन होना तो अमूल होना).
पुरानी यादें इस जुड़ाव को और मजबूत करती हैं, क्योंकि अमूल गर्ल बचपन की प्यारी यादें और साझा सांस्कृतिक पलों को ताज़ा करती है. उसका अपरिवर्तित रूप और बदलती लेकिन परिचित टिप्पणियां तेज़ी से बदलते भारत में निरंतरता का एहसास कराती हैं. अमूल द्वारा पारिवारिक, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक कहानियों का इस्तेमाल अक्सर बुज़ुर्ग भारतीयों को उनकी जवानी की याद दिलाता है, जबकि युवाओं को एक चंचल राष्ट्रीय प्रतीक से परिचित कराता है.
बन गई भारत की विज्ञापन आइकन
अपने अंतरराष्ट्रीय चचेरे भाइयों की तरह, जैसे रोनाल्ड मैकडॉनल्ड बर्गर पलटते हुए, टोनी द टाइगर अमेरिकी नाश्ते का प्रचार करते हुए, या मिशेलिन मैन टायरों से भरी सड़कों पर उछलते हुए, अमूल गर्ल सिर्फ एक शुभंकर से कहीं बढ़कर है. वह भारत में विज्ञापन आइकनों की एक परंपरा का हिस्सा हैं, जिसमें एयर इंडिया महाराजा, एशियन पेंट्स का चुलबुला गट्टू, हमेशा घूमती निरमा गर्ल और शरारती ओनिडा डेविल जैसे जाने-पहचाने चेहरे शामिल हैं.
ये किरदार हमें सिर्फ चीज़ें नहीं बेचते. वे परिवार का हिस्सा बन जाते हैं, अक्सर हमारे पास आते हैं, हमारी यादों को आकार देते हैं, और सुबह की यात्रा या चाय ब्रेक के दौरान हमें मुस्कुराने का मौका देते हैं.
विवादों से अमूल गर्ल का नाता
कभी-कभी, उनके कोमल व्यंग्य (Satire) कुछ लोगों के गुस्से का कारण भी बने हैं; खासकर उन लोगों के जिनके अहंकार को ठेस पहुंची है. 2001 में, इंडियन एयरलाइंस की हड़ताल की आलोचना करने वाले एक विज्ञापन ने एयरलाइन को धमकी दी थी कि वह अपनी उड़ानों में अमूल मक्खन देना बंद कर देगी, जबकि 1980 के दशक में गणेश चतुर्थी के दौरान “गणपति बप्पा मोरे घ्या” के नारे ने शिवसेना को नाराज़ कर दिया था, जिसने अमूल के मुंबई कार्यालय को नष्ट करने की धमकी दी थी अगर इसे नहीं हटाया गया.
जुलाई 2011 में, 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार कांड को लेकर कांग्रेस पार्टी के सांसद सुरेश कलमाड़ी का मज़ाक उड़ाने वाले एक बिलबोर्ड पर “मैंने क्या खाया” लिखा था, जिसके बाद पुणे में पार्टी कार्यकर्ताओं ने अमूल के होर्डिंग्स उतार दिए. इनमें से कुछ घटनाएं भयावह रूप ले चुकी थीं और समाज में मौजूदा तनावों को उजागर कर रही थीं. यह भी सच है कि बढ़ती संवेदनशीलता के बीच आज इस शुभंकर की बुद्धि को कम ही बर्दाश्त किया जाता है.
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