Gulzar Birthday Special: गुलजार नाम सुनते ही आंखों में नर्म रोशनी उतर आती है और कानों में शब्दों की वो तान गूंजने लगती है, जो दिल को छूकर गुजर जाती है। शायर, गीतकार, पटकथा लेखक और निर्देशक- गुलजार की पहचान कई रूपों में है, लेकिन उनके भीतर का संवेदनशील इंसान अक्सर दुनिया से छिपा ही रह गया। आज हम एक ऐसी अनकही थ्रोबैक कहानी सुनाते हैं, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। जी हां, आज गुलजार का जन्मदिन है इस खास मौके पर ये किस्सा आपको सुनाएंगे।
कहानी शुरू होती है गुलजार के शुरुआती दिनों से। बंबई अब मुंबई हो गई। जहां वो एक गैरेज में कारों पर पेंट का काम करते थे। रंगों के साथ खेलते-खेलते उन्हें शब्दों से खेलना अच्छा लगने लगा। गैरेज में काम के दौरान ही वो कागज पर शेर लिख लिया करते थे। अक्सर उनके साथी हंसते, और कहते ये कवि बन रहा है! लेकिन, गुलजार चुपचाप मुस्कुरा देते। शायद उन्हें पता था कि शब्द ही उनका असली सफर होंगे।
बर्मन से मिलकर रहे नर्वस
एक और दिलचस्प किस्सा है उनकी मुलाकात का। मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन से जब पहली बार रूबरू हुए तो बहुत नर्वस थे। उन्होंने अपनी एक लिखी पंक्ति सुनाई जो मासूमियत से भरी थी। बर्मन दा ने कहा, ये लड़का अलग है, इसके शब्दों में मिठास है। वही दिन था जब गुलजार का सफर फिल्मी गीतों की दुनिया में शुरू हुआ।
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गुलजार और कागज की कश्ती
लेकिन, जो बात कम लोग जानते हैं, वो ये कि गुलजार हमेशा अपनी कहानियां और कविताएं जीवन की छोटी-छोटी बातों से उठाते थे। उदाहरण के लिए, एक बार वे बारिश में चलते हुए किसी बच्चे को कागज की नाव बहाते देख ठिठक गए। उसी पल से उनके भीतर “कागज की कश्ती” लिखने की चाहत जगी। वो बच्चे की मासूम मुस्कान आज तक उनकी यादों में ताजा है।
एक एहसास हैं गुलजार
गुलजार का मानना रहा है कि शायरी बड़ी-बड़ी किताबों या महलों में नहीं जन्म लेती, बल्कि गली-कूचों, चाय की दुकानों और बरसती खिड़कियों में पलती है। उनकी यही संवेदनशीलता उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। आज जब हम उनके शब्दों को पढ़ते या सुनते हैं, तो लगता है जैसे वो हमारे अपने ही किस्से कह रहे हों। शायद यही वजह है कि गुलजार सिर्फ एक शायर नहीं, बल्कि एक एहसास हैं, जो हर दिल में कहीं न कहीं बसते हैं।

